IAS Success Story: के. जयगणेश जिन्होंने वेटर से लेकर आईएएस बनने का सफर कैसे तय किया। छह बार असफल होने पर भी हार नहीं मानी और सातवां प्रयास देकर आईएएस अधिकारी बनें। गरीबी से लड़कर वेटर से आईएएस बनने
“जिन खोजा तिन पाइया, गहरे पानी पैठ,
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।”
संत कबीर के इस दोहे का अर्थ है कि जो व्यक्ति मेहनत करता है उसे सफलता मिल ही जाती है लेकिन जो व्यक्ति पानी में डूबने के डर से पानी में डुबकी न लगाकर किनारे पर ही बैठा रहता है, उसे कुछ प्राप्त नहीं होता है।
आईएएस अधिकारी के. जयगणेश ने इस दोहे को सच कर दिखाया है। क्या आप ने कभी सुना है कि 6 बार असफलता प्राप्त करने के बाद भी किसी व्यक्ति का हौंसला नहीं डगमगाया। हर भी हर एक जिम्मेदारी को निभाते हुए किसी ने यूपीएससी परीक्षा पास कर ली? क्या कोई वेटर भी आईएएस अधिकारी बन सकता है? इन सभी सवालों का जवाब आईएएस के. जयगणेश की सफलता कहानी में छिपा हुआ है।
के. जयगणेश तमिलनाडु के विन्नमंगलम इलाके के रहने वाले हैं। वे बहुत ही गरीब परिवार से आते हैं। वे चार भाई- बहनों में सबसे बड़े हैं। उन्होंने अपने गांव से आठवीं कक्षा तक की पढ़ाई के बाद पॉलिटेक्निक कॉलेज में एडमिशन लिया था। उन्होंने पॉलिटेक्निक को 91 प्रतिशत अंक प्राप्त कर पास किया था। इसके बाद उन्होंने तंथी पेरियार इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में मैकेनिकल इंजीनियरिंग में एडमिशन लिया। पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्हें पहली नौकरी एक कंपनी में मिली, जहां उन्हें हर महीने सैलरी के तौर पर 2,500 रुपये ही मिलते थे। के. जयगणेश के ऊपर उनके परिवार की भी जिम्मेदारी थी, इसलिए उन्हें लगा कि उन्हें कोई दूसरी सरकारी नौकरी ढूंढ़नी पड़ेगी, जिससे उनका घर खर्च चल सकें। इसी बीच उन्होंने सत्यमेव सिनेमा हॉल में बिलिंग क्लर्क की भी नौकरी की। इस दौरान वे अपने पहले प्रयास में यूपीएससी परीक्षा पास करने में असफल हो गए थे। जिसके बाद उन्होंने एक रेस्टोरेंट में वेटर की नौकरी की, ताकि घर की आर्थिक जरूरतों को पूरा कर सकें। वे रात को वेटर की नौकरी कर लौटते थे और रोज नियमित रूप से पढ़ाई करते थे।
उन्होंने यूपीएससी के छह अटेंप्ट दिए और हर बार प्रीलिम्स या फिर मेंस परीक्षा में असफल हो जाते थे लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी। शिद्दत से यूपीएससी की तैयारी में जुटे रहे। इसी बीच उनका चयन इंटेलिजेंस ब्यूरो में भी हो गया था, लेकिन उन्होंने वह नौकरी ठुकरा दी और सातवीं बार यूपीएससी परीक्षा को देना चुना। इस बार उनकी मेहनत रंग लाई और उन्हें 2008 में सिविल सेवा परीक्षा में 156वीं रैंक प्राप्त हुई। कहते हैं ना कि दृढ़ संकल्प इन्सान को उसकी मंजिल तक जरूर पहुँचाता है और गरीबी कभी भी किसी की सफलता में रुकावट नहीं बन सकती है।