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Swami Vivekananda Speech In Chicago: आज 12 जनवरी को भारत के आध्यात्मिक गुरु और करोड़ों युवाओं के प्रेरणास्त्रोत स्वामी विवेकानंद की जयंती है। लोग उनके ओजस्वी और अनमोल विचारों को याद कर उन्हें नमन रहे हैं। उनकी जन्म-जयंती को देश राष्ट्रीय युवा दिवस के तौर पर मना रहा है। ऊर्जा से भरे उनके जोशीले विचार और संदेश हमेशा से युवाओं को कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरित करते रहे हैं और युगों तक करते रहेंगे। लेकिन जब जब स्वामी विवेकानंद का जिक्र होता है तो उनके उस ऐतिहासिक व चमत्कारिक भाषण की भी याद आती है जो उन्होंने अमेरिका के शिकागो में हुई धर्म संसद में दिया था। 11 सितंबर 1893 को दिए उनके इस भाषण ने पश्चिमी देशों को भारतीय दर्शन, संस्कृति, अध्यात्म का लोहा मनवा दिया। अभी तक ये पश्चिमी देश भारत को असभ्य देशों की गिनती में लेते थे।
कहा जाता है कि शिकागो धर्म संसद में स्वामी विवेकानंद को अपने भाषण के लिए मात्र दो मिनट मिले थे। उन्होंने अपने भाषण की शुरुआत ऐसे जादुई शब्दों के साथ की जिससे न सिर्फ वहां बैठे लोग बल्कि पूरी दुनिया उनकी कायल हो गई। उन्होंने अपनी बात ‘सिस्टर्स एंड ब्रदर्स ऑफ अमेरिका’ से अपनी बात शुरू की यानी ‘अमेरिका के मेरे भाइयों और बहनों’। उनके इन शब्दों के बाद दो मिनट तक तालियां बजती रहीं। यह वो भाषण था जिसने पूरे विश्व को भारत के हिंदुत्व, महान आध्यात्मिक ज्ञान व दर्शन से रूबरू कराया।
यहां जानें आखिर स्वामी विवेकानंद ने धर्म संसद में क्या कहा था, जिसकी दीवानी हो गई पूरी दुनिया, पढ़ें उनका भाषण
‘मेरे अमेरिकी भाइयों और बहनों’ , मैं सभी धर्मों की जननी औऱ दुनिया की सबसे पुरानी संत परंपरा की ओर से आपको धन्यवाद देता हूं और सभी जातियों, संप्रदायों के लाखों, करोड़ों हिंदुओं की तरफ से आपका आभार व्यक्त करता हूं। मैं यह बताने वालों को भी धन्यवाद देता हूं कि दुनिया में पूरब ने सहिष्णुता और सार्वभौमिक स्वीकृति का पाठ दुनिया को पढ़ाया है।
हम विश्व के सभी धर्मों का सम्मान करते हैं
स्वामी जी ने कहा, ‘मुझे गर्व है कि मैं उस देश से हूं जिसने सभी धर्मों को शरण दी है। मुझे गर्व है कि मैं ऐसे धर्म से हूं जिसने पूरी दुनिया को सहिष्णुता औऱ सार्वभौमिक स्वीकृति का ज्ञान दिया। हम विश्व के सभी धर्मों को बराबर सम्मान देते हैं। हमने अपने दिल में इजरायल की पवित्र यादें संजोकर रखी हैं। जब रोमन हमलावरों ने उनके धार्मिक स्थानों का विध्वंस कर दिया तो उन्होंने दक्षिण भारत में आकर शरण ली। हम सताए हुए लोगों को शरण देते हैं।’
स्वामी विवेकानंद जयंती पर दें यह छोटा और आसान भाषण
स्वामी जी ने कहा था, जिस तरह नदियां अलग-अलग जगहों से निकलती हैं और अपना रास्ता चुनकर आखिरकार जाकर समुद्र में मिलती हैं। उसी तरह इंसान भी अपनी मर्जी से अपना रास्ता चुन सकता है। रास्ता देखने में अलग हो सकता है लेकिन अंत में जाकर एक ईश्वर पर ही खत्म होता है। ‘रुचिनां वैचित्र्यादृजुकुटिलनानापथजुषाम नृणामेको गम्यस्त्वमसि पयसामर्णव इव।’ यह श्लोक बोलते हुए स्वामी विवेकानंद ने उपर्युक्त बातसमझाने की कोशिश की थी। उन्होंने कहा था कि सांप्रदायिकाएं, कट्टरपंथ औऱ हठधर्मिता लंबे समय से लोगों को अपने शिकंजे में जकड़े हुए है। इसी वजह से यहां हिंसा होती है। अगर ये राक्षस ना होते तो आज समाज ज्यादा विकसित औऱ उन्नत होतात।
स्वामी विवेकानंद ने एक सकारात्मक उम्मीद जताते हुए कहा था, अब इन राक्षसों का समय खत्म हो चुका है। मुझे उम्मीद दहै कि सम्मेलन का नाद कट्टरता, हठधर्मिता और दुखों का नाश करेगा। यह चाहे तलवार से संभव हो या फिर कलम की धार से।