बिलकिस बानो के 11 दोषियों को सुप्रीम कोर्ट ने दोबारा सलाखों के पीछे भेजकर कुछ महत्वपूर्ण वैधानिक प्रश्न खड़े किए हैं, जिसका सीधा संबंध राज्यों के क्षेत्राधिकार और उसके माफी देने के अधिकार से जुड़ा हुआ है. सुप्रीम कोर्ट ने प्रथम दृष्ट्या पाया कि बिलकिस बानो के मामले में सजामाफी का अधिकार गुजरात सरकार नहीं, बल्कि महाराष्ट्र सरकार के पास था, चूंकि बिलकिस के केस को 2004 में न्याय और स्वतंत्र जांच के पक्ष में महाराष्ट्र ट्रांसफर कर दिया गया. प्रश्न ये भी था कि माफी का अधिकार गुजरात के पास था, जहां आपराधिक कृत्य हुआ या उस महाराष्ट्र सरकार को था जहां दोषियों का ट्रायल हुआ. भारत के अलग-अलग राज्यों में हत्या के मामलों में सरकारों द्वारा दी जाने वाली ये पहली और आखिरी माफी नहीं है, जिसको लेकर विवाद पैदा हुआ हो.
आनंद मोहन की रिहाई का मामला रोचक
पिछले दिनों ही बिहार के पूर्व सांसद आनंद मोहन सिंह की रिहाई का आदेश देकर बिहार सरकार ने एक बड़ी बहस शुरू कर दी. आनंद मोहन सिंह गोपालगंज के पूर्व डीएम जी कृष्णैया की हत्या के मामले में आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे थे. 1994 में एक उन्मादी भीड़ ने जी कृष्णैया की पीट-पीटकर हत्या कर दी थी, जिसकी ‘अगुआई’ तथाकथित तौर पर आनंद मोहन कर रहे थे. आनंद मोहन सिंह आज़ाद भारत के पहले ऐसे नेता थे, जिन्हें किसी ऑन ड्यूटी डीएम की हत्या के मामले में सजा मिली थी और किसी सरकार ने अपने विशेषाधिकारों का प्रयोग करते हुए उसे समय से पहले रिहा कर दिया था.
नीतीश की दरियादिली का आनंद मोहन को मिला फायदा
नीतीश सरकार आनंद मोहन की रिहाई को सुनिश्चित करने के विशेष कानून लाई, जिससे बाहुबली नेता की रिहाई संभव हो सकी. आनंद मोहन रिहाई की उस लिस्ट में अकेले नहीं थे, बल्कि उनके साथ 26 ऐसे सजायाफ्ता मुजरिम थे, जिन्हें सरकार की दरियादिली का फायदा मिला. 26 लोगों की लिस्ट में आनंद मोहन सिंह 11 वें नंबर पर थे. ऐसा शायद सरकार ने इसलिए भी किया कि उसके फैसले पर सवाल न उठे. 4 अप्रैल 2023 को कानून में महत्वपूर्ण बदलाव करते हुए बिहार सरकार के गृह विभाग ने ड्यूटी पर तैनात सरकारी अधिकारियों की हत्या वाले रेफरेंस को हटा दिया, जिससे आनंद मोहन की रिहाई संभव हो सकी. आनंद मोहन की रिहाई को जी कृष्णैया की पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है और राज्य सरकार से भी जवाब मांगा है.
लालू यादव की सवर्ण विरोधी राजनीति की उपज थे आनंद मोहन
आनंद मोहन का उभार बिहार की राजनीति में 1990 के दशक में हुआ. उन पर हत्या, लूट, फिरौती और दबंगई के कई मामले दर्ज थे. आनंद मोहन के राजनीतिक उदय के पीछे लालू यादव की सवर्ण विरोधी सियासत थी, जिसने आनंद मोहन को सवर्णों और खासकर राजपूतों का बड़ा नेता बना दिया.
वो समय कुछ और था जब आनंद मोहन सिंह लालू यादव के धुर विरोधी हुआ करते थे, लेकिन इन 30-35 वर्षों में आनंद मोहन सिंह, लालू और नीतीश करीब आए. आनंद मोहन सिंह के सुपुत्र चेतन आनंद तो राष्ट्रीय जनता दल के सर्वेसर्वा लालू यादव की पार्टी के विधायक हैं.
आनंद मोहन राजपूतों को लामबंद करने के लिए बिहार में कई जनसभाएं कर चुके हैं, जिनके निशाने पर अक्सर केंद्र की भारतीय जनता पार्टी सरकार रही है. बिहार में जाति पर आधारित राजनीति करने वाले दलों के लिए राजपूत समाज का वोट महत्वपूर्ण इसलिए भी है, क्योंकि सवर्ण पारंपरिक तौर पर बीजेपी के पक्ष में मतदान करते रहे हैं. आनंद मोहन वर्तमान सत्तारूढ़ महागठबंधन के पक्ष में प्रचार तो कर ही रहे हैं, क्योंकि इस पर कोई कानूनी रोक नहीं है.
क्या इन रिहाइयों के पीछे राजनीतिक मकसद होता है?
बिलकिस के दोषियों की रिहाई को रद्द करने को लेकर सोशल मीडिया और राजनीतिक गलियारे में खूब प्रतिक्रिया देखने को मिल रही है. ऐसी प्रतिक्रिया संभवतः आनंद मोहन की समय से पहले रिहाई में देखने को नहीं मिली थी और न ही रिहाई के पीछे राजनीतिक आशय को तलाशा गया.

सुप्रीम कोर्ट के एडवोकेट अश्विनी दुबे कहते हैं, ”बिलकिस के दोषियों की दोबारा रिहाई का रास्ता अभी बंद नहीं हुआ है. महाराष्ट्र सरकार भविष्य में कैदियों के व्यवहार को देखते हुए इस पर न्यायसंगत फैसला कर सकती है इसमें यह देखना भी ज़रूरी होगा कि क्या ये कैदी आगे समाज के लिए कोई खतरा तो पैदा नहीं करेंगे! न्याय की बात अगर की जाए तो बिलकिस की तरह जी कृष्णैया की पत्नी भी न्याय और सम्मान का अधिकार रखती हैं. इस मामले का मानवीय पक्ष ये भी है कि लोकतांत्रिक व्यवस्था में दोषियों को भी दूसरी जिंदगी का अधिकार है. उसे भी सुधरने और समाज की मुख्यधारा में शामिल होकर सामान्य जीवन जीने से नहीं रोका जाना चाहिए.”
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Tags: Bihar News, Maharashtra, Supreme Court
FIRST PUBLISHED : January 9, 2024, 14:55 IST