Sunday, February 23, 2025
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इजरायल का ईरान पर हमला चीन को कैसे दे सकता है दर्द? युद्ध टालने की गुजारिश कर रहा ड्रैगन


मध्य पूर्व में इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव ने वैश्विक मंच पर चिंता का माहौल पैदा कर दिया है। हाल के दिनों में दोनों देशों के बीच हुई मिसाइल और हवाई हमलों की घटनाओं ने पूरे क्षेत्र को अस्थिरता की ओर धकेल दिया है। ऐसे में चीन और सऊदी अरब जैसे बड़े देशों ने इजरायल और ईरान के बीच तनाव को कम करने की अपील की है। इससे यह सवाल उठता है कि इन दोनों देशों, खासकर चीन के लिए क्या दांव पर लगा है?

इजरायल और ईरान के बीच बढ़ते तनाव

इजरायल और ईरान के बीच दुश्मनी कोई नई बात नहीं है, लेकिन हाल ही में इस तनाव ने नई ऊंचाईयां छू ली हैं। ईरान द्वारा इजरायल पर मिसाइल हमले और इजरायल द्वारा हिजबुल्लाह नेता हसन नसरल्लाह की हत्या के बाद दोनों देशों के बीच हिंसक घटनाएं तेज हो गई हैं। इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू ने ईरान को कड़ी चेतावनी दी है और प्रतिशोध की बात की है, जिससे दोनों देशों के बीच युद्ध की आशंका बढ़ गई है। ईरान अपनी सैन्य ताकत बढ़ाने और परमाणु कार्यक्रम को लेकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संदेह का केंद्र बना हुआ है। इसके जवाब में इजरायल ने बार-बार ईरान के परमाणु कार्यक्रम को अपना मुख्य खतरा बताया है और इसे नष्ट करने की धमकी दी है। चीन ने इस समय क्षेत्रीय शांति की अपील की है। उसने इजरायल और ईरान से तनाव कम करने की आवश्यकता पर जोर दिया है, क्योंकि यह संघर्ष न केवल मध्य पूर्व बल्कि वैश्विक स्थिरता के लिए भी खतरा उत्पन्न कर सकता है।

चीन का दृष्टिकोण

चीन हाल ही में मध्य पूर्व में अपनी आर्थिक और कूटनीतिक उपस्थिति को बढ़ा रहा है। ऐसे में अगर इजरायल ईरान पर हमला करता है तो चीन इस संघर्ष से बड़े नुकसान का सामना कर सकता है। चीन की ऊर्जा आवश्यकताओं का एक बड़ा हिस्सा मध्य पूर्व से आता है, विशेष रूप से ईरान और सऊदी अरब से। इस क्षेत्र में किसी भी प्रकार का युद्ध चीन के लिए तेल की आपूर्ति में व्यवधान उत्पन्न कर सकता है।

इसके अलावा, चीन बेल्ट एंड रोड इनीशिएटिव (बीआरआई) के तहत मध्य पूर्व के देशों के साथ व्यापारिक और आर्थिक सहयोग को भी मजबूत कर रहा है। इस क्षेत्र में शांति और स्थिरता से चीन को अपने व्यापारिक हितों को सुरक्षित रखने में मदद मिलेगी। इसलिए, चीन द्वारा तनाव कम करने की अपील उसके व्यापारिक और ऊर्जा हितों की रक्षा के उद्देश्य से की जा रही है।

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ईरान और चीन के बीच तेल संबंध

ईरान, विश्व के सबसे बड़े तेल उत्पादक देशों में से एक है। वहीं चीन, दुनिया की सबसे बड़ी ऊर्जा उपभोक्ता अर्थव्यवस्था है। चीन अपनी ऊर्जा जरूरतों का बड़ा हिस्सा ईरान से तेल आयात करके पूरा करता है। हालांकि ईरान पर लगे अमेरिकी प्रतिबंधों के बावजूद, चीन ने लगातार ईरान से तेल खरीदा है, और यह दोनों देशों के बीच आर्थिक संबंधों की महत्वपूर्ण धुरी है।

ईरान से तेल की आपूर्ति रुकने का मतलब होगा कि चीन को अपने ऊर्जा स्रोतों के लिए वैकल्पिक बाजारों की तलाश करनी पड़ेगी, जो न केवल जटिल होगा, बल्कि महंगा भी हो सकता है। ऐसे में यदि इजरायल ईरान के तेल भंडार को निशाना बनाता है, तो इसका सीधा असर चीन की तेल आपूर्ति और उसके आर्थिक विकास पर पड़ सकता है।

