Wednesday, June 18, 2025
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Lok Sabha Election News: 17 चुनाव और हार… क्‍या गांधी परिवार का ‘आख‍िरी क‍िला’ भी होगा ध्‍वस्‍त? 2024 चुनाव में कांग्रेस को सता रहा है डर


1977 के लोकसभा चुनाव का प्रचार चल रहा था. एक शाम हमारे रायबरेली संवाददाता ने खबर दी कि आज एक चुनाव सभा में राजनारायण ने कांग्रेस के चुनाव चिह्न गाय-बछड़ा को इंदिरा गांधी और संजय गांधी की निशानी बताया है. खबर बताने वाले ने राजनारायण के अंदाजे बयां का पूरी नाटकीयता से विवरण दिया था. बावजूद इसके कि इमर्जेंसी उस समय तक हटी नहीं थी और पत्रकारों के मन का भय भी कायम था. बताने वाले को पता था कि जरूरी नहीं कि वह खबर छपे. उस समय मीडिया भी क्या था, सिर्फ अखबार जिनपर संयम की तलवार थी. सवाल था कि इस खबर को हम किस तरह से छापे. बहरहाल वह खबर बीबीसी रेडियो ने सुनाई, तो बड़ी तेजी से चर्चित हुई. मुझे याद नहीं कि अखबार में छपी या नहीं. वह दौर था जब खबरें अफवाहें बनकर चर्चित होती थीं. मुख्यधारा के मीडिया में उनका प्रवेश मुश्किल होता था. चुनाव जरूर हो रहे थे, पर बहुत कम लोगों को भरोसा था कि कांग्रेस हारेगी.

रायबरेली पर पूरे देश की निगाहें थीं. चुनाव परिणाम की रात लखनऊ के विधानसभा मार्ग पर स्थित पायनियर लिमिटेड के दफ्तर के गेट पर हजारों की भीड़ जमा थी. दफ्तर के बाहर बड़े से बोर्ड पर एक ताज़ा सूचनाएं लिखी जा रही थीं. गेट के भीतर उस ऐतिहासिक बिल्डिंग के दाएं छोर पर पहली मंजिल में हमारे संपादकीय विभाग में सुबह की शिफ्ट से आए लोग भी देर रात तक रुके हुए थे. बाहर की भीड़ जानना चाहती थी कि रायबरेली में क्या हुआ? शुरू में खबरें आईं कि इंदिरा गांधी पिछड़ रही हैं, फिर लंबा सन्नाटा खिंच गया. कोई खबर नहीं. उस रात की कहानी बाद में पता लगी कि किस तरह से रायबरेली के तत्कालीन जि‍ला मजिस्ट्रेट विनोद मल्होत्रा ने अपने ऊपर पड़ते दबाव को झटकते हुए इंदिरा गांधी की पराजय की घोषणा की. बहरहाल रायबरेली और वहां के डीएम का नाम इतिहास में दर्ज हो गया.

एक ही प्रोडक्ट बार-बार लॉन्च करने के चक्कर में कांग्रेस: पीएम मोदी
इंदिरा गांधी की उस ऐतिहासिक पराजय के 47 साल बाद 17वीं लोकसभा के अंतिम सत्र में राष्ट्रपति के अभिभाषण का जवाब देते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सदा की भांति परिवार-केंद्रित कांग्रेस पार्टी पर निशाना लगाते हुए कहा, एक ही प्रोडक्ट बार-बार लॉन्च करने के चक्कर में कांग्रेस की दुकान पर ताला लगने की नौबत आ गई है. उन्होंने एक बात और कही, जिसपर कम लोगों का ध्यान गया है. उन्होंने कहा, विपक्ष चुनाव लड़ने का साहस खो चुका है. कुछ लोग अपनी सीट बदल रहे हैं और कुछ राज्यसभा के रास्ते संसद आना चाहते हैं. उनका इशारा किस तरफ था?

