Sunday, June 29, 2025
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इंडियन क्यों कहलाते हैं अमेरिका के मूल निवासी? कैसे हुई थी दुनिया के सबसे ताकवर देश की खोज, दिलचस्प इतिहास


History of America: जब हम “अमेरिका” का नाम सुनते हैं तो हमारे जहन में दुनिया के सबसे शक्तिशाली और प्रभावशाली देश की छवि बनकर आती है। लेकिन इस देश का इतिहास हजारों साल पुराना है और उसकी खोज एक संयोग मात्र थी। आइए जानते हैं कि अमेरिका की खोज कैसे हुई, क्यों वहां के मूल निवासियों को ‘इंडियन’ कहा जाता है, और कैसे यह देश समय के साथ विश्व पर सबसे शक्तिशाली राष्ट्र बन गया।

अमेरिका की खोज: एक संयोग या नियति?

1492 में क्रिस्टोफर कोलंबस नामक एक इटालियन नाविक स्पेन के राजा फर्डिनेंड और रानी इसाबेला के समर्थन से पश्चिम की ओर एशिया का नया समुद्री रास्ता खोजने के लिए निकला था। कोलंबस का इरादा था कि वह हमारे देश यानी भारत के पास के द्वीपों तक पहुंचकर व्यापार के नए रास्ते खोलेगा। लेकिन भाग्य ने कुछ और ही तय कर रखा था। वह अटलांटिक महासागर के पार एक अज्ञात भूमि पर जा पहुंचा, जिसे आज हम अमेरिका के नाम से जानते हैं।

मूल निवासियों को ‘इंडियन’ क्यों कहा जाता है?

कोलंबस का मानना था कि वह भारत (इंडिया) पहुंच गया है, इसलिए उसने वहां के मूल निवासियों को ‘इंडियंस’ कहना शुरू कर दिया। यह गलती इतिहास का हिस्सा बन गई और धीरे-धीरे अमेरिका के मूल निवासियों को ‘इंडियंस’ कहा जाने लगा। वास्तविकता यह थी कि ये लोग हजारों साल पहले एशिया से आकर उत्तर और दक्षिण अमेरिका के विभिन्न हिस्सों में बस गए थे और उनकी अपनी संस्कृतियां और भाषाएं थीं।

फिर रेड इंडियन कौन?

‘रेड इंडियन’ शब्द का इस्तेमाल यूरोपियन उपनिवेशवादियों द्वारा उत्तरी अमेरिका के मूल निवासियों के लिए किया जाता था। जब क्रिस्टोफर कोलंबस के बाद अन्य यूरोपीय खोजकर्ता पहली बार अमेरिका पहुंचे, तो उन्होंने वहां के मूल निवासियों की त्वचा के रंग को देखकर उन्हें ‘रेड इंडियन’ कहा। यह नाम उनके सांवले या हल्के भूरे रंग की त्वचा की वजह से दिया गया, हालांकि यह शब्द अब एक अनुचित और अपमानजनक माना जाता है और इसका इस्तेमाल करना गलत समझा जाता है।

असल में, ये मूल निवासी उत्तरी अमेरिका के विविध समुदायों से संबंध रखते थे, जिनकी अपनी अलग-अलग भाषाएं, संस्कृतियां, और परंपराएं थीं। इन्हें अब सामान्यतः ‘नैटिव अमेरिकन’ या ‘अमेरिकी आदिवासी’ कहा जाता है। ये लोग हजारों सालों से अमेरिका में रह रहे थे और उनकी जीवनशैली प्रकृति के साथ जुड़ी हुई थी। यह नाम गलतफहमी और सांस्कृतिक अंतर के कारण प्रचलित हुआ। जब यूरोपीय उपनिवेशवादी अमेरिका पहुंचे, तो उन्होंने वहां के सभी निवासियों को एक ही नजर से देखा और उन्हें ‘इंडियन’ नाम दिया, क्योंकि उन्हें लगा था कि वे भारत पहुंच गए हैं। बाद में, ‘रेड इंडियन’ नाम विशेष रूप से उत्तरी अमेरिका के आदिवासी लोगों के लिए इस्तेमाल होने लगा।

अमेरिका की शुरुआती सभ्यताएं

अमेरिका की खोज से पहले ही यहां पर कई महान सभ्यताएं थीं। दक्षिण अमेरिका में माया, इंका, और एजटेक जैसी सभ्यताएं अपने समृद्ध वास्तुकला, कला, और विज्ञान के लिए जानी जाती थीं। इनकी सामाजिक संरचनाएं और धार्मिक परंपराएं भी बेहद प्रभावशाली थीं। हालांकि यूरोपियों के आने के बाद इन सभ्यताओं का पतन शुरू हो गया, लेकिन उनकी धरोहर आज भी विद्यमान है।