मध्य पूर्व में भू-राजनीतिक संघर्ष और तेल व्यापार

मध्य पूर्व का भू-राजनीतिक परिदृश्य काफी जटिल है, खासकर तेल उत्पादन और निर्यात के मामले में। ईरान, सऊदी अरब, इराक, कुवैत और संयुक्त अरब अमीरात जैसे देश विश्व के प्रमुख तेल निर्यातक हैं। इन देशों के बीच के तनाव का सीधा असर वैश्विक तेल बाजार पर पड़ता है। ईरान और इजरायल के बीच तनाव का इतिहास और ईरान के परमाणु कार्यक्रम के खिलाफ इजरायल के विरोध ने इस क्षेत्र को और भी अस्थिर बना दिया है। यदि इजरायल, ईरान के तेल भंडार पर हमला करता है, तो यह न केवल मध्य पूर्व में तनाव को बढ़ाएगा, बल्कि वैश्विक तेल आपूर्ति को भी बाधित कर सकता है। इससे तेल की कीमतों में उछाल आएगा, जिससे वैश्विक अर्थव्यवस्था प्रभावित होगी, खासकर उन देशों की जो मध्य पूर्व के तेल पर निर्भर हैं।

चीन किसे ज्यादा सपोर्ट करता है ईरान या इजरायल?

चीन की विदेश नीति को देखते हुए, वह ईरान और इजरायल दोनों के साथ संबंध बनाए रखने की कोशिश करता है, लेकिन वह ईरान को अधिक समर्थन करता है। इसका मुख्य कारण चीन की ऊर्जा आवश्यकताएं हैं, क्योंकि ईरान तेल और गैस का एक बड़ा स्रोत है, और चीन की अर्थव्यवस्था के लिए ऊर्जा की जरूरतें अत्यधिक महत्वपूर्ण हैं। दूसरी ओर, चीन इजरायल के साथ भी तकनीकी और व्यापारिक संबंधों को महत्व देता है, लेकिन इजरायल और अमेरिका के घनिष्ठ संबंधों के कारण, चीन इजरायल के प्रति उतना सार्वजनिक रूप से समर्थन नहीं दिखाता जितना ईरान के साथ करता है।

क्या दांव पर है?

वैश्विक ऊर्जा सुरक्षा: मध्य पूर्व में किसी भी प्रकार के बड़े संघर्ष से तेल की आपूर्ति में बाधा उत्पन्न हो सकती है, जिससे वैश्विक बाजार में अस्थिरता आ सकती है। चीन, सऊदी अरब और अन्य देशों के लिए यह गंभीर चिंता का विषय है, क्योंकि उनकी अर्थव्यवस्थाएं इस क्षेत्र से आने वाली तेल की आपूर्ति पर निर्भर हैं।

परमाणु हथियारों की दौड़: अगर ईरान परमाणु हथियार विकसित करने में सफल हो जाता है, तो यह पूरे मध्य पूर्व में परमाणु हथियारों की दौड़ को जन्म दे सकता है। यह सऊदी अरब और अन्य पड़ोसी देशों के लिए भी सुरक्षा का बड़ा खतरा बनेगा।

कूटनीतिक संतुलन: चीन इस समय एक जटिल कूटनीतिक संतुलन बनाए रखने की कोशिश कर रहा है। चीन एक तरफ ईरान के साथ अच्छे संबंध बनाए रखना चाहता है, वहीं दूसरी ओर इजरायल के साथ व्यापारिक संबंध भी उसे आकर्षित कर रहे हैं।

अगर हम इतिहास में जाएं, तो देखते हैं कि जब भी तेल आपूर्ति बाधित हुई है, इसका वैश्विक अर्थव्यवस्था पर गंभीर असर पड़ा है। 1973 के तेल संकट के दौरान, जब अरब देशों ने तेल निर्यात पर प्रतिबंध लगाया था, तब वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारी मंदी आई थी। इसी तरह 1990 के दशक में खाड़ी युद्ध के दौरान भी तेल आपूर्ति बाधित हुई थी, जिससे तेल की कीमतों में भारी उछाल आया था।

ऐसे में यदि इजरायल द्वारा ईरान के तेल भंडार पर हमला होता है, तो यह वैश्विक स्तर पर एक और तेल संकट को जन्म दे सकता है। चीन, जो अपनी आर्थिक वृद्धि के लिए तेल पर निर्भर है, इस स्थिति में गंभीर रूप से प्रभावित हो सकता है।



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