Sunday, February 23, 2025
Google search engine
Homeदेशजब गधों पर शराब लादकर पैदल ही मेरठ से दिल्ली पहुंचे मिर्ज़ा...

जब गधों पर शराब लादकर पैदल ही मेरठ से दिल्ली पहुंचे मिर्ज़ा ग़ालिब! विकास दिव्यकीर्ति ने सुनाया मजेदार किस्सा


डॉ. विकास दिव्यकीर्ति भारत के बेहद चर्चित शिक्षक हैं. वे दृष्टि आईएएस कोचिंग इंस्टीट्यूट के संस्थापक हैं. डॉ. विकास अपने अध्यापन की अनूठी शैली के चलते बहुत ही पॉपुलर हैं. सोशल मीडिया पर उनके वीडियो लगातार वायरल होते रहते हैं. उनकी साहित्य में विशेष रुचि है. डॉ. विकास दिव्यकीर्ति साहित्यकारों, शायरों के जीवन से जुड़ी कहानियों के माध्यम से अपने स्टूडेंट्स को आगे बढ़ने का मैसेज देते है. एक वीडियो में उन्होंने मशहूर शायर मिर्जा गालिब की एक खराब आदत में से भी सकारात्मकता का संदेश दिया है. वे कहते हैं कि गालिब शराब को लेकर कमिटमेंट थे और शराब पीने के लिए वह कुछ भी कर गुजरते थे. दिव्यकीर्ति कहते हैं कि कमिटमेंट के माध्यम से ही किसी उद्देश्य को पाया जा सकता है. आप भी पढ़ें मिर्जा गालिब के बारे में कुछ रोचक किस्से डॉ. विकास दिव्यकीर्ति की जुबानी…

मिर्जा गालिब 19वीं शताब्दी के आदमी हैं. गालिब दिल्ली में रहते थे, बल्लीमारान में. बल्लीमारान चांदनी चौक के पास है और यहां गालिब की हवेली है. मिर्जा गालिब बड़े मस्तमौला आदमी थे, एक नंबर के पियक्कड़ थे. पीने से कोई समझौता नहीं. पीने को लेकर कमिटमेंट थी उनकी.

एक बार गालिब को पता चला कि मेरठ में बढ़िया शराब मिलती है तो मेरठ चले गए. दो गधों पर शराब लाधकर पैदल ही मेरठ से दिल्ली आए थे. आप गालिब की प्रतिबद्धता देखिए, कमिटमेंट देखिए कि जब इंसान ठान लेता है तो अपना उद्देश्य पूरा करता है. इस भाव में गालिब को देखिए. मस्तमौला आदमी थे. पैसा खत्म हो जाता तो उधार मांग-मांग कर पीते थे. जब लोगों ने उधार देना बंद कर दिया तो उधार के लिए नए लोग ढूंढे. राजा और नवाबों से वजीफा मांगा. लेकिन उन्होंने भी वजीफा देने से मना कर दिया.

एक बार किसी कारण मिर्जा गालिब को पकड़ने के लिए पुलिस आ गई और उन्हें जेल ले गई. किसी तरह वहां से छूटे. इन सबके बाद भी तेवर कभी कम नहीं हुए.

डॉ. विकास दिव्यकीर्ति बताते हैं कि वह जिस कॉलेज से पढ़े हैं, उसमें गालिब भी एक बार अध्यापक बन कर पहुंचे थे. दिल्ली का सबसे पुराना कॉलेज ‘दिल्ली कॉलेज’. वर्तमान में यह जाकिर हुसैन कॉलेज है. पहले यह नई दिल्ली स्टेशन के पास अजमेरी गेट पर था.

दिव्यकीर्ति बताते हैं कि जब दिल्ली कॉलेज में हमने पढ़ाई शुरू की तो हमें बताया गया कि मिर्जा गालिब इसी कॉलेज के अध्यापक थे. लेकिन पता चला कि गालिब तो कभी यहां आए ही नहीं थे. तह तक जानने पर पता चला कि उस समय कॉलेज में एक ब्रिटिश प्रिंसिपल थे. उन्होंने मिर्जा गालिब को कॉलेज में आमंत्रित किया गया कि वे यहां आकर पढ़ाएं. मिर्जा गालिब इक्के में बैठकर कॉलेज आए. कॉलेज के बाहर उतरे, देखा कि प्रिंसिपल उन्हें कॉलेज के बाहर रिसीव करने आया ही नहीं है. गालिब साहब खफा हो गए और वापस चले गए. बोले- जिस कॉलेज के प्रिंसिपल में तमीज नहीं हैं, वहां हम क्या करेंगे पढ़ाकर.

ऐसे विचित्र आदमी थे मिर्जा गालिब. लेकिन लिखते क्या थे, गजब ही लिखा है उन्होंने. बहादुर शाह जफर दिल्ली के शासक थे और गालिब के दोस्त थे. लाल किले के सामने सड़क जा रही है चांदनी चौक के लिए और चांदनी चौक की एक दुकान में मिर्जा गालिब बैठे हुए थे. उस समय राज कवि अपने घोड़े से गुजर रहे थे. राज कवि को देखकर मिर्जा गालिब का खून खौल जाता था. मिर्जा अच्छे शायर माने तो जाते थे लेकिन राज कवि नहीं थे. इस पर मिर्जा ने चुटिले अंदाज में राज कवि को छेड़ दिया- अबे राजा के चमचे, भाग यहां से…ऐसा शायद कुछ छेड़ दिया.

राज कवि ने दरबार में जाकर राजा को बोल दिया कि मिर्जा गालिब ऐसा कह रहे थे. राजा यह सुनकर गुस्सा हो गया और उन्होंने फौरन गालिब को दरबार में बुलाया. राजा ने गालिब को कस के डांट लगाई कि- तुम ऐसा कैसे बोल सकते हो.

मिर्जा गालिब ने राजा को मैसेज देने के लिए वहीं पर एक शेर गढ़ा और कहा-
हर एक बात पे कहते हो तुम कि तू क्या है,
तुम्हीं कहो कि ये अंदाज़-ए-गुफ़्तुगू क्या है।

और अगली लाइन में उन्होंने राजा को ऐसा धोया कि जवाब नहीं-

रगों में दौड़ते फिरने के हम नहीं क़ाइल
जब आंख ही से न टपका तो फिर लहू क्या है।

गालिब ने बहुत ही आसान भाषा में एक बड़ा मैसेज दे डाला. ये चमत्कार केवल गालिब ही कर सकते थे.

Tags: Hindi Literature, Hindi Writer, Literature, Poet



Source link

RELATED ARTICLES

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

- Advertisment -
Google search engine

Most Popular

Recent Comments