बांग्लादेश में शांति स्थापित करने के नाम पर शेख हसीना की सरकार को हटाकर अंतरिम सरकार बनाई गई। स्थिति यह है कि अंतरिम सरकार के मुखिया ना तो हिंदुओं के खिलाफ हो रहे अत्याचार रोकने में सक्षम हैं और ना ही शांति बहाल करने में। मोहम्मद यूनुस और आर्मी चीफ जनरल वकार अब तक कानून व्यवस्था लागू नहीं कर पाए हैं। वहीं अंतरिम सरकार कट्टरपंथी ताकतों के आगे घुटने टेकती नजर आ रही है। जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों को पूरी छूट मिल रही है। खालिदा जिया की बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की कीमत पर जमात-ए-इस्लामी का बढ़ावा दिया जा रहा है।
जमात-ए-इस्लामी वैचारिक रूप से मुस्लिम ब्रदरहुड से जुड़ा है। इसके अलावा यह इस्लामिक कट्टरपंथी हिफाजत-ए-इस्लाम और इस्लामिक स्टेट का समर्थन करने वाले खतरनाक संगठन अंसार-उल-बांग्ला जैसे संगठनों का समर्थन करता है जो कि बांग्लादेश के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। खुफिया इनपुट्स के आधार पर पता चल रहा है कि छात्र नेता भी इन कट्टरपंथी संगठनों के प्रभाव में आ रहे हैं। ऐसे में यह कहना अतिश्योक्ति नहीं है कि बांग्लादेश बारूद की ढेर पर बैठा है जिसमें विस्फोट कभी भी हो सकता है।
रिपोर्ट्स से पता चलता है कि बांग्लादेश की आर्मी और यूनुस दोनों ही आवामी लीग कार्यकर्ताओं और हिंदुओं के खिलाफ हिंसा रोकने में फेल हो गए हैं। अपराधियों के साथ जुड़ाव की वजह से वे दोहरी बातें करते नजर आते हैं। जमात-ए-इस्लामी जैसे संगठनों ने भारत में भी खूब अपना अजेंडा चलाने की कोशिश की। जम्मू-कश्मीर में युवाओं को भड़काने में भी जमात-ए-इस्लामी शामिल रहता था। 1990 के बाद से जमात ही SIMI के बढ़ने के पीछे था। महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश जैसे राज्यों में सिमी ने पैर पसाल रिए थे। इसके बाद पाकिस्तान के मुजाहिद्दीन इन्हें हथियार भी देने लगे।
जमात ने कश्मीर में युवाओं को भटकाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। हथियार देकर वह युवहाओं को कट्टर बनाता रहा। बांग्लादेश को भला ये खतरनाक संगठन कैसे बख्श सकते हैं। अंतरिम सरकार फिलहाल चुनाव का ऐलान करने की जल्दबाजी में नहीं दिख रही है। अंतरिम सरकार आर्थिक मोर्चे पर भी फेल होती नजर आ रही है। अब स्थिति यह है कि बांग्लादेश में आवामी लीग के साथी एकजुट होकर बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के खइलाफ मोर्चा खोलने वाले हैं। ऐसे में डर इस बात का है कि कहीं बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी भी किनारे ही ना रह जाए और जमात-ए-इस्लामी अपना सिक्का जमा ले।
बांग्लादेश को मुख्य खतरा कट्टरपंथी नेताओं से हैं। शेख हसीना के हटने के बाद निर्वासन पर रह रहे कट्टरपंथी भी बांग्लादेश वापसी करने लगे हैं। वहीं मोहम्मद यूनुस का ध्यान शेख हसीना के प्रत्यर्पण पर है। हिंदुओं पर हो रहे अत्याचार को लेकर भारत भी चिंता जाहिर कर चुका है। अब देखना है कि बंद पड़ी कपड़ा मिलों और अन्य उद्योगों के लिए यूनुस की अंतरिम सरकार क्या करेगी। शेख हसीना के हटने के कुछ दिनों में ही अर्थव्यवस्था पर इसका असर साफ नजर आने लगा है। बांग्लादेश का बाहरी और आंतरिक कर्ज 100 अरब डॉलर को क्रॉस कर गया है।