Uttarakhand UCC Bill: उत्तराखंड में समान नागरिक संहिता या यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू होने के बाद हिंदू, मुसलमान, ईसाई समुदाय के लिए शादी, तलाक, संपत्ति, विरासत जैसी तमाम चीजें बदल गई हैं. अब अलग-अलग धर्म के अलग कानून या पर्सनल लॉ (Personal Law) की जगह व्यक्तिगत मामलों पर एक ही कानून लागू होगा.
मुस्लिमों के लिए क्या बदला?
पहले बात करते हैं मुसलमानों की. मुस्लिम धर्म में निकाह, तलाक, पारिवारिक संपत्ति का बंटवारा जैसी चीजें मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट 1937 के तहत मैनेज की जाती थीं. अब यूसीसी (Uniform Civil Code) में शरीयत की तमाम चीजें बदल दी गई हैं. मसलन मुस्लिम समुदाय में लड़कियों की शादी की उम्र 18 और लड़कों की 21 कर दी गई है. शरीयत (Shariat Law 1937) लड़कियों की 13 की उम्र में शादी की इजाजत देता है. इसी तरह, निकाह हलाला और इद्दत भी प्रतिबंधित कर दी गई है. सबसे महत्वपूर्ण बात है कि मुस्लिमों में बहु-विवाह को भी गैर-कानूनी घोषित कर दिया गया है. दूसरे धर्मों में यह पहले से प्रतिबंधित है.
यह भी पढ़ें: UCC के बाद मुसलमानों के 87 साल पुराने कौन से अधिकार छिन गए?
बहु-विवाह वाले मुसलमानों का क्या?
इस्लामी कानून या शरीयत में 4 शादियां जायज बताई गई हैं. उत्तराखंड UCC में बहु-विवाह या पॉलीगेमी (Polygamy) प्रतिबंधित होने के बाद सवाल है कि अब राज्य के ऐसे मुसलमानों का क्या होगा, जिन्होंने पहले से एक से ज्यादा शादियां की हैं. मुस्लिम बहु-विवाह के मामले में सबसे महत्वपूर्ण बात संपत्ति का बंटवारा या विरासत है. उत्तराखंड के यूसीसी कानून में इस बारे में कोई स्पष्ट दिशा-निर्देश नहीं है कि जिन्होंने पहले से शरीयत के मुताबिक बहु-विवाह कर रखा है, उनके केस में विरासत का क्या होगा. एक से ज्यादा बीवियों में संपत्ति का बंटवारा कैसे होगा? और ऐसे विवाह या Polygamy के मामले में जीवनसाथी को क्या और कितना हिस्सा मिलेगा.
उदाहरण के लिए, हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन अधिनियम) 1956 या HSA में यह साफ-साफ कहा गया है कि अगर हिंदू समुदाय (Hindu Community) के किसी शख़्स की एक से ज्यादा विधवा हैं, तो संपत्ति का बंटवारा सबमें बराबर होगा. अभी तक मुस्लिम पर्सनल लॉ के तहत भी यही स्थिति थी, लेकिन UCC (Uniform Civil Code) में साफ नहीं है.
किस धर्म में सर्वाधिक बहु-विवाह?
इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर पॉपुलेशन साइंसेज (आईआईपीएस) की एक रिपोर्ट से पता लगता है कि भारत में मुस्लिम समुदाय में सर्वाधिक बहु-विवाह के मामले में. IIPS ने 2022 में एक स्टडी रिपोर्ट प्रकाशित की थी, जो राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस) के आंकड़ों पर आधारित थी. इस रिपोर्ट में बताया गया था कि भारत में होने वाले कुल बहु-विवाह या पॉलीगेमी (Polygamy) के मामले में सबसे आगे मुसलमान हैं. जिनकी संख्या 1.9% है. इसके बाद अन्य धार्मिक समुदाय आते हैं, जिनकी संख्या 1.6% और तीसरे नंबर पर हिंदू हैं, जिनकी संख्या 1.3% है.
हिंदूओं के लिए क्या बदला?
हिंदुओं की बात करें तो शादी-विवाह, तलाक, संपत्ति का बंटवारा जैसे व्यक्तिगत मसले हिंदू मैरिज एक्ट, स्पेशल मैरिज एक्ट 1954, भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम 1925, हिंदू उत्तराधिकार (संशोधन) अधिनियम 1956 के तहत मैनेज की जाती हैं. अब यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू होने के बाद हिंदू समुदाय के लिए जो सबसे बड़ा बदलाव हुआ है वह पैतृक संपत्ति और अर्जित संपत्ति से जुड़ा है. उत्तराखंड के यूनिफॉर्म सिविल कोड की कैटेगरी-1 में अब माता-पिता दोनों को शामिल किया गया है.
पहले अगर किसी हिंदू शख्स की बिना वसीयत मौत हो जाती थी तो उसकी संपत्ति कैटेगरी-1 के उत्तराधिकारियों में बंटती थी, जिसमें उसकी मां शामिल थीं. पिता नहीं. कैटेगरी-1 का उत्तराधिकारी न होने की स्थिति में संपत्ति कैटेगरी-2 के उत्तराधिकारी को जाती थी, जिसमें पिता था. अब कैटेगरी-1 में बच्चे, विधवा, माता और पिता दोनों शामिल होंगे.

ईसाईयों के लिए क्या बदला?
ईसाई समुदाय की बात करें तो तलाक और विरासत दो ऐसी चीजें, जो अब बदल गई हैं. अभी ‘ईसाई तलाक अधिनियम 1869’ (Christian Divorce Act 1869) की धारा 10A(1) कहती है कि अभी ईसाई समुदाय के किसी शख़्स को तलाक का आवेदन देने से पहले अपने पार्टनर से कम से कम दो साल अलग रहना जरूरी है. इसके अलावा 1925 के उत्तराधिकार अधिनियम के तहत ईसाई महिलाओं को उनके मृत बच्चों की संपत्ति में कोई हिस्सा नहीं मिलता था, लेकिन उत्तराखंड यूनिफॉर्म सिविल कोड में यह दोनों प्रावधान खत्म कर दिए गए हैं.
.
Tags: Marriage, Muslim Marriage, Uniform Civil Code, Uttarakhand news
FIRST PUBLISHED : February 13, 2024, 15:42 IST