आठ फसलें ऐसी हैं, जो मोटे अनाज के तहत आती हैं. इन फसलों की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत मांग है. यह फसल सेहत के लिए काफी फायदेमंद है. ऐसी फसलों की खेती से करने से किसानों की आमदनी तो बढ़ती ही है, वहीं बाजार में इन फसलों की कीमत 5000 से 7000 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक है.
बिहार राज्य के जिला गया में कृषि के क्षेत्र में काफी क्रांतिकारी बदलाव देखे जा रहे हैं. वर्तमान में जो फसलें विलुप्त होती जा रही हैं, अब फिर से उनका दौर वापस लौटता दिखाई रहा है. ये सब वहां के किसानों की मेहनत से ही संभव हो रहा है. तभी तो सेहत के लिए रामबाण माने जाने वाले मोटे अनाजों की खेती किसानों ने फिर से करना शुरू कर दिया है. जबकि यह फसल इस जिले से लगभग खो सी गई थी, लेकिन इससे होने वाले फायदों और कमाई को देखते हुए किसानों ने सांवा, बाजरा और मड़ुआ यानी रागी की खेती करना शुरू कर दिया है.
जिले में 25 एकड़ में हो रही सांवा की खेती
गया जिले के गुरारू प्रखंड के 25 एकड़ में सांवा की फसल वर्तमान में लहलहा रही है, जो जमीन कभी बंजर दिखाई देती थी, अब उसी भूमि पर मोटे अनाज की खेती का प्रयोग काफी सफल दिख रहा है. इस प्रखंड के कई किसानों ने 25 एकड़ कलस्टर एरिया में कृषि विभाग के सहयोग से सांवा की खेती करना शुरू किया है. अब कुछ ही दिनों में इसकी कटाई भी शुरू होगी. इसके अलावा क्लस्टर सेंटर बनाकर तमाम किसान बाजरा और मड़ुआ की भी खेती कर रहे हैं. कृषि विभाग भी इसके लिए किसानों को प्रोत्साहित कर रहा है.
क्या होता है मोटे अनाज का महत्व
आठ फसलों को मोटे अनाज के तहत रखा गया है. इन फसलों की राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय बाजार में बहुत मांग है. यह फसल सेहत के लिए फायदेमंद तो हैं ही, इन फसलों की खेती से किसानों की कमाई भी होती है. बाजार में इन फसलों की कीमत 5000 से 7000 हजार रुपये प्रति क्विंटल तक है. इन फसलों की खासियत यह है कि पुराना होने के बाद भी इसमें कीड़े नहीं लगते है और उपज खराब नहीं होती है. तभी तो अब मोटे अनाजों को ज्यादा महत्व दिया जा रहा है.
ये हैं मोटे अनाज के फायदे
मोटे अनाज खाने से शरीर काफी फायदे होते हैं. इसे खाने से डायबिटीज सहित कई गंभीर बीमारियों में लाभ होता है. इसे खाने से हड्डियों में मजबूती होती हैं. क्योंकि इसमें प्रोटीन और कैल्शियम की मात्रा भरपूर होती है. इसके साथ ही अंतरराष्ट्रीय बाजार में भी मोटे अनाज की काफी मांग है, क्योंकि संयुक्त राष्ट्र ने इन फसलों की खेती करने के लिए 2023 में मिलेट्स वर्ष घोषित किया था.
किसानों को मोटे अनाज करने और इसे बढ़ावा देने के लिए अनुमंडल कृषि पदाधिकारी किसानों के खेत तक जाते हैं, जिससे मोटा अनाज करने वाले किसानों का हौसला बढ़ता है. वहीं कृषि पदाधिकारी खेतों में पहुंचकर किसानों के प्रयास की सराहना करते हैं, ताकि उनका उत्साहवर्धन हो.
गया जिले के अनुमंडल कृषि पदाधिकारी ने बताया कि मोटे अनाज चना, मसूर, मक्का और तिलहन फसल, सरसों, तीसी के उत्पादन में आत्मनिर्भर होने के लिए किसानों को सस्ती दर पर बीज और फसल लगाने के बाद प्रति एकड़ 2 हजार रुपये प्रोत्साहन राशि उसके बैंक खाते में दिए जाने का प्रावधान है. सरकार ने यह कदम इसलिए उठाया है, ताकि ताकि किसान धान, गेहूं जैसी मुख्य फसल के साथ-साथ ऐसी फसलों के उत्पादन में रुचि लें और बेहतर कमाई करें. प्रखंड कृषि पदाधिकारी ने कहा कि मोटे अनाज और मिलेट्स क्रॉप फसलों को अपने आहार में शामिल कर लोग अपनी सेहत में सुधार ला सकते हैं, क्योंकि मोटा अनाज प्रोटीन और फाइबर युक्त होता है.
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