Returning soldier effect Explained: इतिहास में यह देखा गया है कि युद्धों के बाद लड़कों के जन्म में असामान्य वृद्धि होती है। इस घटना को “लौटते सैनिक प्रभाव” (Returning Soldier Effect) कहा जाता है। यह एक रहस्यमयी घटना है जो वैज्ञानिकों और समाजशास्त्रियों को सोचने पर मजबूर करती है कि क्यों बड़े युद्धों के बाद अधिक पुरुष संतान जन्म लेती हैं। आज हम इस घटना के ऐतिहासिक तथ्यों, वैज्ञानिक अध्ययन और इसके पीछे के कारणों को विस्तार से समझेंगे।
लौटते सैनिक प्रभाव: क्या है यह घटना?
लौटते सैनिक प्रभाव यानी रिटर्निंग सोल्जर इफेक्ट का उल्लेख सबसे पहले उस समय के दौरान किया गया जब बड़े युद्ध, जैसे विश्व युद्ध I और II, के बाद लड़कों के जन्म का अनुपात सामान्य से अधिक था। सामान्य परिस्थितियों में, लगभग 105 लड़के प्रति 100 लड़कियों के अनुपात में जन्म लेते हैं। लेकिन युद्ध के बाद के वर्षों में यह अनुपात बढ़कर लगभग 110 या इससे भी अधिक हो सकता है।
ऐतिहासिक दृष्टिकोण
यह प्रभाव विशेष रूप से विश्व युद्ध I और II के बाद देखा गया था। उदाहरण के लिए, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद 1940 के दशक के अंत में, कई पश्चिमी देशों में लड़कों के जन्म की दर में वृद्धि हुई थी। इसके साथ ही, कोरियाई युद्ध और वियतनाम युद्ध के बाद भी इस प्रभाव का देखा जाना एक उल्लेखनीय तथ्य है। इतिहास में अन्य युद्धों जैसे नापोलियन युद्धों और गृहयुद्धों के बाद भी यह प्रवृत्ति दर्ज की गई है, जहां सैनिकों की घर वापसी के बाद लड़कों का जन्म दर सामान्य से अधिक था।
वैज्ञानिक दृष्टिकोण:
वैज्ञानिकों ने इस घटना के पीछे कई सिद्धांत दिए हैं।
जैविक चयन सिद्धांत: इस सिद्धांत के अनुसार, जब समाज में बड़े पैमाने पर पुरुषों की मृत्यु होती है, तो प्रकृति इसे संतुलित करने के लिए लड़कों के जन्म को प्राथमिकता देती है। जैविक स्तर पर, योनि में शुक्राणु के प्रकार (X और Y क्रोमोसोम) का चयन इस बात पर निर्भर करता है कि कौन सा शुक्राणु पहले अंडाणु से मिलता है। Y क्रोमोसोम के शुक्राणु लड़कों के जन्म के लिए जिम्मेदार होते हैं और यह तेजी से अंडाणु तक पहुंचते हैं, जिससे लड़के के जन्म की संभावना बढ़ जाती है।
तनाव और हार्मोनल प्रभाव: वैज्ञानिकों का मानना है कि युद्धों के बाद घर लौटने वाले सैनिकों के हार्मोनल स्तर में परिवर्तन हो सकता है। युद्ध का तनाव और घर वापसी की राहत उनके शरीर में टेस्टोस्टेरोन के स्तर को बढ़ा सकती है, जिससे लड़कों के जन्म की संभावना बढ़ती है। यह प्रभाव सैनिकों की पत्नियों या महिलाओं के गर्भधारण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।
सामाजिक कारक: युद्धों के बाद की सामाजिक परिस्थितियों का भी प्रभाव हो सकता है। युद्ध से लौटने वाले सैनिक अक्सर अपने परिवारों को बढ़ाने की इच्छा रखते हैं। इसके अलावा, समाज में पुरुषों की कमी के कारण परिवारों पर लड़कों के जन्म को प्राथमिकता देने का दबाव भी हो सकता है।
आलोचनाएं और वैकल्पिक व्याख्याएं
कुछ वैज्ञानिक इस सिद्धांत से असहमत हैं और इसे पूरी तरह से जैविक या हार्मोनल कारक से नहीं जोड़ते। उनके अनुसार, लड़कों के जन्म की वृद्धि एक संयोग भी हो सकती है। इसके अलावा, कुछ अध्ययनों ने यह भी पाया है कि सभी युद्धों के बाद लड़कों का जन्म दर नहीं बढ़ता, जिससे यह सवाल उठता है कि क्या इस परिघटना को युद्धों से सीधा संबंध कहा जा सकता है।
