Friday, June 27, 2025
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hanging of Zulfikar Ali Bhutto was historical mistake Debate in Pakistan Supreme Court family members could not offered soil – International news in Hindi


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पाकिस्तान में इन दिनों पूर्व राष्ट्रपति और पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को 45 साल पहले फांसी के फंदे पर लटकाए जाने के मामले में सुनवाई हो रही है। 9 जजों की संवैधानिक पीठ इस बात की जांच कर रही है कि क्या तब पूर्व पीएम के साथ अन्याय हुआ था। इस मामले में बहस के दौरान सुप्रीम कोर्ट के रिटायर्ड जज और क्रिमिनल लॉ के एक्सपर्ट मंजूर मलिक ने  जुल्फिकार अली भुट्टो के मुकदमे में कई बड़ी खामियों की ओर इशारा किया है। 

पीपीपी की तरफ से डाली गई समीक्षा याचिका पर राष्ट्रपति ने टॉप कोर्ट से इस मामले में राय मांगी थी। इसी पर सुनवाई के दौरान मलिक ने जोर देकर कहा है कि यह ट्रायल ऑफ मर्डर नहीं बल्कि मर्डर ऑफ ट्रायल था। रिटायर्ड जस्टिस मलिक ने सुप्रीम कोर्ट में दलील देते हुए कहा कि जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी देना एक ऐतिहासिक गलती थी।

हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने रखा था बरकरार

बता दें कि 45 साल पहले 4 अप्रैल 1979 को तड़के सुबह करीब दो बजे पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो को रावलपिंडी जेल में फांसी पर लटका दिया गया था। उन पर अपनी ही पार्टी के एक संस्थापक सदस्य अहमद रजा कसूरी की हत्या की साजिश में शामिल होने का आरोप था। बिना निचली अदालत में सुनवाई हुए सीधे लाहौर हाई कोर्ट ने भुट्टो को इस मामले में दोषी करार दे दिया था और फांसी की सजा सुना दी थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने भी 4-3 के बहुमत से बरकरार रखा था।

बेटी बेनजीर मां के साथ थीं कैद:

जुल्फिकार अली भुट्टो की बेटी और पाकिस्तान की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो ने अपनी आत्मकथा डाउटर ऑफ डेस्टिनी : ऐन ऑटोबायोग्राफी में लिखा है कि उनके पिता की हत्या की गई थी। जब भुट्टो को फांसी दी गई थी, तब बेनजीर अपनी मां के साथ जेल से कुछ ही मील की दूरी पर सिहाला में एक सूनसान पुलिस प्रशिक्षण शिविर में कैद कर रखी गई थीं। कहा जाता है कि जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी दिए जाने के पीछे सैन्य तानाशाह जिया उल हक की साजिश थी।

न्याय की हत्या हुई; पाकिस्तान में पूर्व PM की फांसी पर 45 साल बाद क्यों SC में बहस, मानी जा रही गलती

जेलर ने चुरा ली थी अंगूठी:

बेनजीर ने अपनी आत्मकथा में लिखा है, “उस रात मैं सो नहीं सकी थी। मैं कई बार दर्द, भय से कराह रही थी। जब सुबह हुई तो एक जूनियर जेलर ने वहां आकर हमें बताया कि मेरे पिता को फांसी दी जा चुकी है। उसने मृत्यु कोठरी से लाकर हमें पिता की एक-एक वस्तु दीं। उनमें मेरे पिता की सलवार कमीज, लंबी कमीज और ढीली पैंट जिसे उन्होंने अंत तक पहना था, क्योंकि उन्होंने आपराधिक कैदी की तरह जेल की ड्रेस पहनने से इनकार कर दिया था और एक राजनीतिक कैदी बने रहना पसंद किया था। इसके अलावा खाने का टिफिन बॉक्स जिसे उसने पिछले दस दिनों से मना कर दिया था;बिस्तर के रोल, उनके पीने का प्याला… शामिल था लेकिन उन सबमें अंगूठी नहीं थी।” बतौर बेनजीर काफी पूछताछ करने के बाद जेलर ने आखिरकार अंगूठी सौंप दी थी।

परिजनों की दो मुट्ठी मिट्टी भी नसीब नहीं हुई:

बतौर बेनजीर, हम अहले सुबह अपने पिता को अपने पूर्वजों के परिवारिक कब्रिस्तान में दफनाने को तैयार थे लेकिन हमें बताया गया कि उन्हें दफनाया जा चुका है। भुट्टो को अंतिम घड़ी में परिवार से दूर रखा गया। यहां तक कि उन्हें कब्र में परिजनों की दो मुट्ठी मिट्टी भी नसीब नहीं हो सकी थी। 5 जनवरी 1928 को अविभाजित भारत के सिंध प्रांत के लरकाना में जन्मे जुल्फिकार अली भुट्टो पाकिस्तान के नौवें प्रधानमंत्री थे। दिसंबर 1973 से 1977 तक वह पाकिस्तान के प्रधानमंत्री रहे थे। 



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