नई दिल्ली. विदेश मंत्री एस जयशंकर ने दोहराया है कि भारत को चीन के साथ यथार्थवाद के आधार पर निपटना चाहिए. इस दौरान उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि आपसी संबंध तीन आपसी समझ- सम्मान, संवेदनशीलता और हित पर आधारित होने चाहिए. इसके साथ ही उन्होंने चीन के साथ नेहरूवादी युग की रूमानियत पर भी प्रहार किया.
समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में विदेशमंत्री जयशंकर ने कहा, ‘मैं चीन के साथ यथार्थवाद के आधार पर निपटने का तर्क देता हूं- यथार्थवाद का रास्ता, जो मुझे लगता है- सरदार पटेल से लेकर नरेंद्र मोदी तक सभी का रास्ता है – मुझे लगता है कि यथार्थवाद का यही रास्ता हमें एक निश्चित दृष्टिकोण की ओर ले जाता है.
विदेश मंत्री ने चीन पर व्यावहारिक दृष्टिकोण के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भी सराहना की. उन्होंने कहा, ‘मैं कहूंगा कि मोदी सरकार बहुत अधिक और यथार्थवाद के अनुरूप रही है, जो सरदार पटेल से उत्पन्न हुई थी.’
नेहरू और पटेल के नजरिये का समझाया अंतर
भारत के पहले गृह मंत्री सरदार पटेल और पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के दृष्टिकोण में अंतर बताते हुए जयशंकर ने दोनों दिग्गजों के बीच मतभेद पर प्रकाश डाला. जयशंकर ने नेहरू और सरदार पटेल के यथार्थवादी दृष्टिकोण के बीच अंतर समझाते हुए कहा, ‘उदाहरण के लिए जब संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की सीट की बात आई, तो हमें बिल्कुल वह सीट लेनी चाहिए थी. खैर वह एक अलग बहस है, लेकिन यह कहना कि हमें पहले चीन को (सुरक्षा परिषद में) जाने देना चाहिए- चीन का हित पहले आना चाहिए, यह एक बहुत ही अजीब बयान है.’
नेहरू के कार्यकाल की शुरुआत में चीन और भारत के बीच अच्छी दोस्ती थी. हालांकि भारत को 1962 में उस वक्त एक बड़ा झटका लगा जब चीन ने हमला कर दिया. चीन के इस आक्रमण ने नई दिल्ली में निर्णय लेने वालों को यह सोचने पर मजबूर कर दिया कि चीन नीति पर दोबारा से विचार किया जाना चाहिए.
क्या 2024 में भारत और चीन के बीच मतभेद खत्म हो पाएंगे? इस सवाल का जवाब देते हुए एस जयशंकर ने कहा, ‘ताली बजाने के लिए दो हाथों की जरूरत होती है. मैं इस मुद्दे को इस तरह से देखता हूं कि अगर आप हमारी विदेश नीति के पिछले 75 से अधिक वर्षों को देखें, तो उनमें चीन के बारे में यथार्थवाद का जोर है और आदर्शवाद, रूमानियत, गैर-यथार्थवाद का तनाव है. यह शुरुआती दिनों से ही शुरू हो जाता है, जब नेहरू और सरदार पटेल के बीच इस बात को लेकर गहरा मतभेद था कि चीन को कैसे जवाब दिया जाए.’
चीन के साथ माइंड गेम खेलने को लेकर विदेश मंत्री ने कहा, ‘मुझे नहीं लगता कि हम हमेशा हारते हैं, लेकिन मैं तर्क दूंगा कि कुछ समय हम हार सकते थे- जब हम अतीत के बारे में बात करते हैं, तो आज हमारे लिए यह समझना बहुत मुश्किल होगा. पंचशील समझौता ऐसा ही एक और उदाहरण है.’
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FIRST PUBLISHED : January 2, 2024, 12:15 IST