रिपोर्ट- समीर भट्ट/ नई दिल्ली: नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष और जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने गुरुवार को स्वीकार किया कि आगामी चुनावों के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा एनडीए के लिए निर्धारित 400+ लोकसभा सीटों का लक्ष्य संभव और प्राप्त करने योग्य है. उन्होंने इसके लिए “कमजोर” विपक्षी दलों को जिम्मेदार ठहराया है.
News18 को दिए एक विशेष इंटरव्यू में उमर अब्दुल्ला ने इस साल संभावित जीत के पीछे के कारण गिनाए और जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद के मुद्दे पर चर्चा की.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आगामी लोकसभा चुनाव के लिए एनडीए के लिए 400+ का लक्ष्य रखा है. क्या आपको लगता है कि यह हासिल किया जा सकता है?
हां बिल्कुल. पीएम मोदी द्वारा रखा गया 400+ का लक्ष्य संभव लग रहा है क्योंकि विपक्ष बहुत कमजोर है. विपक्ष बीजेपी के खिलाफ एकजुट मोर्चा बनाने में नाकाम रहा है. दो महीने पहले यह लक्ष्य हासिल होता नहीं दिख रहा था, लेकिन अब यह हकीकत बनता दिख रहा है और इसका कारण यह है कि विपक्ष उतना मजबूत नहीं है. चूंकि लोकसभा चुनाव में अभी कुछ समय बाकी है, मुझे उम्मीद है कि विपक्षी दल मतभेद दूर करेंगे और लगातार तीसरी बार एनडीए की वापसी को रोकेंगे.
इंडिया गठबंधन के भविष्य को कोई कैसे देखता है? क्या आपको लगता है कि यह अभी भी अस्तित्व में है क्योंकि नीतीश कुमार सहित कई लोग पहले ही इसे छोड़ चुके हैं और जयंत चौधरी जैसे कई लोग गठबंधन छोड़ने के लिए तैयार
गठबंधन अब बहुत कमजोर है. इस सारी गड़बड़ी के लिए कांग्रेस को जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता. नीतीश कुमार ने खुद गठबंधन छोड़ा और बाकी सभी ने भी खुद ही गठबंधन छोड़ दिया. इंडिया गुट एक मजबूत इकाई के रूप में उभर नहीं सका और इसके लिए उसके सभी घटक जिम्मेदार हैं. हमने एक मजबूत विपक्षी गुट बनाने की कोशिश की लेकिन अभी तक हमें अपने प्रयासों में ज्यादा सफलता नहीं मिली है. देखते हैं आगे क्या होता है.
आपके अनुसार लगातार तीसरी बार भाजपा की संभावित जीत के लिए कौन से कारण जिम्मेदार होंगे?
भाजपा के पास पैसा, मंदिर और बाहुबल है. वे दोबारा सत्ता हासिल करने के लिए इनमें से किसी भी कार्ड का इस्तेमाल कर सकते हैं. विपक्ष कमजोर और धनहीन है और उसकी राह कठिन है.
दो और निर्दोष युवक आतंकवाद का शिकार हो गये हैं. श्रीनगर में ताज़ा आतंकी हमले पर आपकी क्या टिप्पणी है?
पंजाब के दो निर्दोष युवकों की हत्या अत्यंत दुर्भाग्यपूर्ण एवं निंदनीय है. मेरा मानना है कि जम्मू-कश्मीर में ऐसी लक्षित हत्याओं को रोकने के लिए कई और कदम उठाए जाने की जरूरत है. अल्पसंख्यकों और आम लोगों के बीच विश्वास बहाली के लिए काफी प्रयास किये जाने की जरूरत है. हत्याएं न केवल कश्मीर घाटी में बल्कि जम्मू क्षेत्र के पुंछ-राजौरी बेल्ट में भी हो रही हैं. सरकार हालात सामान्य होने के सिर्फ खोखले दावे कर रही है, लेकिन जमीन पर ऐसा होता नहीं दिख रहा है.
आपकी पार्टी पाकिस्तान से बातचीत की वकालत करती रही है. क्या आपको लगता है कि स्थिति पाकिस्तान के साथ बातचीत फिर से शुरू करने के लिए अनुकूल है?
मुझे नहीं लगता कि पाकिस्तान ने भारत के साथ बातचीत दोबारा शुरू करने के लिए कोई माहौल बनाया है. हम इसके लिए हमेशा भारत सरकार को दोषी नहीं ठहरा सकते. पाकिस्तान को आतंकवाद को समर्थन देना बंद करना होगा और तभी बातचीत संभव है. इसे बातचीत के लिए अनुकूल माहौल बनाना चाहिए क्योंकि यह दोनों देशों के लोगों के लिए अच्छा है.
सरकार का दावा है कि जम्मू-कश्मीर में भारी निवेश आ रहा है, खासकर अनुच्छेद 370 हटने के बाद. इस पर आपकी क्या राय है?
वह निवेश कहां है? नौकरियां कहां हैं? प्रधानमंत्री यहां उन परियोजनाओं का उद्घाटन करने आ रहे हैं जिनकी योजना और कार्यान्वयन यूपीए शासन के दौरान किया गया है. वे केवल खोखले दावे करने में विश्वास रखते हैं और जमीन पर कुछ भी नजर नहीं आता.
सरकार और बीजेपी आश्वासन दे रही है कि अगले कार्यकाल में कश्मीरी पंडितों का पुनर्वास किया जाएगा. इस पर आपकी क्या राय है?
वे कश्मीरी पंडितों को वापस घाटी में पुनर्वासित करने की बात कर रहे हैं. पिछली दो सरकारों के दौरान वे ऐसा क्यों नहीं कर सके? पिछले 10 वर्षों में कई कश्मीरी पंडित जमीन पर ऐसा होते हुए देखे बिना ही गुजर गए. यह सिर्फ दिखावा है और कुछ नहीं.
जम्मू-कश्मीर में सीट बंटवारे का मसला कब सुलझाएंगे सभी विपक्षी दल?
हम इसका समाधान निकालेंगे. यह हमारा आंतरिक मामला है. इस समय कुछ नहीं कहा जा सकता. हम जल्द ही कांग्रेस और पीडीपी के साथ सीट बंटवारे पर बातचीत शुरू करेंगे.
क्या आपको लगता है कि जम्मू-कश्मीर में जल्द ही विधानसभा चुनाव कराए जाएंगे?
मुझे नहीं लगता कि वे जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराएंगे. वे तभी चुनाव कराएंगे जब भाजपा अपनी जीत को लेकर आश्वस्त होगी. अनुभव ने इसे साबित कर दिया है. जम्मू-कश्मीर में बीजेपी ने अपनी जमीन खो दी है और इसलिए मैं शायद ही विश्वास करूं कि वे यहां विधानसभा चुनाव कराने का जोखिम उठाएंगे.
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