Sunday, June 29, 2025
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Explainer: जानें क्या है ‘एक देश, एक चुनाव’ का आइडिया, इससे क्या फायदे क्या नुकसान


पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद (ramnath kovind) की अध्यक्षता में ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ (One Nation One Election) को लेकर गठित उच्च स्तरीय समिति ने गुरुवार को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. उच्च स्तरीय समिति ने राष्ट्रपति भवन में राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (Pesident Draupadi Murmu)  से मुलाकात की और अपनी रिपोर्ट सौंपी. इस दौरान केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह भी मौजूद रहे. इसे लोकसभा चुनाव से पहले एक बड़ी घटना के तौर पर देखा जा रहा है. रामनाथ कोविंद समिति की यह रिपोर्ट कुल 18,626 पन्नों की है. बताया गया कि हाई लेवल कमेटी ने हितधारकों, विशेषज्ञों के साथ व्यापक परामर्श और 191 दिनों तक लगातार काम करने के बाद यह रिपोर्ट तैयार की है. माना जा रहा है कि इस रिपोर्ट में 2029 में एक साथ चुनाव कराने की सिफारिश की गई है. 

हर कुछ महीनों के बाद देश के किसी न किसी हिस्से में चुनाव हो रहे होते हैं. यह हकीकत है कि देश में पिछले करीब तीन दशकों में एक साल भी ऐसा नहीं बीता, जब चुनाव आयोग (Election Commission of India) ने किसी न किसी राज्य में कोई चुनाव न करवाया हो. इस तरह के तमाम फैक्ट्स के हवाले से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने ‘एक देश एक चुनाव’ की बात छेड़ी थी. अव्वल तो यह आइडिया क्या है? इस सवाल के बाद बहस यह है कि जो लोग इस आइडिया का समर्थन करते हैं तो क्यों और जो नहीं करते, उनके तर्क क्या हैं.

जानकार तो यहां तक कहते हैं ​कि भारत का लोकतंत्र चुनावी राजनीति बनकर रह गया है. लोकसभा से लेकर विधानसभा और नगरीय निकाय से लेकर पंचायत चुनाव… कोई न कोई भोंपू बजता ही रहता है और रैलियां होती ही रहती हैं. सरकारों का भी ज़्यादातर समय चुनाव के चलते अपनी पार्टी या संगठन के हित में ही खर्च होता है. इन तमाम बातों के मद्देनजर इस विषय के कई पहलू टटोलते हुए जानते हैं कि इस पर चर्चा क्यों जरूरी है.

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क्या है ‘एक देश एक चुनाव’ का आइडिया?
इस नारे या जुमले का वास्तविक अर्थ यह है कि संसद, विधानसभा और स्थानीय निकाय चुनाव एक साथ, एक ही समय पर हों. और सरल शब्दों में ऐसे समझा जा सकता है कि वोटर यानी लोग एक ही दिन में सरकार या प्रशासन के तीनों स्तरों के लिए वोटिंग करेंगे. अब चूंकि विधानसभा और संसद के चुनाव केंद्रीय चुनाव आयोग संपन्न करवाता है और स्थानीय निकाय चुनाव राज्य चुनाव आयोग, तो इस ‘एक चुनाव’ के आइडिया में समझा जाता है कि तकनीकी रूप से संसद और विधानसभा चुनाव एक साथ संपन्न करवाए जा सकते हैं.

क्या है इस आइडिया पर बहस?
कुछ विद्वान और जानकार इस विचार से सहमत हैं तो कुछ असहमत. दोनों के अपने-अपने तर्क हैं. पहले इन तर्कों के मुताबिक इस तरह की व्यवस्था से जो फायदे मुमकिन दिखते हैं, उनकी चर्चा करते हैं…

1. राजकोष को फायदा और बचत: ज़ाहिर है कि बार बार चुनाव नहीं होंगे, तो खर्च कम होगा और सरकार को काफी बचत होगी. और यह बचत मामूली नहीं बल्कि बहुत बड़ी होगी. इसके साथ ही, यह लोगों और सरकारी मशीनरी के समय व संसाधनों की बड़ी बचत भी होगी.

2. विकास कार्य में तेज़ी: चूंकि हर स्तर के चुनाव के वक्त चुनावी क्षेत्र में आचार संहिता लागू होती है, जिसके तहत विकास कार्य रुक जाते हैं. इस संहिता के हटने के बाद विकास कार्य व्यावहारिक रूप से प्रभावित होते हैं क्योंकि चुनाव के बाद व्यवस्था में काफी बदलाव हो जाते हैं, तो फैसले नए सिरे से होते हैं.

3. काले धन पर लगाम: संसदीय, सीबीआई और चुनाव आयोग की कई रिपोर्ट्स में कहा जा चुका है कि चुनाव के दौरान काले धन को खपाया जाता है. अगर देश में बार बार चुनाव होते हैं, तो एक तरह से समानांतर अर्थव्यवस्था चलती रहती है.

4. सुचारू प्रशासन: एक चुनाव होने से सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल एक ही बार होगा लिहाजा कहा जाता है कि स्कूल, कॉलेज और ​अन्य विभागों के सरकारी कर्मचारियों का समय और काम बार बार प्रभावित नहीं होगा, जिससे सारी संस्थाएं बेहतर ढंग से काम कर सकेंगी.

