नई दिल्ली. उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश संजय किशन कौल ने शुक्रवार को कहा कि मामलों के निपटारे में देरी वादियों को न्याय से वंचित करने के समान है. इसके साथ ही उन्होंने न्यायाधीशों की पर्याप्त संख्या न होने पर चिंता व्यक्त की.
पच्चीस दिसंबर को सेवानिवृत्त हुए न्यायमूर्ति कौल ने पीटीआई के साथ एक साक्षात्कार में कहा कि निचली अदालत से लेकर उच्चतम न्यायालय तक मुकदमों के भारी अंबार से निपटने के लिए नए विचारों का प्रयोग करने में कोई झिझक नहीं होनी चाहिए.
सरकार ने 20 जुलाई को राज्यसभा को बताया था कि देश की विभिन्न अदालतों में लंबित मामलों की संख्या पांच करोड़ का आंकड़ा पार कर गई है. कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने उच्च सदन में कहा था, “भारत के उच्चतम न्यायालय द्वारा एकीककृत मामले प्रबंधन प्रणाली (आईसीएमआईएस) से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, एक जुलाई तक, उच्चतम न्यायालय में 69,766 मामले लंबित थे.”
उन्होंने कहा था, “राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (एनजेडीजी) पर उपलब्ध कराई गई जानकारी के अनुसार, 14 जुलाई तक उच्च न्यायालयों और जिला एवं अधीनस्थ अदालतों में लंबित मामलों की कुल संख्या क्रमशः 60,62,953 और 4,41,35,357 है.’
क्या मामलों के निपटारे में देरी का मतलब आम वादकारियों को न्याय से वंचित करना है, उन्होंने कहा, “ऐसा ही है. लेकिन क्या किया जा सकता है? क्या कोई न्यायाधीश एक दिन में सौ मुकदमे निपटा सकता है? नहीं…” सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीशों के जिम्मेदारी ग्रहण करने के मुद्दे पर, न्यायमूर्ति कौल ने कहा कि उन्हें यह प्राप्त करने में कोई दिलचस्पी नहीं है, और इस मुद्दे को सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के विवेक पर छोड़ दिया जाना चाहिए.
शीर्ष अदालत के न्यायाधीश के रूप में छह साल और 10 महीने से अधिक के अपने कार्यकाल में न्यायमूर्ति कौल कई ऐतिहासिक निर्णयों का हिस्सा रहे, जिनमें निजता के अधिकार को मौलिक अधिकार घोषित करने और पूर्ववर्ती राज्य जम्मू कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को बरकरार रखने का निर्णय शामिल है.
.
Tags: Supreme Court
FIRST PUBLISHED : December 29, 2023, 23:18 IST