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राहुल गांधी

राहुल गांधी की हार के बाद से बीजेपी के हौसले बढ़े
लोकसभा की 80 सीटों के साथ देश की राजनीति में उत्तर प्रदेश सबसे बड़ा अखाड़ा है और बीजेपी के हाथों में तुरुप का सबसे बड़ा पत्ता. वह राज्य की उन सीटों पर तो ध्यान दे ही रही है, जिन पर 2019 में उसे जीत मिली थी, साथ ही उन 14 को जीतने की योजना भी बना रही है, जहां उसे हार मिली थी. इन 14 में रायबरेली भी शामिल है, जो फिलहाल कांग्रेस का अंतिम गढ़ है और यूपी में बीजेपी का पसंदीदा निशाना. 2019 में अमेठी में राहुल गांधी की हार के बाद से बीजेपी के हौसले बढ़े हुए हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य में केवल दो सीटें कांग्रेस के पास बची रह गई थीं. एक रायबरेली और दूसरी अमेठी. उसके अगले चुनाव में राहुल गांधी की पराजय ने परिवार के वर्चस्व को लगभग ध्वस्त कर दिया.

आजादी के बाद से केवल 3 बार हारी कांग्रेस
स्वतंत्रता के बाद से हुए 17 चुनावों में से रायबरेली में केवल तीन बार पार्टी की हार हुई है. इस क्षेत्र ने इंदिरा गांधी को जिताया, हराया और फिर जिताया. वह उतार-चढ़ाव का दौर था. पर आज कांग्रेस का रथ ढलान पर है. इस बार सवाल है कि क्या 18वीं लोकसभा का चुनाव रायबरेली में चौथी पराजय लिखेगा? कयास हैं कि सोनिया गांधी शायद इसबार यहां से चुनाव नहीं लड़ेंगी. ऐसे कयास 2019 के चुनाव के पहले भी थे, पर अंततः उन्होंने लड़ने का निश्चय किया. पर पिछले चुनाव में अमेठी से राहुल गांधी की पराजय के बाद से पार्टी का आत्मविश्वास डोला हुआ है.

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सोन‍िया गांधी

सोन‍िया राज्‍यसभा से जाएंगी संसद
सोनिया गांधी क्या राज्यसभा का रास्ता पकड़ेंगी? इसका संकेत अगले हफ्ते राज्यसभा के चुनाव में भी मिल सकता है. उनके स्वास्थ्य को लेकर भी दिक्कतें हैं, पर ज्यादा बड़ा खतरा पराजय की संभावना का है. वे लड़ें या हटें, दोनों बातें महत्वपूर्ण साबित होंगी. उसका प्रतीकात्मक असर समूची राजनीति पर नज़र आएगा. संभव यह भी है कि परिवार की एक और सदस्य प्रियंका गांधी को यहाँ से उतारा जाए. ऐसा हुआ, तो यह भी महत्वपूर्ण परिघटना होगी. राहुल गांधी शायद अमेठी और वायनाड से फिर लड़ें, पर सोनिया गांधी दो जगह से लड़ने जाएंगी, तो मोदी के तंज उन्हें सुनने पड़ेंगे.

