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सुप्रीम कोर्ट ने राष्ट्रीय आयुर्विज्ञान आयोग (एनएमसी) को देशभर के सभी मेडिकल कॉलेजों द्वारा एमबीबीएस प्रशिक्षुओं को दिए जाने वाले छात्रवृति का ब्योरा पेश करने का आदेश दिया है। शीर्ष अदालत ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि एनमएसी ने अभी तक उसके पिछले आदेशों का पालन नहीं किया है। जस्टिस सुधांशु धूलिया और पीबी वराले की पीठ ने कहा है कि 15 सितंबर, 2023 के आदेश के पालन में एनएमसी ने जो जानकारी दी है, वह सभी राज्यों के संपूर्ण मेडिकल कॉलेजों की नहीं है। पीठ ने कहा कि इससे जाहिर होता है कि एनएमसी ने उसके आदेश का पालन नहीं किया।
पीठ ने कहा कि अब एक बार फिर से एनएमसी को चार सप्ताह के भीतर सभी राज्यों के सभी मेडिकल कॉलेजों द्वारा एमबीबीएस प्रशिक्षु डॉक्टरों को दिए जा रहे छात्रवृति का ब्योरा पेश करने के लिए समय दिया जाता है। मामले की अगली सुनवाई 6 मई को होगी। शीर्ष अदालत ने 15 सितंबर को देश के अधिकांश मेडिकल कॉलेजों में इंटर्नशिप करने वाले एमबीबीएस डॉक्टरों को छात्रवृति नहीं दिए जाने या निर्धारित रकम से कम भुगतान करने पर एनएमसी से जवाब मांगा था।
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पीठ ने यह आदेश तब दिया, जब याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता ने कहा कि देशभर के 70 फीसदी मेडिकल कॉलेजों द्वारा इंटर्नशिप करने वाले डॉक्टरों को या तो छात्रवृति नहीं दी जा रही या तय रकम से कम का भुगतान किया जा रहा है। मामले की सुनवाई के दौरान पीठ ने कहा था कि इंटर्नशिप के दौरान प्रशिक्षु डॉक्टरों को छात्रवृति का भुगतान करना आवश्यक है और एनएमसी द्वारा बनाए गए नियमों को किसी को अवहेलना करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है। सुप्रीम कोर्ट अभिषेक यादव व अन्य की ओर से आर्मी मेडिकल कॉलेज के खिलाफ दाखिल याचिका पर सुनवाई कर रही है। याचिका में कॉलेज प्रबंधन पर छात्रवृति नहीं देने का आरोप लगाया था।