Friday, June 27, 2025
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71 में जिसने दिया पाक सेना का साथ, उस जमात-ए-इस्लामी से बैन हटाने की तैयारी में सरकार; जानें क्या है पूरा मामला


शेख हसीना के बांग्लादेश की सत्ता से हटने के बाद अब उनके दौर के फैसलों को भी बदला जा रहा है। रिपोर्ट्स के मुताबिक, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार जल्द ही प्रो-पाकिस्तानी संगठन जमात-ए-इस्लामी पर से प्रतिबंध हटा सकती है। शेख हसीना सरकार ने सरकार विरोधी प्रदर्शनों के दौरान हिंसक हमलें करने के कारण 1 अगस्त को जमात पर प्रतिबंध लगा दिया था,जिसके बाद जमात ने और उग्र होकर प्रदर्शन करना शुरू कर दिया और शेख हसीना को सत्ता छोड़कर भागना पड़ा।शेख हसीना के सत्ता छोड़ने के बाद मुख्य विपक्षी पार्टी बीएनपी और जमात ए इस्लामी ने सेना की सहायता से अंतरिम सरकार का गठन करवाया। इसलिए अब अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस जमात पर से प्रतिबंध हटाने के लिए तैयार है।

बांग्लादेशी अखबार ढाका ट्रिब्यून से बात करते हुए जमात के वकील मोहम्मद शिशिर मनीर ने कहा कि जमात पर से प्रतिबंध हटाने का फैसला सेना और अंतरिम सरकार के साथ की गई बैठक के बाद लिया जा रहा है। दरअसल, 5 अगस्त को हसीना के देश छोड़कर भागने के बाद से ही उनके फैसलों को पलटने का दौर शुरू हो गया था। 5 अगस्त को सेनाध्यक्ष, राजनीतिक पार्टियों और राष्ट्रपति के बीच हुई बैठक में ही 17 साल जेल की सजा काट रही बीएनपी की लीडर खालिदा जिया को रिहा कर दिया गया था। जमात-ए-इस्लामी पर फिलहाल औपचारिक रूप से प्रतिबंध लगा हुआ है, जिसे जल्दी ही सरकार द्वारा हटा दिया जाएगा।

जमात एक कट्टर इस्लामवादी और पाकिस्तान समर्थक संगठन है। 1971 में बांग्लादेश की आजादी की जंग में इसका समर्थन पाकिस्तानी सेना के प्रति था। इसके अलावा यह संगठन बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ होने वाले हमलों से भी जुड़ा रहा है। शेख हसीना के खिलाफ हुए प्रदर्शनों के बीच जमात से जुड़े लोगों ने लगातार हिंदुओं के खिलाफ हमले किए, जिसके कारण इस पर प्रतिबंध भी लगा दिया गया। लेकिन इस प्रतिबंध का ज्यादा असर नहीं हुआ। हसीना के देश छोड़कर भागने के बाद बांग्लादेश में हिंदुओं और अन्य अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसक घटनाएं हुईं। 2001 में भी जब बांग्लादेश में हिंदुओं के खिलाफ हिंसा हुई थी तो उसमें भी जमात-ए-इस्लामी का नाम ही समाने आया था।

2001 में बीएनपी के साथ मिलकर जमात ने बांग्लादेश में सरकार बनाई थी। अपनी जीत के बाद इन दोनों ही पार्टियों के कार्यकर्ताओं ने अल्पसंख्यकों के खिलाफ हिंसा करना शुरू कर दिया। इस हिंसा में सैंकड़ों महिलाओं से बलात्कार किया गया और उनके घरों को जला दिया गया अगर उन्होंने विरोध किया तो उनको जान से मार डाला गया। बाद में जब शेख हसीना की सरकार वापस सत्ता में आई तो इस हिंसा के खिलाफ जांच की गई, जिसमें यह निकलकर सामने आया कि करीब 250 से अधिक हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार की घटना हुई हैं। इन घटनाओं में हजारों की संख्या में दोनों ही पार्टियों के कार्यकर्ता शामिल थे।



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