Saturday, November 16, 2024
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Education News : Savitribai Phule Jayanti speech in hindi : Savitribai Phule speech photo quotes in hindi images pics – Savitribai Phule Jayanti Speech in Hindi : सावित्रीबाई फुले जयंती पर दें यह छोटा और सरल भाषण


Savitribai Phule Jayanti speech in hindi : हर साल देश में 3 जनवरी को देश की पहली महिला शिक्षिका, महान समाजसेविका और नारी मुक्ति आंदोलन की प्रणेता सावित्रीबाई फुले की जयंती मनाई जाती है। सावित्रीबाई फुले को भारत की पहली महिला टीचर कहा जाता है। उन्होंने महिला सशक्तिकरण के लिए अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। सावित्रीबाई फुले एक महान समाज सुधारक, दार्शनिक,कवयित्री और शिक्षाविद् भी थीं। उनकी कविताएं अधिकतर प्रकृति, शिक्षा और जाति प्रथा को खत्म करने पर केंद्रित होती थीं। उनके पति ज्योतिराव फुले भी एक प्रसिद्ध चिंतक और लेखक थे। उन्होंने सामाजिक की बुराइयों के खिलाफ जमकर उठाई आवाज। सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा जिले के एक छोटे से गांव नयागांव में 3 जनवरी 1831 को हुआ था। 

आज का दिन उनके संघर्ष और महान कार्यों को यादकर उन्हें श्रद्धांजलि देने का दिन है। आज उनकी याद में कई जगहों पर कार्यक्रम भी होते हैं जहां आप भाषण दे सकते हैं। 

Speech On Savitribai Phule : यहां देखें भाषण का एक उदाहरण

यहां उपस्थित प्रधानाचार्य महोदय, आदरणीय शिक्षकगण और मेरे प्यारे साथियों या फिर यहां उपस्थित आदरणीय अतिथिगण एवं मेरे प्यारे साथियों। आज 3 जनवरी का दिन देश की महिलाओं के विकास की यात्रा में बेहद महत्वपूर्ण दिन है। आज 3 जनवरी को भारत में महिला शिक्षा की अगुआ सावित्रीबाई फुले का जन्म हुआ था। आज ही के दिन 1831 में देश की पहली महिला टीचर सावित्रीबाई फुले का जन्म महाराष्ट्र के सतारा के नायगांव में एक किसान परिवार में हुआ था। सावित्रीबाई फुले ने भारतीय महिलाओं की स्थिति में सुधार लाने में अहम भूमिका निभाई। आज का दिन देश की पहली महिला टीचर  सावित्रीबाई फुले को याद कर उन्हें श्रद्धांजलि देने और नमन करने का दिन है। 

आजादी से पहले, खासतौर पर 19वीं शताब्दी में भारतीय समाज में महिलाओं की स्थिति समाज में बेहद खराब थी। उन्हें शिक्षा से दूर रखा जाता था। पति की मौत के बाद उन्हें सती होना पड़ता था। महिलाओं के साथ काफी भेदभाव होता था। समाज में विधवाओं का जीवन जीना बेहद मुश्किल था। दलित और निम्न वर्ग का शोषण होता था। उनके साथ छुआछूत का व्यवहार होता था। ऐसे माहौल में एक दलित परिवार में जन्मी सावित्रीबाई फुले ने न सिर्फ समाज से लड़कर खुद शिक्षा हासिल की बल्कि अन्य लड़कियों को भी पढ़ाकर शिक्षित बनाया। 

सावित्रीबाई फुले जयंती : देश की पहली महिला टीचर के संघर्ष की कहानी और उनके अनमोल विचार

जब सावित्री बाई स्कूल जाती थीं, तो लोग उन्हें पत्थर मारते थे। लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और कड़ा संघर्ष करते हुए शिक्षा हासिल की। जब वह महज 9 वर्ष की थीं जब उनका विवाह 13 साल के ज्योतिराव फुले से कर दिया गया था। ज्योतिराव फुले भी शादी के दौरान कक्षा तीन के छात्र थे, लेकिन तमाम सामाजिक बुराइयों की परवाह किए बिना सावित्रीबाई की पढ़ाई में पूरी मदद की। सावित्रीबाई ने अहमदनगर और पुणे में टीचर की ट्रेनिंग ली और शिक्षक बनीं। पति के साथ मिलकर सावित्रीबाई फुले ने 1848 में पुणे में लड़कियों का स्कूल खोला। इसे देश में लड़कियों का पहला स्कूल माना जाता है। फुले दंपति ने देश में कुल 18 स्कूल खोले। विधवाओं के दुखों को कम करने के लिए उन्होंने नाइयों के खिलाफ एक हड़ताल का नेतृत्व किया, ताकि वे विधवाओं का मुंडन न कर सकें, जो उस समय की एक प्रथा थी।

ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने उनके योगदान को सम्मानित भी किया। वह देश की पहली महिला शिक्षक ही नहीं पहली महिला प्रिंसिपल भी थीं।

सावित्रीबाई ने अपने घर का कुआं दलितों के लिए भी खोल दिया। दलित विरोध माहौल में उस दौर में ऐसा करना बहुत बड़ी बात थी। सावित्रीबाई ने विधवाओं के लिए भी एक आश्रम खोला। यहां बेसहारा औरतों को पनाह दी।

पुणे में जब प्लेग फैला तो सावित्रीबाई खुद मरीजों की सेवा में जुट गईं। वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गईं और इससे उनका निधन हो गया। 

साथियों, आज महिला शिक्षा, सशक्तिकरण व कल्याण के प्रति संकल्प लेने का दिन है। महिलाओं के विकास से ही समाज और देश का विकास होगा। कोई देश आधी आबादी को पीछे छोड़कर कभी आगे नहीं बढ़ सकता। देश के कई गांव कस्बों में आज भी महिलाओं की स्थिति बेहद खराब है।  अगर हमें सावित्रीबाई फुले के सपनों को साकार करना है तो महिला सशक्तिकरण की ओर हमेशा प्रयासरत रहना होगा।



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