हाल ही में नॉर्वे के करीब रूसी जलक्षेत्र के पास एक मशहूर व्हेल मछली हवाल्दिमिर की संदिग्ध हालात में मौत हो गई। इस व्हेल को ‘रूसी जासूस’ समझा जा रहा है। व्हेल एक ऐसा हारनेस पहने हुए थी जिसके बाद इस बात की तरफ इशारा किया जा रहा है कि वह एक रूसी जासूस थी। जानवरों के हक की हिमायत करने वाले संगठनों का कहना है कि उसकी मौत के पीछे कुछ गड़बड़ हो सकती है। उसके हारनेस पर सेंट पीटर्सबर्ग लिखा था, जिसके बाद इस बात की चर्चा शुरू हुई की वह रूसी नौसेना से जुड़ी हुई है।
हवाल्दिमिर मौत ने फिर से उस बहस को जिंदा कर दिया है कि आखिर जानवरों को जासूसी के लिए क्यों इस्तेमाल किया जाता है। बता दें इससे पहले भी कबूतर, बिल्लियां, डॉल्फिन और चूहों को जासूसी के काम में लगाया जा चुका है।
जासूसी के लिए खास पसंद था कबूतर
कबूतरों को सदियों से संदेश पहुंचाने में इस्तेमाल किया जाता रहा है। खासकर विश्व युद्धों के दौरान उनका इस्तेमाल अहम साबित हुआ। जर्मन सेना ने प्रथम विश्व युद्ध के दौरान कबूतरों के ऊपर छोटे-छोटे कैमरे लगाकर दुश्मन की निगरानी की। दूसरे विश्व युद्ध में भी कबूतरों को जासूसी के लिए लगाया। अलजजीरा की रिपोर्ट की मानें तो 1970 के दशक में सीआईए ने कबूतरों के पैरों में कैमरे लगाकर सोवियत संघ के संवेदनशील इलाकों की तस्वीरें खींची।
समुद्र के जासूस हैं डॉल्फिन और व्हेल
शीत युद्ध के दौरान सोवियत संघ ने सेवस्तोपोल के पास डॉल्फिनों को दुश्मनों की पनडुब्बियों और माइन-फील्ड्स की पहचान करने के लिए ट्रेन किया। इसी तरह अमेरिकी नौसेना ने भी अपने मेराइन मैमल प्रोग्राम के तहत डॉल्फिनों को इस्तेमाल किया। 1960 के दशक में सीआईए ने प्रोजेक्ट ऑक्सीगैस शुरू किया जिसमें डॉल्फिनों को दुश्मन के जहाजों पर विस्फोटक लगाने के लिए तैयार किया गया था। व्हेल और डॉल्फिन आम तौर पर सबसे ज्यादा सूझबूझ वाले जंतु होते हैं। इनके मस्तिष्क में स्पिंडल न्यूरॉन्स नामक विशेष मस्तिष्क कोशिकाएं होती हैं। ये पहचानने, याद रखने, तर्क करने, संवाद करने, समस्या-समाधान और समझने जैसी उन्नत क्षमताओं से जुड़ी होती हैं। इसलिए इन्हें एक ‘गहरा विचारक’ भी कहा जाता है।
बिल्ली और चूहे भी रहे जासूसी के लिए पसंदीदा
बिल्लियां भी जासूसी के काम में आई हैं। 1960 के दशक में सीआईए ने ऑपरेशन एकॉस्टिक किट्टी नाम से एक प्रोग्राम शुरू किया जिसमें बिल्लियों के कानों में छोटे-छोटे माइक्रोफोन लगाए गए ताकि वे सोवियत अधिकारियों की बातें सुन सकें। लेकिन बिल्लियों को सही दिशा में भेजना मुश्किल साबित हुआ और यह प्रोग्राम नाकाम हो गया। चूहों को भी जासूसी के काम में इस्तेमाल किया गया। खासकर मरे हुए चूहों का इस्तेमाल गुप्त संदेश छिपाने के लिए किया जाता था ताकि किसी को शक न हो। लेकिन कई बार बिल्लियां इन मरे हुए चूहों को खा जातीं और मिशन फेल हो जाता।
हवाल्दिमिर की मौत और नैतिक सवाल
हवाल्दिमिर की मौत ने एक बड़ा सवाल खड़ा किया है कि क्या जानवरों को इस तरह से खतरे में डालना सही है। जासूसी के काम में इन बेजुबान जानवरों की जान खतरे में पड़ जाती है और उनकी सुरक्षा की जिम्मेदारी पूरी तरह नहीं उठाई जाती। जानवरों को जासूस के रूप में तैयार करना जहां तकनीकी तौर पर एक बड़ी उपलब्धि है, वहीं जानवरों के हितों के लिए कार्य करने वाली संस्थाओं का यह सवाल है कि क्या मानव हितों के लिए इन्हें इस तरह इस्तेमाल करना सही है।