Sunday, February 23, 2025
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देश के 12वीं क्लास के बच्चे अब राजनीति शास्त्र की किताबों में बाबरी ढांचे के विध्वंस को नहीं पढ़ेंगे। एनसीईआरटी ने किताब में तीन जगह बदलाव का फैसला लिया है, जहां पर 6 दिसंबर 1992 को बाबरी ढांचे के विध्वंस का जिक्र किया गया था। इसकी बजाय राम मंदिर आंदोलन को विस्तार से पढ़ाया जाएगा। इसके अलावा किन आधारों पर सुप्रीम कोर्ट ने राम मंदिर को लेकर फैसला दिया था, यह भी पढ़ाया जाएगा। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक अगले महीने यानी मई से जो नई किताब आएगी, उसमें यह बदलाव दिखेंगे। 

एनसीईआरटी ने अकादमिक वर्ष 2024-25 के लिए ये बदलाव किए हैं। सीबीएसई बोर्ड को इसकी जानकारी दी गई है। केंद्र सरकार को स्कूली शिक्षा पर सलाह देने वाली और सिलेबस तैयार करने वाली संस्था एनसीईआरटी समय-समय पर किताबों में बदलाव भी करती रहती है। हर साल करीब 4 करोड़ छात्र एनसीईआरटी की स्कूली किताबें पढ़ते हैं। एनसीईआरटी ने चैप्टर 8 में यह बदलाव किया है, जिसका शीर्षक है- ‘भारत में आजादी के बाद राजनीति’। राजनीति शास्त्र की किताबों में इस चैप्टर को 2006-07 से शामिल किया गया है। इसमें भारत की राजनीति की उन 5 अहम घटनाओं का जिक्र किया गया है, जो आजादी के बाद घटित हुईं। इनमें से एक अयोध्या आंदोलन होगा।

इसके अलावा जिन 4 अन्य घटनाओं का जिक्र किया गया है, उनमें 1989 में हार के बाद से कांग्रेस का पतन। 1990 में मंडल आयोग का लागू होना। 1991 में आर्थिक सुधारों की शुरुआत होना और उसी साल राजीव गांधी की हत्या होना। इन 5 अहम घटनाओं पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। इसके अलावा अलग-अलग सरकारों के मुख्य कामों का भी जिक्र है। अब तक अयोध्या का जिक्र जिन तीन पन्नों मं था, जिनमें 1986 में ताला खुलने और बाबरी ढांचे के ध्वंस का जिक्र था। इसके अलावा 6 दिसंबर 1992 की घटना के बाद भाजपा शासित राज्यों में राष्ट्रपति शासन लगने और सांप्रदायिक हिंसा की घटनाओं का जिक्र किया गया था।

इस चैप्टर में बाबरी ढांचे के विध्वंस के बाद भारत में सेकुलरिज्म को लेकर छिड़ी नई बहस का भी जिक्र किया गया था। अब तक नई संशोधित पुस्तक नहीं आई है, लेकिन एनसीईआरटी ने बताया है कि नई पुस्तक में बदलाव किए गए हैं। एनसीईआरटी ने अपनी वेबसाइट में बताया है,’राजनीति में नई परिघटनाओं के आधार पर सामग्री बदली गई है। खासतौर पर अयोध्या मामले को लेकर बड़े बदलाव किए गए हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने फैसला दिया है, जिसका सभी वर्गों ने स्वागत किया है।’



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