Friday, June 27, 2025
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दो महीने में ही कैसे पावरफुल हो गए बांग्लादेश के आर्मी चीफ, चौथी बार सेना को कमान


बांग्लादेश में तख्तापलट हो गया है। महज 45 मिनट की मोहलत पाकर पूर्व पीएम शेख हसीना भारत पहुंची हैं और अब ब्रिटेन या फिर किसी अन्य देश में शरण की राह देख रही हैं। फिलहाल बांग्लादेश की व्यवस्था सेना के हाथों में है और उसके नेतृत्व में ही अंतरिम सरकार का गठन होना है। छात्र संगठनों के आंदोलन से उपजे हालातों में फिलहाल सबसे ताकतवर शख्स बनकर उभरे हैं आर्मी चीफ जनरल वकार-उज-जमां। वह 23 जुलाई को ही सेना प्रमुख नियुक्त हुए थे और महज 2 महीने के अंदर ही वह इतनी ताकतवर शख्सियत बन चुके हैं।

उन्होंने ही ऐलान किया था कि शेख हसीना ने पीएम पद से इस्तीफा दे दिया है और वह देश छोड़कर निकल चुकी हैं। उन्होंने इस ऐलान के साथ ही यह भी बता दिया था कि अब 17 करोड़ की आबादी वाले बांग्लादेश की कमान सेना के हाथों में रहेगी और उसके नेतृत्व में ही अंतरिम सरकार का गठन होगा। फिलहाल अंतरिम सरकार के मुखिया के तौर पर डॉ. युनूस का नाम तय हुआ, जो नोबेल पुरस्कार विजेता हैं। अंतरिम सरकार के अन्य सदस्यों के नाम भी आज शाम तक तय करने की बात है। लेकिन नई लोकतांत्रिक सरकार के बनने तक असली ताकत सेना के पास ही होगी।

पीएमओ में प्रिंसिपल स्टाफ ऑफिसर के तौर पर भी काम कर चुके वकार ने सोमवार को जमात-ए-इस्लामी, जातीय पार्टी और बांग्लादेश नेशनल पार्टी की मीटिंग बुलाई। इसमें शेख हसीना की अवामी लीग को शामिल नहीं किया गया। वहीं उन्होंने जनता को संबोधित करते हुए कहा कि हम लोग मिलकर सारी समस्याएं सुलझा लेंगे। किसी भी तरह से विवाद न करें और नियमों का पालन करें। 58 साल के वकार-उज-जमां ने आम लोगों को भरोसा दिलाते हुए यह भी कहा कि हम प्रदर्शन के दौरान हुई 300 से ज्यादा हत्याओं की जांच करेंगे और न्याय दिलाया जाएगा।

उन्होंने कहा कि आप लोग मेरा भरोसा रखें। हर हत्या की जांच होगी और इंसाफ किया जाएगा। आपको सेना पर भरोसा रखना होगा। जमान ने जमात के चीफ शफीकुर रहमान और अन्य नेताओं से मुलाकात की। यह बैठक राष्ट्रपति मोहम्मद शहाबुद्दीन के आदेश पर की गई थी। दरअसल यह पहला मौका नहीं है, जब सेना के हाथ में बांग्लादेश की कमान जाती दिख रही है। 1971 में बने बांग्लादेश में पहला सैन्य तख्तापलट अगस्त 1975 में ही हो गया था। तब शेख मुजीबर रहमान की परिवार के 4 लोगों के साथ हत्या कर दी गई थी। इसके बाद नवंबर में ही फिर तख्तापलट हुआ और तत्कालीन आर्मी चीफ जियाउर रहमान ने सत्ता संभाल ली। इसके बाद 1981 में रहमान का भी कत्ल हो गया और सेना के ही इरशाद ने कमान संभाल ली थी। यह तख्तापलट मार्च 1982 में हुआ था।



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