इतिहास के पन्नों में बार-बार यह देखने को मिलता है कि बड़े युद्धों के बाद अधिक लड़के जन्म लेते हैं। हालांकि, अब तक कोई सर्वमान्य वैज्ञानिक स्पष्टीकरण इस घटना का नहीं मिल सका है। लड़कों और लड़कियों के जन्म के बीच का अनुपात सामान्यतः लड़कों के पक्ष में झुका रहता है, जहां प्रति 100 लड़कियों के मुकाबले लगभग 105 लड़के जन्म लेते हैं। लेकिन, एक रिपोर्ट के अनुसार, युद्ध के बाद लौटे सैनिकों ने 1920 में रिकॉर्ड 1.1 मिलियन बच्चों को जन्म दिया, जो कि उस शताब्दी का सबसे बड़ा आंकड़ा है। यह प्रवृत्ति न केवल ब्रिटेन या वेल्स में, बल्कि फ्रांस, जर्मनी, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, डेनमार्क और नीदरलैंड जैसे देशों में भी देखी गई, जहां विश्व युद्धों के बाद लड़कों के जन्म का अनुपात बढ़ गया था।
1700 के दशक की खोज और ईश्वरीय हस्तक्षेप का सिद्धांत
यह घटना केवल 20वीं शताब्दी की नहीं है। 1700 के दशक में पास्टर जेपी सुस्मिल्च (JP Süssmilch) ने इस प्रवृत्ति पर ध्यान दिया था। उन्होंने चर्च की रजिस्ट्रियों का अध्ययन किया और पाया कि युद्ध या संघर्ष के समय अधिक लड़के जन्म लेते थे। सुस्मिल्च ने इसे “ईश्वरीय हस्तक्षेप” के रूप में देखा और तर्क दिया कि भगवान युद्ध में मरे हुए पुरुषों की कमी को पूरा करने के लिए अधिक लड़कों का जन्म करवा रहे थे। हालांकि, उनका यह सिद्धांत वैज्ञानिक तर्कों और शोध के आधार पर खड़ा नहीं रह सका। सुस्मिल्च के धार्मिक दृष्टिकोण से इतर, आधुनिक वैज्ञानिकों ने इस परिघटना के पीछे विभिन्न दिलचस्प सिद्धांत प्रस्तुत किए हैं।
लंबाई और संतान का संबंध: एक रोचक रिपोर्ट में यह पाया गया कि युद्ध के मैदान में मारे गए ब्रिटिश सैनिक औसतन उन सैनिकों से छोटे थे, जो युद्ध से जीवित वापस लौटे। जीवित बचे सैनिक औसतन एक इंच लंबे थे। मनोवैज्ञानिक सातोशी कनजावा (Satoshi Kanazawa) के अनुसार, लंबी कद-काठी वाले लोगों के लड़कों के माता-पिता बनने की संभावना अधिक होती है। उनका मानना है कि लंबाई और पुरुष संतान के बीच संबंध हो सकता है। इससे यह सिद्धांत सामने आता है कि विश्व युद्धों के दौरान और उसके बाद अधिक लड़कों के जन्म के पीछे कारण हो सकता है कि जीवित लौटे सैनिकों की लंबाई अधिक थी और उनकी संतानें लड़के बनीं।
बड़े युद्धों के बाद लड़कों के जन्म की दर में वृद्धि
गर्भाधान का समय और संतान का लिंग: एक और सिद्धांत जिसे सांख्यिकीविद् बिल जेम्स (Bill James) ने प्रस्तुत किया, वह गर्भाधान के समय पर आधारित है। उनके अनुसार, यदि महिला अपने मासिक चक्र (पीरियड) के शुरुआती दिनों में गर्भवती होती है, तो उसके लड़के को जन्म देने की संभावना थोड़ी अधिक होती है। युद्ध से लौटे सैनिकों के अपने परिवारों के साथ पुनर्मिलन के समय यह संभावना अधिक हो जाती है कि वे जल्द गर्भधारण कर लें। हालांकि, व्यक्तिगत मामलों में यह प्रभाव शून्य हो सकता है, लेकिन जब हजारों और लाखों गर्भधारण का अध्ययन किया जाता है, तो यह प्रवृत्ति स्पष्ट हो जाती है।
कुल मिलाकर रिटर्निंग सोल्जर इफे्कट एक दिलचस्प घटना है जिसने वैज्ञानिकों, समाजशास्त्रियों और इतिहासकारों को लंबे समय से आकर्षित किया है। ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर, यह सिद्ध हो चुका है कि बड़े युद्धों के बाद लड़कों के जन्म की दर में वृद्धि होती है। हालांकि, इसके पीछे के कारण अब भी शोध और बहस का विषय बने हुए हैं। चाहे यह जैविक चयन हो, हार्मोनल बदलाव हो, या फिर सामाजिक कारण, यह घटना मानव समाज के एक अनूठे पहलू को दर्शाती है, जो हमारे इतिहास, विज्ञान और समाज के आपसी संबंधों को और गहराई से समझने का अवसर देती है।