Tuesday, November 11, 2025
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जज साहब मेरी पत्‍नी के अवैध संबंध… राहत के ल‍िए हाईकोर्ट पहुंचा था पत‍ि, पर उल्‍टा पड़ गया ‘खेल’


दिल्ली हाईकोर्ट ने हाल ही में कहा है कि केवल अवैध संबंध के आरोपों के आधार पर पत्नी को घरेलू हिंसा अधिनियम 2005 के तहत अंतरिम भरण-पोषण के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है, जो मुकदमे के दौरान साबित होना बाकी है. न्यायमूर्ति अनूप कुमार मेंदीरत्ता ने पत‍ि की उस याच‍िका को खार‍िज कर द‍िया ज‍िसमें उसने निचली अदालत के आदेश को चुनौती दी थी. न‍िचली अदालत ने पत‍ि को आदेश द‍िया था क‍ि वह पत्‍नी को किराये के लिए प्रति माह 6000 रुपये, 11460 रुपये का मासिक अंतरिम रखरखाव और दोनों नाबालिग बेटियों के खर्च के लिए 9800 रुपये देने का आदेश द‍िया था.

पति ने घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पत्नी द्वारा उसके खिलाफ दायर शिकायत मामले को रद्द करने की भी मांग की थी. याचिका खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा पारित गुजारा भत्ता के आदेश में हस्तक्षेप करने का कोई ठोस कारण नहीं है. अदालत ने पाया कि रिकॉर्ड के अनुसार, पत्नी को पति ने अधर में छोड़ दिया था क्योंकि उसने घर की संपत्तियों को बेच दिया था. इतना ही नहीं पत्‍नी और बच्चों के लिए भरण-पोषण का कोई प्रावधान किए बिना किराए के मकान में भेज द‍िया था.

अदालत ने कहा कि प्रथम दृष्टया पति के कृत्य और आचरण से ‘घरेलू हिंसा’ का केस बनता है क्योंकि पत्नी उन आर्थिक और वित्तीय संसाधनों से वंचित थी जिसकी वह कानून के तहत हकदार थी. अदालत ने कहा क‍ि घरेलू संपत्ति को बेचना, जिसमें प्रतिवादी का हित था और घरेलू संबंधों के आधार पर उपयोग करने की हकदार थी. यह मामला ‘आर्थिक दुरुपयोग’ के दायरे में आता है जैसा कि डीवी अधिनियम की धारा 3 में ल‍िखा हुआ है.

इसके अलावा, न्यायमूर्ति मेंदीरत्ता ने कहा कि अवैध संबंध के आरोप और अनैतिक तस्करी अधिनियम के प्रावधानों के तहत एफआईआर जैसा कि पति ने आरोप लगाया था, घरेलू हिंसा अधिनियम के तहत पत्नी द्वारा कार्यवाही शुरू करने के बाद उसके द्वारा देर से एफआईआर दर्ज कराई गई थी. अदालत ने कहा क‍ि प्रतिवादी को केवल अवैध संबंध के आरोपों के आधार पर डीवी अधिनियम के तहत अंतरिम रखरखाव के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है, जो मुकदमे के दौरान साबित होना बाकी है. इसमें कहा गया है कि रिकॉर्ड के मुताबिक, घरेलू हिंसा अधिनियम की धारा 12 के तहत कार्यवाही को रद्द करने के लिए पति द्वारा उठाए गए तर्क बिना किसी योग्यता के थे.

कोर्ट ने कहा क‍ि भरण-पोषण के मुद्दे पर भी, न‍िचली अदालत ने इस तथ्य को विधिवत नोट किया था कि याचिकाकर्ता की मासिक आय लगभग 57,300/- रुपये है और याचिकाकर्ता के पास 32,73,693/- रुपये का बैंक बैलेंस भी था, जिसमें से लोन भी ल‍िया गया था. जो याचिकाकर्ता द्वारा चुकाया जा सकता है. इसके अलावा, आय और संपत्ति के हलफनामे पर विचार करने के बाद, निचली अदालत ने देखा कि प्रतिवादी के पास अपने और अपनी बेटियों के भरण-पोषण के लिए आय का कोई स्रोत नहीं है.

Tags: DELHI HIGH COURT, Delhi news



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