पाकिस्तानी सीरियल ‘हमसफर’ ने भारत में भी खूब धूम मचाई है. इस सीरियल की कहानी के साथ-साथ सबसे ज्यादा जिसे पसंद किया गया वह था इसका टाइटल सॉन्ग. ‘हमसफर’ सीरियल के टाइटल सॉन्ग में मशहूर शायर नसीर तुराबी की ग़ज़ल का इस्तेमाल किया गया. और सबसे ज्यादा प्रभावशाली थी इस टाइटल सॉन्ग की गायिका कुरतुलैन बलूच. कुरतुलैन बलूच पाकिस्तानी-अमेरिकी गायक और गीतकार हैं. कुरतुलैन बलूच की मार्मिक आवाज में यह ग़ज़ल इतनी पॉपुलर हुई है कि कुरतुलैन को ‘हमसफर गर्ल’ के नाम से जाना जाने लगा है. ‘हमसफर’ सीरियल में इस्तेमाल करने से पहले इस ग़ज़ल को पाकिस्तान की मशहूर गायिका आबिदा परवीन ने अपने स्वरों से सजाया था. नसीर ने इस ग़ज़ल को बांग्लादेश के अलग होने के गम में लिखा था.
नसीर तुराबी पाकिस्तान के बहुत ही पॉपुलर शायर रहे हैं. उनका जन्म हैदराबाद में हुआ था. लेकिन भारत-पाक विभाजन के बाद उनका परिवार पाकिस्तान चला गया. उन्होंने कराची यूनिवर्सिटी से एमए और जनसंचार की तालीम हासिल की. नसीर तुराबी अपने समय के चर्चित शायर फैज़ अहमद फैज़, नसीर काजमी और मुस्तफा जैदी से उनकी दोस्ती थी. नसीर की कई ग़ज़लों को पाकिस्तानी सीरियल फिल्मों में इस्तेमाल किया गया है. आप भी पढ़ें यह मशहूर ग़ज़ल-
वो हमसफर था मगर उस से हम नवाई न थी
कि धूप छांव का आलम रहा जुदाई न थी।
न अपना रंज न औरों का दुख न तेरा मलाल
शब ए फ़िराक कभी हम ने यूं गंवाई न थी।
मोहब्बतों का सफर इस तरह भी गुजरा था
शिकस्ता दिल थे मुसाफिर शिकस्ता पाई न थी।
अदावतें थीं, तगाफुल था, रंजिशें थीं बहुत
बिछड़ने वाले में सब कुछ था, बेवफाई न थी।
बिछड़ते वक्त उन आंखों में थी हमारी ग़ज़ल
ग़ज़ल भी वो जो किसी को अभी सुनाई न थी।
किसे पुकार रहा था वो डूबता हुआ दिन
सदा तो आई थी लेकिन कोई दुहाई न थी।
कभी ये हाल कि दोनों में यक दिली थी बहुत
कभी ये मरहला जैसे कि आश्नाई न थी।
अजीब होती है राह ए सुखन भी देख ‘नसीर’
वहां भी आ गए आख़िर, जहां रसाई न थी।
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Tags: Literature, Poem, Poet
FIRST PUBLISHED : January 5, 2024, 15:40 IST