हाइलाइट्स
पहले चुनाव 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक, 5 माह चले थे.
देश के पहले लोकसभा चुनाव में 489 सीटों के लिए मतदान हुआ था.
इस चुनाव में कांग्रेस ने 364 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया था.
देश में 2024 के लोकसभा चुनावों का ऐलान हो चुका है. सात दशकों से अधिक समय में देश में 15 प्रधानमंत्रियों को देखा है. 18वीं लोकसभा चुनने का काम 19 अप्रैल से 1 जून के बीच किया जाएगा. लेकिन क्या आप जानते हैं कि देश में पहला चुनाव कब हुआ था. दरअसल 26 जनवरी 1950 को देश में संविधान तो लागू हो गया, लेकिन लोकतंत्र बनने के लिए जरूरी थे आम चुनाव. पहले चुनाव लगभग 72 साल पहले 25 अक्टूबर 1951 से 21 फरवरी 1952 तक लगभग पांच माह चले थे.
हिंदुस्तान का पहला आम चुनाव कई चीजों के अलावा एक विश्वास का विषय था. एक नया नया आजादा हुआ मुल्क सार्वभौम मताधिकार के तहत सीधे तौर पर अपने हुक्मरानों को चुनने जा रहा था. इसने वो रास्ता अख्तियार नहीं किया जो पश्चिमी देशों ने किया था. वहां पहले कुछ शक्तिशाली तबकों को ही मतदान का अधिकार दिया गया था. लेकिन हिंदुस्तान में ऐसा नहीं हुआ. देश 1947 में आजादा हुआ और इसके दौ सालों के बाद यहां एक चुनाव आयोग का गठन कर दिया गया.
सुकुमार सेन बने पहले मुख्य चुनाव आयुक्त
इतिहासकार रामचंद्र गुहा की किताब ‘भारत: गांधी के बाद’ के मुताबिक मार्च 1950 में सुकुमार सेन को मुख्य चुनाव आयुक्त बनाया गया. इसके अगले ही महीने जनप्रतिनिधि कानून संसद में पारित कर दिया गया. इस कानून को पेश करते हुए संसद में तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने ये उम्मीद जाहिर की थी कि साल 1951 के वसंत तक चुनाव करवा लिए जाएंगे. इस मामले में नेहरू की जल्दबाजी समझी जा सकती थी लेकिन जिस व्यक्ति के जिम्मे चुनाव करवाने का काम था, उसके लिए यह मुश्किल काम था.
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करीब 18 करोड़ थे कुल मतदाता
लेकिन सेन ने नेहरू को कुछ दिन इंतजार करने के लिए कहा था. क्योंकि भारत सरकार के किसी भी अधिकारी के पास इतना कठिन और विशाल काम नहीं था जो सुकुमार सेन को सौंपा गया था. उस चुनाव में मतदाताओं की कुल संख्या 17 करोड़ 60 लाख थी. जिसमें से 85 फीसदी ना तो पढ़ सकते थे और ना ही लिख सकते थे. उनमेें से हर एक की पहचान करनी थी, उनका नाम लिखना था और उन्हें पंजीकृत करना था. असल समस्या यह थी कि अधिकांश अशिक्षित मतदाताओं के लिए पार्टी प्रतीक चिह्न, मतदानपत्र और मतपेटी किस तरह की बनाई जाएं.
जागरूकता थी बड़ी चुनौती
तब चुनाव कराने में आयोग के सामने सबसे बड़ी चुनौती मतदाताओं के बीच जागरूकता थी. करीब 18 करोड़ वोटर अपना वोट कैसे डालेंगे इसे बताने के लिए आयोग ने युद्ध स्तर पर जागरूकता अभियान शुरू किया. इसके लिए विशेष तौर पर फिल्म बनाई गई और उन्हें देश भर के 3000 से ज्यादा सिनेमा घरों में दिखाया गया कि वोट किस तरह डालना है. अखबारों के जरिये भी लोगों को जागरूक करने का काम किया गया. लाखों करोड़ों भारतीयों तक ऑल इंडिया रेडियो द्वारा कई कार्यक्रमों के माध्यम से संदेश पहुंचाया गया. उन्हें संविधान, वयस्क मताधिकार का उद्देश्य, मतदाता सूती की तैयारी और मतदान प्रक्रिया के बारे में बताया गया.
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224,000 मतदान केंद्र बनाए गए
आखिरकार 1952 के शुरुआती महीनों में चुनाव करवाया जाना तय हुआ. हालांकि कुछ दुरूह और सुदूर इलाकों में इस काम को पहले अंजाम दिया जाना था. सुकुमार सेन की समस्या को समझने में कुछ आंकड़े हमारी मदद कर सकते हैं. कुल मिलाकर 4500 सीटों पर चुनाव होने थे. करीब 500 सीटें संसद के लिए थीं और शेष प्रांतीय विधानसभाओं की थीं. इस चुनाव में 224,000 मतदान केंद्र बनाए गए और वहां 20 लाख लोहे की मतपेटियां भेजी गई थीं. इन पेटियों को बनाने में 8200 टन इस्पात का इस्तेमाल हुआ.
16,5000 क्लर्कोंं ने टाइप की सूची
छह महीने के अनुबंध पर 16,500 क्लर्क बहाल किए गए ताकि मतदाता सूची को क्षेत्रवार तरीके से टाइप किया जा सके. मतदान पत्रों को छापने में करीब 380,000 कागज के रिम इस्तेमाल किए गए. चुनाव कार्य को सम्पन्न कराने के लिए 56,000 पीठासीन अधिकारियों का चुनाव किया गया और इऩकी सहायता के लिए 280,000 सहायक लगाए गए. इस चुनाव में सुरक्षा के लिए 224,000 पुलिस जवानों को लगाया गया था ताकि हिंसा और मतदान केंद्रों पर गड़बड़ियों को रोका जा सके.
कांग्रेस को मिला था प्रचंड बहुमत
पहले लोकसभा चुनाव में 489 सीटों के लिए मतदान हुआ था. इस चुनाव में कांग्रेस ने 364 सीटें जीतकर प्रचंड बहुमत हासिल किया था. सीपीआई दूसरी सबसे बड़ी पार्टी थी जिसे 16 सीटें मिली थीं. अखिल भारतीय भारतीय जनसंघ (भारतीय जनता पार्टी का पुराना नाम) ने केवल तीन सीटें हासिल की थीं.
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FIRST PUBLISHED : March 17, 2024, 12:41 IST