Friday, June 20, 2025
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खतरनाक है ‘क्यासानूर फॉरेस्ट डिजीज’, कई राज्‍यों में अलर्ट जारी, ऐसे लक्षण दिखें तो हो जाएं सावधान


हाइलाइट्स

साल 1957 में सबसे पहले इसकी पहचान कर्नाटक के क्‍यासानूर जंगल में हुई थी.
3 से 8 दिनों के बाद अचानक ठंड लगना, बुखार और सिरदर्द इसका पहला लक्षण है.

Kyasanur Forest Disease symptoms : क्‍यासानूर फॉरेस्‍ट डिजीज यानी मंकी फीवर एक बार फिर लोगों के लिए मुसीबत बनता जा रहा है. खासतौर पर कर्नाटक में यह तेजी से फैल रहा है. हालात हाथ से बाहर जाता देख कई राज्‍यों ने अलर्ट जारी कर दिया है. यही नहीं, यह निर्देश जारी किया जा रहा है कि लोग इसके बारे में जहां तक हो सके, जानकारी रखें और खुद को इससे बचाने के लिए उचित कदम उठाएं. अगर इसके किसी तरह के लक्षण दिखें तो समय रहते पहचान कर जल्‍द से जल्‍द इलाज कराएं. ऐसे में हम आपको बता रहे हैं कि आखिर यह बीमारी है क्‍या और यह किस तरह फैलती है. यही नहीं, इसके होने पर क्‍या लक्षण नजर आते हैं.

संक्रमण होते पर दिखते हैं ये लक्षण
अमेरिकी सेंटर्स ऑफ डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन के मुताबिक, संक्रमण के 3 से 8 दिनों के बाद अचानक ठंड लगना, बुखार और सिरदर्द इसका पहला लक्षण होता है.

-शुरुआती लक्षण शुरू होने के 3 से 4 दिनों के बाद उल्टी, गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षण और नाक और मसूड़े से ब्‍लीडिंग की समस्या शुरू होती है और मांसपेशियों में गंभीर दर्द हो सकता है.

-मरीजों का ब्‍लड प्रेशर एकाएक कम होने लगता है, प्लेटलेट कम होने लगती है, लाल रक्त कोशिका और सफेद रक्त कोशिका की गिनती में तेजी से गिरावट आने लगती है.

-मंकी फीवर में अनुमानित मृत्यु दर 3 से 5% है. न्यूरोलॉजिकल प्रॉब्लम्स भी नजर आ सकते हैं.

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कैसे फैलता है क्‍यासानूर फॉरेस्‍ट डिजीज
दरअसल, इस बीमारी को फैलाने वाला वायरस जानवरों के शरीर पर पलने वाले टिक्स (किलनी) में पनपता है. जब यह टिक्‍स किसी जानवर को काटता है तो वायरस उस जानवर में प्रवेश कर जाता है. इस तरह जब कोई इंसान उस जानवर के संपर्क में आता है तो वह इंसान संक्रमित हो जाता है और बीमार हो जाता है. यही नहीं, संक्रमित टिक अगर इंसान को काट ले तो यह इंसान के पूरे शरीर में फैल सकता है. यह बीमारी मुख्‍य रूप में इंसान और बंदरों को चपेट में लेता है. साल 1957 में सबसे पहले इसकी पहचान कर्नाटक के क्‍यासानूर जंगल में हुई थी जहां एक बंदर इसस बीमार हो गया था.

क्या है इलाज
अब तक इस बीमारी का कोई इलाज नहीं है लेकिन अगर मरीज को अस्पताल में लाया जाए तो कई थेरेपी की मदद से इसे ठीक किया जा सकता है.

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Tags: Health, Karnataka, Lifestyle



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