उपनिवेशवाद और स्वतंत्रता संग्राम

कोलंबस की यात्रा के बाद अमेरिका में यूरोपीय उपनिवेशों की स्थापना का सिलसिला शुरू हो गया। 17वीं और 18वीं शताब्दी में ब्रिटेन, स्पेन, फ्रांस, और नीदरलैंड ने इस नए महाद्वीप पर अपने उपनिवेश स्थापित किए। लेकिन 1776 में, अमेरिकी उपनिवेशवासियों ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ विद्रोह किया और ‘अमेरिका की स्वतंत्रता का घोषणा पत्र’ जारी किया। जॉर्ज वाशिंगटन के नेतृत्व में 1783 में ब्रिटिश साम्राज्य को हराकर अमेरिका ने अपनी स्वतंत्रता हासिल की। जॉर्ज वाशिंगटन बाद में अमेरिका के पहले राष्ट्रपति भी बने।

अमेरिका का संविधान और लोकतंत्र की स्थापना

अमेरिकी स्वतंत्रता संग्राम के बाद, 1787 में अमेरिकी संविधान का निर्माण हुआ, जिसने दुनिया के पहले लोकतांत्रिक गणराज्य की स्थापना की। इस संविधान ने स्वतंत्रता, समानता, और व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा की गारंटी दी। अमेरिका में धीरे-धीरे लोकतांत्रिक संस्थाओं की स्थापना हुई, जिसने इसे समय के साथ मजबूत लोकतांत्रिक देश बना दिया।

नागरिक युद्ध और गुलामी का अंत

19वीं सदी में अमेरिका दो हिस्सों में बंट गया—उत्तर और दक्षिण। दक्षिणी राज्यों में गुलामी का प्रचलन था जबकि उत्तरी राज्यों में इसे समाप्त करने की मांग हो रही थी। यह तनाव 1861 में अमेरिकी गृह युद्ध (सिविल वॉर) का कारण बना। अब्राहम लिंकन के नेतृत्व में उत्तर ने दक्षिण को पराजित किया और 1865 में गुलामी का अंत हुआ।

विश्वयुद्ध और वैश्विक शक्ति के रूप में उदय

20वीं सदी की शुरुआत में अमेरिका ने तेजी से औद्योगिक विकास किया और प्रथम विश्व युद्ध (1914-1918) के बाद वह एक वैश्विक शक्ति के रूप में उभरने लगा। द्वितीय विश्व युद्ध (1939-1945) के बाद, अमेरिका और सोवियत संघ दुनिया के दो सुपरपावर बन गए और शीत युद्ध (Cold War) का युग शुरू हुआ। लेकिन 1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद, अमेरिका दुनिया की अकेली महाशक्ति बनकर उभरा।

वर्तमान में अमेरिका: सबसे शक्तिशाली राष्ट्र

आज अमेरिका आर्थिक, राजनीतिक, और सैन्य दृष्टि से दुनिया की सबसे शक्तिशाली राष्ट्रों में से एक है। इसका वैश्विक प्रभाव सिर्फ उसकी सेना तक सीमित नहीं है, बल्कि विज्ञान, प्रौद्योगिकी, कला, और संस्कृति के क्षेत्रों में भी इसकी महत्वपूर्ण भूमिका है। कुल मिलाकर देखा जाए तो अमेरिका की खोज एक ऐतिहासिक संयोग था, लेकिन इस देश ने अपनी स्वतंत्रता और लोकतंत्र के सिद्धांतों पर आधारित एक महान यात्रा शुरू की।

भारत में क्यों चर्चा में अमेरिका का इतिहास

हाल ही में मध्य प्रदेश के उच्च शिक्षा मंत्री इंद्र सिंह परमार ने दावा किया कि अमेरिका की खोज ‘हमारे भारतीय पूर्वजों’ ने की थी, क्रिस्टोफर कोलंबस ने नहीं जैसा कि बच्चों को पढ़ाया जाता है। परमार ने यह दावा भी किया कि छात्रों को यह गलत इतिहास पढ़ाया जाता रहा है कि भारत की खोज पुर्तगाली खोजकर्ता वास्कोडिगामा ने की थी।

परमार ने मंगलवार को भोपाल में बरकतुल्ला विश्वविद्यालय के दीक्षांत समारोह को संबोधित किया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा, ‘‘कोलंबस ने अमेरिका की खोज की…भारतीय छात्रों का इससे कोई लेना-देना नहीं था। अगर उन्हें यह पढ़ाना ही था तो उन्हें यह भी पढ़ाया जाना चाहिए था कि कोलंबस के बाद के लोगों ने किस तरह वहां के समाज पर अत्याचार किया और वहां के जनजातीय समाज को नष्ट कर दिया, क्योंकि वह समाज प्रकृति की, सूर्य की उपासना करता था।’’

परमार ने कहा कि इसके विपरीत भारतीय विद्यार्थियों को पढ़ाया जाता है कि कोलंबस ने अमेरिका की खोज की थी। उन्होंने कहा, ‘‘मैं कहना चाहता हूं कि अगर किसी को लिखना ही था तो यह लिखना चाहिए था कि भारत के महान नायक वसुलून आठवीं सदी में वहां गए थे और उन्होंने अमेरिका के सेंटियागो में अनेक मंदिरों का निर्माण किया। वहां एक संग्रहालय में आज भी ये तथ्य लिखे हुए हैं। वहां के पुस्तकालय में ये तथ्य अब भी रखे हैं।’’



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