Sunday, June 29, 2025
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मिडिल-ईस्ट में ईरान-इजरायल के बीच चल रहा खतरनाक खेल, क्या भारत निकाल पाएगा समाधान


हमास के इजरायल पर हमला करके करीब 1200 लोगों की हत्या करने की घटना को करीब एक साल हो गया है। उस घटना ने इजरायल की मजबूत सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोल कर रख दी थी। हमास के आतंकवादियों ने इजरायल में घुसकर निर्दोष लोगों की हत्या, बलात्कार के साथ-साथ लूटपाट, आगजनी भी की। पूरे क्षेत्र को तहस-नहस करने के बाद वह मध्यकालीन युग की तरह युद्ध 251 इजरायलियों को अपने साथ बंदी बना कर ले गए। आज एक साल बाद और इजरायल के द्वारा इतना संघर्ष और बच्चों की मौत के बाद भी 101 बंधक आज भी हमास के पास हैं। इनमें से भी केवल 66 के जिंदा होने की संभावना है। इजरायल आज भी हमास, हिजबु्ल्लाह, हूती, वेस्ट बैंक, इराक, सीरिया और ईरान से लड़ रहा है। इन सबमें इजरायल का मुख्य प्रतिद्वंदी ईरान है जो तेलअवीव से लड़ने के लिए अपने आतंकवादी प्यादों का इस्तेमाल कर रहा है।

लेकिन अपनी बेहतर सैन्य क्षमता के बदौलत इजरायल लगातार अपने विरोधियों को खत्म करने में कामयाब रहा है। दूसरी तरफ, लेबनान में शिया आतंकवादी समूह की सैन्य क्षमताओं में भारी गिरावट आई है और इज़राइल पिछले दो हफ्तों में संचार नेटवर्क पर हमलों के माध्यम से हिजबुल्लाह की कमान और नियंत्रण संरचना को नीचे लाने और इस महीने शीर्ष सैन्य कमांडरों को खत्म करने में सफल रहा है।

पूरा मध्य-पूर्व इस समय आग की लपटों से घिरा हुआ है। अमेरिका समेत कोई भी वैश्विक ताकत इस समय इस क्षेत्र में शांति और सुरक्षा की गारंटी नहीं ले सकती। यह क्षेत्र और पूरी दुनिया बारूद के ढेर पर बैठी है और किसी भी ट्रिगर पर विस्फोट होने का इंतजार कर रही है। आज सबसे बड़ा सवाल यह है कि मौत के इस खेल को कैसे रोका जाए, जिसका भविष्य पर वैश्विक सुरक्षा पर गंभीर प्रभाव पड़ता है।

चारों तरफ से घिरे हुए इजरायल के पास अपनी सुरक्षा के लिए हिंसक होकर युद्ध करने के अलावा कोई और विकल्प नहीं दिखता। इजरायल के ऊपर उनके चारों तरफ से लगातार मिसाइलें आ रही है। अगर उनका हवाई सुरक्षा सिस्टम मजबूत नहीं होता तो शायद इजरायल में भारी तबाही मच चुकी होती। इजरायल के खिलाफ युद्ध कर रहे ज्यादातर देश इजरायल का खात्मा चाहते हैं।

इजरायल और गाजा समेत तमाम कट्टरपंथियों के बीच चल रहे इस युद्ध का सबसे सही उपाय यही है कि संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव 1701 को सही मायने में लागू किया जाए, जिससे इजरायल की उत्तरी सीमाओं पर शांति स्थापित हो सके। किन किसी भी वैश्विक शक्ति के पास हिज़्बुल्लाह को निरस्त्र करके और लेबनान-इज़राइल सीमाओं को विसैन्यीकृत करके इसे लागू करने की ताकत नहीं है। वर्तमान अमेरिका की बिडेन सरकार यूक्रेन में रूस से मुकाबला करने में लगा हुआ है और राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन अपने हमलों को छोड़ने के कोई संकेत नहीं दिखा रहे हैं, आज वैश्विक उद्देश्य मध्य पूर्व में युद्ध को रोकना है, न कि पूर्ण शांति का प्रयास करना।

7 अक्तूबर के पहले तक इजरायल के साथ खुले तौर पर संबंधों को स्वीकार करने वाले सऊदी अरब और संयुक्त अरब अमीरात जैसी सुन्नी शक्तियों को इजरायल के साथ संबंधों को स्थगित करने के लिए मजबूर होना पड़ा है क्योंकि अगर वह ऐसा नहीं करते तो अरब जगत के चरमपंथी उनके खिलाफ आवाज उठाने लगते इसलिए इनके पास भी इस जंग को रोकने के लिए ज्यादा कुछ उपाय नजर नहीं आते।

मध्य- पूर्व संकट में भारत की भूमिका

प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में भारत एक भूमिका निभा सकता है क्योंकि भारत की एकमात्र ऐसा देश है जो प्रैक्टिकल रूप से समाधान के लिए इज़राइल, ईरान, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात, अमेरिका, रूस से बात कर सकता है। कल पीएम मोदी ने मौजूदा मुद्दे पर चर्चा के लिए न्यूयॉर्क में फिलिस्तीनी ऑथारिटी के अध्यक्ष महमूद अब्बास से मुलाकात की। मध्य पूर्व पूरी तरह से अव्यवस्थित है और किसी के पास शांति का कोई व्यावहारिक समाधान नहीं है।



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