Wednesday, September 17, 2025
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हिंसा और जबरन धर्मांतरण की मार, हिंदू असुरक्षित; अब अल्पसंख्यक दिवस पर पाकिस्तान के हुक्मरानों के खोखले वादे


पाकिस्तान की स्थापना के समय कायदे-आजम मोहम्मद अली जिन्ना ने सांप्रदायिकता के खतरों के खिलाफ अल्पसंख्यकों के लिए शांति और सद्भाव की वकालत की थी। हिन्दुस्तान से इतर मुसलमानों के लिए एक अलग देश की मांग करने वाले जिन्ना का कथित सपना था कि पाकिस्तान एक ऐसा देश बने जहां सभी धार्मिक समुदाय सुरक्षित और समान अधिकारों के साथ एकजुट होकर रहें। हालांकि, आज का पाकिस्तान उस सपने की तुलना में एक पूरी तरह से अलग और दुखद तस्वीर पेश करता है।

डॉन की खबर के मुकाबिक, 11 अगस्त, 1947 को जिन्ना ने संविधान सभा को संबोधित करते हुए सांप्रदायिकता के खतरों की ओर लोगों का ध्यान खींचा और सभी नागरिकों के समान अधिकार की बात की थी। लेकिन, वर्षों बाद भी पाकिस्तान की सरकारें अल्पसंख्यकों को सुरक्षित और समान अधिकार दिलाने में विफल रही हैं। 2009 से हर साल 11 अगस्त को अल्पसंख्यक दिवस मनाया जाता है लेकिन इस दिन भी पाकिस्तान की सरकारें केवल खोखले वादे करने तक सीमित रहती हैं।

पाकिस्तानी हुक्मरानों ने फिर किए खोखले वादे

इस साल भी अल्पसंख्यक दिवस पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने धार्मिक अल्पसंख्यकों के प्रति समर्थन और एकजुटता व्यक्त की। उन्होंने अल्पसंख्यकों के अधिकारों की रक्षा और उनकी भलाई सुनिश्चित करने की शपथ ली। लेकिन वास्तविकता यह है कि इन वादों के बावजूद, पाकिस्तान के अल्पसंख्यक समुदाय लगातार हिंसा और असुरक्षा का सामना कर रहे हैं।

अल्पसंख्यकों के लिए कठिन है पाक में रहना

हर साल की तरह इस साल भी पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों के लिए कठिन रहा है। अहमदी समुदाय के पूजा स्थलों पर भीड़ द्वारा हमलों का सामना करना पड़ा। इतना ही नहीं अहमदियाओं को उनके घरों में भी धार्मिक अनुष्ठानों को करने से रोका गया। ईसाई समुदाय भी हिंसा का शिकार हुआ, विशेष रूप से मई में सरगोधा में हुए हमले ने पिछले साल के जारानवाला के भीषण हमले की दर्दनाक यादें ताजा कर दीं। इन हमलों के पीछे अक्सर झूठे ईशनिंदा के आरोप होते हैं जिनसे अल्पसंख्यक समुदाय को लगातार खतरा बना रहता है।

हिन्दुओं की दयनीय स्थिति

हिंदू लड़कियों और महिलाओं के जबरन धर्मांतरण और अपहरण भी एक गंभीर समस्या है, जिसे पाकिस्तान सरकार रोकने में असमर्थ रही है। इस तरह की घटनाएं समाज में असहिष्णुता और कट्टरपंथ के बढ़ते प्रभाव को दर्शाती हैं, जो कि कायदे-आजम के उन सपनों के विपरीत हैं। पाकिस्तान की मौजूदा स्थिति एक बार फिर से यह साबित करती है कि कायदे-आजम का सपना केवल एक आदर्शवादी विचार था जो हकीकत में पूरी तरह से विफल साबित हो रहा है।



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