पाकिस्तान के बाद अब बांग्लादेश भी भारत के साथ हुए जल बंटवारे पर सवाल उठा रहा है। बांग्लादेश शीघ्र ही भारत के साथ सीमा पार नदियों के जल बंटवारे पर बातचीत करने के लिए कदम उठाएगा। अंतरिम सरकार के एक सलाहकार ने बुधवार को यह जानकारी दी। भारत और बांग्लादेश 2011 में तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की ढाका यात्रा के दौरान तीस्ता जल बंटवारे पर एक समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले थे, लेकिन पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने अपने राज्य में पानी की कमी का हवाला देते हुए इसका समर्थन करने से इनकार कर दिया।
अब बांग्लादेश की जल संसाधन सलाहकार सैयदा रिजवाना हसन ने कहा है कि देश जल्द ही भारत के साथ सीमा पार नदियों के जल बंटवारे पर वार्ता करेगा। उन्होंने कहा कि यह वार्ता जनमत को ध्यान में रखते हुए आयोजित की जाएगी और वार्ता के परिणामों को जनता के साथ साझा किया जाएगा। बुधवार को राजधानी ढाका स्थित पानी भवन में ‘विश्व नदी दिवस’ के अवसर पर “साझा नदियों में बांग्लादेश के जल का उचित हिस्सा” विषय पर आयोजित एक सेमिनार को संबोधित करते हुए रिजवाना ने यह बातें कही।
मुख्य अतिथि के रूप में कार्यक्रम को संबोधित करते हुए, उन्होंने कहा कि अंतर्राष्ट्रीय नदियों के जल बंटवारे का मुद्दा जटिल है, लेकिन आवश्यक जानकारी का आदान-प्रदान राजनीतिक नहीं होना चाहिए। उन्होंने बताया कि एक देश बारिश के आंकड़ों और नदियों में बने संरचनाओं की जानकारी चाह सकता है, और इस डेटा के आदान-प्रदान से जीवन और संपत्तियों को नुकसान से बचाने में मदद मिल सकती है।
रिजवाना पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन की सलाहकार भी हैं। उन्होंने कहा कि एक देश अकेले अंतरराष्ट्रीय न्यायालय नहीं जा सकता, बल्कि दोनों देशों को संयुक्त रूप से इस मुद्दे पर जाना होगा। उन्होंने कहा, “बारिश के आंकड़े साझा करना एक मानवीय मुद्दा है। जीवन को बचाने के लिए जरूरी जानकारी दी जानी चाहिए। बांग्लादेश के दावे स्पष्ट और मजबूती से रखे जाएंगे।” उन्होंने देश की आंतरिक नदियों की सुरक्षा पर भी जोर दिया और उन्हें जीवंत संस्थाएं बताते हुए सामूहिक प्रयासों से बचाने की बात कही। इस महीने की शुरुआत में, मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस ने कहा था कि अंतरिम सरकार काफी समय से लंबित तीस्ता जल-बंटवारा संधि पर भारत के साथ मतभेदों को सुलझाने के तरीकों पर काम करेगी।