राजनैतिक अस्थिरता के कारण नकदी संकट से जूझ रहे पड़ोसी देश श्रीलंका की अर्थव्यवस्था में 29 सालों में पहली बार उपभोक्ता कीमतों में गिरावट दर्ज की गई है। श्रीलंका की तरफ से सोमवार को जारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार सितंबर के महीने में मुद्रास्फीति की दर -0.5 प्रतिशत तक गिर गई। देश के जनगणना और सांख्यिकी विभाग के आंकड़ों के अनुसार, खाद्य और गैर खाद्य दोनों ही वस्तुओं की कीमतों में गिरावट दर्ज की गई है। सरकारी आंकड़ों के मुताबिक अगस्त में मुद्रास्फीति की दर 0.5 फीसदी थी।
पड़ोसी देश श्रीलंका में पिछली बार कीमतों में गिरावट 1985 में हुई थी, जब मुद्रास्फीति -2.1 प्रतिशत पर पहुंच गई थी। मुद्रास्फीति का समय के साथ-साथ कम स्तर पर बढ़ते रहना राज्य के विकास का परचायक होता है। लेकिन यही जब बहुत तेजी के साथ बढ़ने लगती है तो महंगाई आसमान छूने लगती है।
दो साल पहले श्रीलंका में आये आर्थिक संकट के बाद देश की मुद्रास्फीति ने अपने पिछले सभी रिकॉर्ड तोड़ते हुए 69.8 प्रतिशत का स्तर प्राप्त कर लिया था, जिसके बाद देश में मूलभूत जरूरत के सामान की कीमतों ने भी आसमान छू लिया था। भोजन, ईंधन और दवाओं की भारी कमी के कारण महीनों तक विरोध प्रदर्शन हुए, जिसके कारण तत्कालीन राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे को जुलाई 2022 में अपना इस्तीफा देकर देश से भागना पड़ा। जनता का गुस्सा शांत नहीं हुआ और वह राष्ट्रपति आवास में घुस गई, जिसकी वीडियो पूरी दुनिया में खूब वायरल हुई।
गोटबाया राजपक्षे के देश छोड़कर भागने के बाद उनके उत्तराधिकारी रानिल विक्रमसिंघे ने 2.9 बिलियन डॉलर की अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष की सहायता प्राप्त की और अर्थव्यवस्था को स्थिर करने के लिए करों और कीमतों में वृद्धि की। धीरे-धीरे उन्होंने देश की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने की कोशिश की।इस महीने राष्ट्रपति चुनाव के बाद विक्रमसिंघे को पद गंवाना पड़ा। इन दो सालों में उनका विरोध करने वाले वामपंथी अनुरा कुमारा दिसानायके देश के राष्ट्रपति बने। उन्होंने आईएमएफ कार्यक्रम के बाद भी देश में बढ़ाए गे करों और कीमतो में ढील देने की कसम खाई है।