नई दिल्ली. राजस्थान में विधानसभा चुनाव में अब एक माह से भी कम समय रह गया है. जाहिर है कि इस रेगिस्तानी राज्य में चुनाव की तपिश महसूस की जा सकती है. राजस्थान के पूर्वी छोर झालावाड़ से थार रेगिस्तान के पश्चिमी छोर तक गाड़ी से जाने में 12 घंटे से ज्यादा का समय लगता है. पिछले सप्ताह चुनावी राज्य में न्यूज18 ने 2,000 किमी से ज्यादा सफर किया. इस दौरान, राजस्थानी मतदाताओं के साथ हमारी बातचीत में पांच शब्द सबसे अधिक उभर कर सामने आए.
3 दिसंबर को रेगिस्तानी राज्य में कौन जीतेगा इसे ये पांच बातें तय कर सकती हैं. ये हैं- पेपर लीक, मुफ्त सुविधाएं, मोदी फैक्टर बनाम सीएम चेहरा, राजपूत-गुर्जर वोट और हिंदुत्व. राजस्थान में लगभग तीन दशकों से यह परंपरा चली आ रही है कि मतदाता मौजूदा सरकार को बदल देते हैं.
भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का मानना है कि पिछले चार वर्षों में बड़े पैमाने पर पेपर लीक को लेकर लोगों के बीच गुस्से के कारण उसे बढ़त हासिल है. यह एक ऐसा मुद्दा है जिसे भाजपा भुनाने का प्रयास कर रही है. कांग्रेस के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत का मानना है कि वह मुफ्त सुविधाओं से इस परंपरा को तोड़ सकते हैं. शायद यही वजह है कि कांग्रेस अपनी ‘गारंटी’ को दोगुना कर रही है.
पेपर लीक का भूत
जिस दिन प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने पेपर लीक मामले में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा पर छापेमारी की, उसी दिन बीजेपी ने पेपर लीक मुद्दे को प्रमुखता से उठाते हुए अपना चुनावी गीत ‘मोदी साथे आपणो राजस्थान’ जारी किया. पिछले चार वर्षों में करीब 18 पेपर लीक हुए हैं. न्यूज18 ने राजस्थान में लोगों से मुलाकात की तो मालूम पड़ा कि इन्हें रोकने में सरकार की विफलता को लेकर लोगों में काफी रोष है. गोविंद डोटासरा पर ईडी की छापेमारी के बाद बीजेपी ने इस रैकेट के तार ऊपर तक जुड़े होने का आरोप लगाते हुए दांव तेज कर दिया है. लोगों को यह भी लगता है कि इसमें कुछ ‘बड़ी मछलियां’ शामिल हैं.
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मुफ्त सुविधाएं
राजस्थान की सड़कों पर लोगों की मदद के लिए भागती ‘चिरंजीवी’ एंबुलेंस आपको हर जगह दिखेंगी. चाहें आप शहर में हों या गांव में, इनकी पहुंच सब जगह है. गहलोत सरकार द्वारा सभी परिवारों के लिए 25 लाख रुपये की ‘चिरंजीवी’ चिकित्सा बीमा योजना एक बड़ी सफलता है. लोग इस योजना की काफी तारीफ कर रहे हैं. इसके तहत न केवल मुफ्त इलाज मिलता है, बल्कि दवाएं भी मुफ्त मिलती हैं. गहलोत सरकार इसके अलावा 100 यूनिट बिजली और एलपीजी सिलेंडर पर 500 रुपये की छूट भी दे रही है.
कौन बनेगा मुख्यमंत्री
चाहें भाजपा हो या कांग्रेस दोनों पार्टियों ने अभी तक अपना मुख्यमंत्री उम्मीदवार तय नहीं किया है. भाजपा पीएम नरेंद्र मोदी के नाम पर चुनाव लड़ रही है, जबकि अशोक गहलोत ने कांग्रेस खेमे में यह स्पष्ट कर दिया है कि वह अभी पद छोड़ने के मूड में नहीं हैं. 2018 तक जनता की नजर में राज्य में बीजेपी का सबसे बड़ा चेहरा रहीं वसुंधरा राजे को टिकट पाने के लिए दूसरी सूची तक इंतजार करना पड़ा. कांग्रेस में अब तक प्रचार का ज्यादातर जिम्मा गहलोत के कंधों पर ही रहा है. हालांकि उम्मीद है कि सचिन पायलट भी राज्य भर में चुनाव प्रचार करेंगे.
राजपूत-गुर्जर मतदाता
2018 के चुनाव में राजपूत मतदाता भाजपा से दूर चले गए जबकि गुर्जरों ने कांग्रेस का साथ दिया था. ये दो कारक थे जिनके कारण कांग्रेस को जीत मिली. जहां मेवाड़ में राजपूत 2018 में सीएम वसुंधरा राजे से नाराज थे, वहीं पूर्वी राजस्थान में गुर्जर यह सोचकर कांग्रेस के साथ आ गए कि सचिन पायलट मुख्यमंत्री बनेंगे. लेकिन इस बार ये दोनों फैक्टर उतने प्रभावी नहीं रह गए हैं. भाजपा ने राजपूत मतदाताओं को रिझाने के लिए कड़ी मेहनत की है और गुर्जर सचिन पायलट के ‘अपमान’ से निराश दिखाई दे रहे हैं.
हिंदुत्व का मसला अहम
राज्य भर के मतदाताओं के साथ बातचीत में न्यूज18 को मालूम पड़ा कि हिंदुत्व का मसला काफी अहम भूमिका निभाएगा. हिंदू मतदाता चाहते हैं कि भाजपा सत्ता में आए क्योंकि उन्हें लगता है कि गहलोत सरकार ने मुसलमानों के पक्ष में काम किया है. उदयपुर में कन्हैया लाल की हत्या एक ऐतिहासिक घटना लगती है, जिसके बारे में ज्यादातर मतदाता बात करते है. वे बताते हैं कि ‘शांतिपूर्ण’ राज्य में इस तरह की क्रूरता कभी नहीं सुनी गई. हम टोंक में युवाओं के एक समूह से मिले, जब हमने उनसे पूछा कि क्या वे पायलट समर्थक हैं तो वे नाराज हो गए. टोंक में मुस्लिम आबादी काफी है.उन्होंने कहा, “हम भाजपा के साथ हैं, हम तिलक लगाते हैं.”
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FIRST PUBLISHED : October 30, 2023, 10:29 IST