5. सुधार की उम्मीद: चूंकि एक ही बार चुनाव होगा, तो सरकारों को धर्म, जाति जैसे मुद्दों को बार बार नहीं उठाना पड़ेगा, जनता को लुभाने के लिए स्कीमों के हथकंडे नहीं होंगे, बजट में राजनीतिक समीकरणों को ज़्यादा तवज्जो नहीं देना होगी, यानी एक बेहतर नीति के तहत व्यवस्था चल सकती है.

ऐसे और भी तर्क हैं कि एक बार में ही सभी चुनाव होंगे तो वोटर ज़्यादा संख्या में वोट करने के लिए निकलेंगे और लोकतंत्र और मज़बूत होगा. बहरहाल, अब आपको ये बताते हैं कि इस आइडिया के विरोध में क्या प्रमुख तर्क दिए जाते हैं.

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क्षेत्रीय पार्टियां होंगी खारिज : चूंकि भारत बहुदलीय लोकतंत्र है इसलिए राजनीति में भागीदारी करने की स्वतंत्रता के तहत क्षेत्रीय पार्टियों का अपना महत्व रहा है. चूंकि क्षेत्रीय पार्टियां क्षेत्रीय मुद्दों को तरजीह देती हैं इसलिए ‘एक चुनाव’ के आइडिया से छोटी क्षेत्रीय पार्टियों के सामने अस्तित्व का संकट खड़ा हो जाएगा. क्योंकि इस व्यवस्था में बड़ी पार्टियां धन के बल पर मंच और संसाधन छीन लेंगी.

स्थानीय मुद्दे पिछड़ेंगे : चूंकि लोकसभा और विधानसभा चुनाव अलग मुद्दों पर होते हैं इसलिए दोनों एक साथ होंगे तो विविधता और विभिन्न स्थितियों वाले देश में स्थानीय मुद्दे हाशिये पर चले जाएंगे. ‘एक चुनाव’ के आइडिया में तस्वीर दूर से तो अच्छी दिख सकती है, लेकिन पास से देखने पर उसमें कई कमियां दिखेंगी. इन छोटे छोटे डिटेल्स को नज़रअंदाज़ करना मुनासिब नहीं होगा.

चुनाव नतीजों में देर : ऐसे समय में जबकि तमाम पार्टियां चुनाव पत्रों के माध्यम से चुनाव करवाए जाने की मांग करती हैं, अगर एक बार में सभी चुनाव करवाए गए तो अच्छा खास समय चुनाव के नतीजे आने में लग जाएगा. इस समस्या से निपटने के लिए क्या विकल्प होंगे इसके लिए अलग से नीतियां बनानी होंगी.

संवैधानिक समस्या : देश के लोकतांत्रिक ढांचे के तहत य​ह आइडिया सुनने में भले ही आकर्षक लगे, लेकिन इसमें तकनीकी समस्याएं काफी हैं. मान लीजिए कि देश में केंद्र और राज्य के चुनाव एक साथ हुए, लेकिन यह निश्चित नहीं है कि सभी सरकारें पूर्ण बहुमत से बन जाएं. तो ऐसे में क्या होगा? ऐसे में चुनाव के बाद अनैतिक रूप से गठबंधन बनेंगे और बहुत संभावना है कि इस तरह की सरकारें 5 साल चल ही न पाएं. फिर क्या अलग से चुनाव नहीं होंगे?

यही नहीं, इस विचार को अमल में लाने के लिए संविधान के कम से कम छह अनुच्छेदों और कुछ कानूनों में संशोधन किए जाने की जरूरत पेश आएगी.

संसाधनों की दरकार : आबादी के लिहाज़ से भारत चूंकि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र है इसलिए जानकारों के मुताबिक यहां एक साथ सभी राज्यों, केंद्रशासित प्रदेशों के साथ ही संसद के लिए चुनाव करवाए जाने के लिए मौजूदा संसाधनों और मशीनरी से कम से कम दोगुने की जरूरत पेश आएगी.

क्या है निष्कर्ष?
अभी निष्कर्ष नहीं निकला है. लेकिन, इस बहस में ध्यान रखने की बात यह है कि इस विचार को अमल में लाने के लिए एक आम राजनीतिक सहमति बहुत जरूरी है. और जब बहस में तर्क दोनों पक्षों के ठीक लग रहे हों, तब तय यह करना होता कि क्या कीमत चुकाने की शर्त पर आप कोई फैसला करते हैं. इसके कई और पहलू हैं. फिलहाल यह भी जान लीजिए कि एक सर्वे के मुताबिक पाया गया कि एक साथ चुनाव हुए तो एक आम भारतीय वोटर एक ही पार्टी को राज्य और केंद्र के लिए वोट करे, इसके चांस 77% होंग. भारत में चुनावों में धन और ताकत झोंकी जाती है इसलिए इस तथ्य को भी ध्यान में रखना चाहिए. वैसे भी अब तो जो होगा वो पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की अध्यक्षता वाली समिति की सिफारिशों के आधार पर होगा.

Tags: 2024 Loksabha Election, Loksabha Elections, One Nation One Election, Ramnath kovind



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