Wednesday, June 18, 2025
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हिंदी दिवस पर छोटी और आसान कविताएं, फटाफट हो जाएंगी याद, करियर न्यूज़


Hindi Diwas Poems : हर साल 14 सितंबर का दिन देश में हिंदी दिवस के तौर पर मनाया जाता है। यह दिन हिंदी भाषा को समर्पित है। दरअसल 14 सितंबर, 1949 को संविधान सभा द्वारा देवनागरी लिपि में लिखी हिंदी को राजभाषा का दर्जा दिया गया था। यह दिन गर्व का पल था। इसकी अहमियत के मद्देनजर और हिंदी को प्रोत्साहित करने के लिए राष्ट्रभाषा प्रचार समिति के सुझाव पर 1953 से पूरे भारत में 14 सितंबर को हर साल हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाने लगा। हिंदी के बढ़ावा देने के लिहाज से हिंदी दिवस का महत्त्वपूर्ण स्थान है। हिंदी को प्रोत्साहन देने के लिए इस अवसर पर कई पुरस्कार समारोह आयोजित होते हैं। हिंदी भाषा के क्षेत्र में अहम योगदान करने वालों को सम्मानित किया जाता है। इसके अलावा इस दिवस पर देश भर के विद्यालयों, महाविद्यालयों व विश्वविद्यालयों में हिंदी कविता प्रतियोगिता, वाद-विवाद व भाषण प्रतियोगिता, निबंध लेखन, पोस्टर व कला प्रतियोगिता, कविता गोष्ठी आदि कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है।

यहां हम स्कूली छात्रों के लिए हिंदी दिवस पर कुछ मशहूर कविताओं के उदाहरण दे रहे हैं। इस हिंदी दिवस पर आप इन्हें पढ़ सकते हैं।

निज भाषा उन्नति, कविता – भारतेंदु हरिश्चंद्र

निज भाषा उन्नति अहै, सब उन्नति को मूल

बिन निज भाषा-ज्ञान के, मिटत न हिय को सूल।

अंग्रेजी पढ़ि के जदपि, सब गुन होत प्रवीन

पै निज भाषा-ज्ञान बिन, रहत हीन के हीन।

उन्नति पूरी है तबहिं जब घर उन्नति होय

निज शरीर उन्नति किये, रहत मूढ़ सब कोय।

– भारतेंदु हरिश्चंद्र

तोते भी राम-राम , कविता – मैथिलीशरण गुप्त

मेरी भाषा में तोते भी राम-राम जब कहते हैं।

मेरे रोम-रोम से मानो सुधा स्रोत तब बहते हैं।

सब कुछ छूट जाय मैं अपनी भाषा कभी न छोडूँगा।

वह मेरी माता है उससे नाता कैसे तोडूंगा।

कभी अकेला भी हूँगा मैं तो भी सोच न लाऊंगा।

अपनी भाषा में हिन्दी के गीत वहां पर गाऊँगा।

मुझे एक संगिनी वहां पर अनायास मिल जायेगी।

मेरे साथ प्रतिध्वनि देगी, हृदय कमल खिल जायेगी।

— मैथिलीशरण गुप्त

गूंजी हिन्दी विश्व में, कविता – अटल बिहारी वाजपेयी

गूंजी हिन्दी विश्व में

गूंजी हिन्दी विश्व में,

स्वप्न हुआ साकार;

राष्ट्र संघ के मंच से,

हिन्दी का जयकार;

हिन्दी का जयकार,

हिन्दी हिन्दी में बोला;

देख स्वभाषा-प्रेम,

विश्व अचरज से डोला;

कह कैदी कविराय,

मेम की माया टूटी;

भारत माता धन्य,

स्नेह की सरिता फूटी!

– अटल बिहारी वाजपेयी

भाल की शृंगार, कविता – डॉ जगदीश व्योम

माँ भारती के भाल की शृंगार है हिंदी

हिंदोस्ताँ के बाग़ की बहार है हिंदी

घुट्टी के साथ घोल के माँ ने पिलाई थी

स्वर फूट पड़ रहा, वही मल्हार है हिंदी

तुलसी, कबीर, सूर औ’ रसखान के लिए

ब्रह्मा के कमंडल से बही धार है हिंदी

सिद्धांतों की बात से न होयगा भला

अपनाएँगे न रोज़ के व्यवहार में हिंदी

कश्ती फँसेगी जब कभी तूफ़ानी भँवर में

उस दिन करेगी पार, वो पतवार है हिंदी

माना कि रख दिया है संविधान में मगर

पन्नों के बीच आज तार-तार है हिंदी

सुन कर के तेरी आह ‘व्योम’ थरथरा रहा

वक्त आने पर बन जाएगी तलवार ये हिंदी

-डॉ जगदीश व्योम

हिंदी दिवस पर 2 मिनट का शानदार भाषण, आसानी से होगा याद

हिंदी जन की बोली है, कविता – गिरिजा कुमार माथुर

एक डोर में सबको जो है बाँधती

वह हिंदी है,

हर भाषा को सगी बहन जो मानती

वह हिंदी है।

भरी-पूरी हों सभी बोलियाँ

यही कामना हिंदी है,

गहरी हो पहचान आपसी

यही साधना हिंदी है,

सौत विदेशी रहे न रानी

यही भावना हिंदी है।

तत्सम, तद्भव, देश विदेशी

सब रंगों को अपनाती,

जैसे आप बोलना चाहें

वही मधुर, वह मन भाती,

नए अर्थ के रूप धारती

हर प्रदेश की माटी पर,

‘खाली-पीली-बोम-मारती’

बंबई की चौपाटी पर,

चौरंगी से चली नवेली

प्रीति-पियासी हिंदी है,

बहुत-बहुत तुम हमको लगती

‘भालो-बाशी’, हिंदी है।

उच्च वर्ग की प्रिय अंग्रेज़ी

हिंदी जन की बोली है,

वर्ग-भेद को ख़त्म करेगी

हिंदी वह हमजोली है,

सागर में मिलती धाराएँ

हिंदी सबकी संगम है,

शब्द, नाद, लिपि से भी आगे

एक भरोसा अनुपम है,

गंगा कावेरी की धारा

साथ मिलाती हिंदी है,

पूरब-पश्चिम/ कमल-पंखुरी

सेतु बनाती हिंदी है।

-गिरिजा कुमार माथुर

मेरी हिन्दी वाणी , कविता – आदित्य शुक्ल

सरस, सुहावन मीठी ऐसी, ज्यों कोयल की वाणी।

भाषाओं में शिरोमणि है मेरी हिन्दी वाणी।

लिपि वैज्ञानिक देवनागरी महिमा अमित अपार।

शब्दों और भावों के जिसमें भरे हुए भंडार।

अलंकार के संग-संग करते स्वर व्यंजन अगवानी।

भाषाओं में शिरोमणि है मेरी हिन्दी वाणी।

संस्कृत वाणी इसकी जननी तमिल-तेलुगु बहनें।

बंगाली, उड़िया, मलयालम, कन्नड़ के क्या कहने।

सबको आदर, सबको ममता तेरी यही कहानी।

भाषाओं में शिरोमणि है मेरी हिन्दी वाणी।

तुलसी का मानस है, सूर की सूरसागर, सुरसिरता।

सूर्यकांत, जयशंकर, पंत के मन की सुमधुर कविता।

मीरा की यह गिरधर नागर, गुरूनानक की वाणी।

भाषाओं में शिरोमणी है मेरी हिन्दी वाणी।

– आदित्य शुक्ल



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