सोन‍िया गांधी का गिर रहा है वोट प्रत‍िशत
सोनिया गांधी लगातार चार बार रायबरेली से जीत चुकी हैं, पर उनके वोट प्रतिशत में गिरावट आती जा रही है. 2004 में उन्हें इस इलाके से 80.49 प्रतिशत वोट मिले, जो 2009 में 72.23, 2014 में 63.80 और 2019 में 55 प्रतिशत रह गए. 2019 में लोकसभा सीट जीतने के बावजूद 2022 के विधानसभा चुनाव में रायबरेली और अमेठी में कांग्रेस को हार का सामना करना पड़ा. इसका मतलब है कि संगठन से स्तर पर भी पार्टी में गिरावट है. ऐसे में फिर से लड़ने में जोखिम हैं, पर मैदान छोड़ने पर प्रतिष्ठा को ठेस लगेगी.
रायबरेली, अमेठी और एक हद तक सुलतानपुर की यह पट्टी ‘नेहरू-गांधी खानदान’ के लिए बेहद महत्वपूर्ण रही है. फिरोज़ गांधी, इंदिरा गांधी, संजय गांधी, राजीव गांधी, सोनिया गांधी और राहुल गांधी की यह राजनीतिक नर्सरी क्या उजड़ जाएगी? ‘खानदान’ के दो गैर-कांग्रेसी सदस्यों मेनका और वरुण गांधी को भी पड़ोस की सुलतानपुर सीट ने सहारा दिया है.

इंदिरा गांधी ने रायबरेली को पारिवारिक विरासत के रूप में ही अंगीकार किया
इन सीटों पर कांग्रेस के ज्यादातर प्रत्याशी या तो नेहरू-गांधी परिवार से रहे हैं या फिर उनके बहुत करीबी. इस इलाके के गांव-गांव में तमाम ऐसे परिवार मिलेंगे, जिनकी नेहरू-गांधी परिवार तक सीधी पहुंच रही है. इंदिरा गांधी 1977 के बाद फिर यहां से जीतीं. संजय गांधी के निधन के बाद अमेठी से राजीव गांधी जीते. इंदिरा गांधी से पहले फिरोज गांधी 1952 और 1957 में रायबरेली से चुनाव जीते थे. उनके चुनाव प्रचार में इंदिरा गांधी ने भी भाग लिया था. इस वजह से वे भी इस इलाके से परिचित थीं. यह अलग बात है कि फिरोज गांधी ने अपने कृतित्व में कांग्रेस के नेतृत्व के साथ कई बार टकराव मोल लिया और नेहरू-सरकार को कठघरे में खड़ा किया. फिरोज गांधी को ‘खानदान’ की श्रेणी में रखने के पहले देखना चाहिए कि उन्होंने सरकार की आलोचना करने में जितना समय लगाया, उतना खानदान को बचाने में नहीं लगाया. 1959 में केरल की कम्युनिस्ट सरकार को बर्खास्त करने का मौका हो या मूंधड़ा मामले का. परिवारवाद से उनकी अरुचि भी कभी छिपी नहीं. फिरोज गांधी के निधन के कारण 1960 में हुए चुनाव में इंदिरा गांधी ने भाग नहीं लिया. 1962 में रायबरेली को सुरक्षित सीट बना दिया गया. 1967 में कुछ विलंब से इंदिरा गांधी ने रायबरेली को पारिवारिक विरासत के रूप में ही अंगीकार किया.

अमेठी और रायबरेली के अलावा इसी इलाके की एक तीसरी सीट सुलतानपुर की है. उसका रिश्ता भी नेहरू-गांधी परिवार से है. सुलतानपुर एक तरह से संजय गांधी की राजनीतिक नर्सरी थी. उसका कुछ हिस्सा अमेठी में पड़ता है. सुलतानपुर से वरुण गांधी का राजनीतिक जीवन भी शुरू हुआ था. अब मेनका गांधी वहाँ का प्रतिनिधित्व कर रही हैं. संजय गांधी के निधन के बाद नेहरू-गांधी परिवार की यह धारा कांग्रेस से अलग बहती है. कभी यूपी की फूलपुर लोकसभा सीट परिवार के नाम से पहचानी जाती थी, जब जवाहर लाल नेहरू ने लगातार तीन बार इसका प्रतिनिधित्व किया. उनके निधन के बाद विजय लक्ष्मी पंडित ने भी इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया. वह गढ़ बनने के पहले ही ढह गया था, पर रायबरेली का गढ़ अभी तक बचा था. क्या वह भी टूटेगा?

Tags: Loksabha Elections, Sonia Gandhi



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