Sunday, February 23, 2025
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Why BJP not worried about upper caste vote bank against OBC-SC-ST politics Understand three big signals from new leadership in three states – India Hindi News – तीन राज्यों में नए नेतृत्व से BJP ने लिखी तीन नई कहानी, समझें


हालिया विधानसभा चुनावों के बाद तीन राज्यों (मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़ और राजस्थान) में बीजेपी की सरकार बनने जा रही है। इनमें से एक (मध्य प्रदेश) में सत्ता बरकरार रही है, जबकि दो राज्यों (छत्तीसगढ़ और राजस्थान) में कांग्रेस को हराकर पार्टी ने पांच साल बाद सत्ता में वापसी की है। पार्टी ने इसके साथ ही तीनों राज्यों में नए नेतृत्व को लेकर नई पॉलिटिकल पिच तैयार करते हुए सबको चौंका दिया है।

छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में मुख्यमंत्रियों और उपमुख्यमंत्रियों के तौर पर नए चेहरे को सामने लाकर बीजेपी ने समाज के निम्नवर्गीय समूहों के लिए एक मजबूत प्रतीकात्मक आधार तैयार किया है और नई सोशल इंजीनियरिंग गढ़ कर नया संदेश देने की कोशिश की है। बीजेपी ने ऐसा विपक्ष, विशेषकर कांग्रेस की जाति जनगणना की मांग के मद्देनजर किया है। ऐसा कर बीजेपी ने अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC), अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के प्रतिनिधित्व का विस्तार करने के साथ-साथ उस वर्ग को अपने पाले में लामबंद करने की कोशिश की है।

बीजेपी ने किसे और क्यों चुना?

बीजेपी ने छत्तीसगढ़ में विष्णुदेव साय के रूप में अपना पहला आदिवासी मुख्यमंत्री चुना है, जबकि अरुण साव, जो ओबीसी तेली समुदाय से हैं, और विजय शर्मा, एक ब्राह्मण नेता, जिन्होंने कवर्धा से कांग्रेस के मोहम्मद अकबर को हराया है, के उपमुख्यमंत्री बनने की  संभावना है। मध्य प्रदेश में भी बीजेपी ने मोहन यादव को मुख्यमंत्री बनाकर चौंकाया है। वह ओबीसी के यादव जाति से आते हैं, जिसने यूपी और बिहार में लोहियावादी और हिंदुत्व विरोधी राजनीति को आगे बढ़ाया है। मध्य प्रदेश में एक डिप्टी सीएम, जगदीश देवड़ा, दलित हैं तो दूसरे राजेंद्र शुक्ला, ब्राह्मण हैं। केवल राजस्थान में ही पार्टी ने भजन लाल शर्मा के रूप में “उच्च जाति” का मुख्यमंत्री चुना है। वहां भी एक डिप्टी सीएम प्रेमचंद बैरवा दलित हैं जबकि दूसरी दीया कुमारी राजपूत समुदाय से हैं। भजन लाल 33 साल बाद राजस्थान का ब्राह्मण मुख्यमंत्री बनने वाले शख्स हैं।

बीजेपी ने ऐसा बदलाव क्यों किया?

मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ दोनों राज्यों में सरकार में शीर्ष कार्यकारी पदों में से दो-दो ओबीसी और अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति से हैं। राजस्थान में भी एक दलित चेहरे को शीर्ष नेतृत्व में जगह दी गई है। यानी कुल नौ पदों में से पांच पद ओबीसी,एससी-एसटी को दिए गए हैं। शायद पहली बार, बीजेपी को “उच्च जातियों” को शीर्ष नेतृत्व के तौर पर अलग-थलग करने के बारे में बहुत गहराई से सोचने की जरूरत नहीं पड़ी है। 

हालांकि, एक सच्चाई यह भी है कि देश में करीब पांच फीसदी वाले ब्राह्मण समुदाय को तीन राज्यों में एक मुख्यमंत्री और दो उप मुख्यमंत्री का पद मिला है। इनके अलावा राजपूत समुदाय से दो चेहरे को विधानसभा अध्यक्ष और एक को उप मुख्यमंत्री का पद दिया गया है। बीजेपी ने इन कोशिशों से अगड़ी जाति को ड्राइविंग सीट से नीचे ना कर बगल की सीट पर बिठाने की कोशिश की है और नई सोशल इंजीनियरिंग गढ़ने की कोशिश की है। 

उच्च जातियां बीजेपी की कोर वोटर

उच्च जातियां बीजेपी के वोटबैंक का एक बड़ा हिस्सा हैं। बीजेपी ने सत्ता के शीर्ष स्तर पर पिछड़ी और दलित जातियों की नुमाइंदगी इस धारणा पर बढ़ाई है कि अगर जाति गणना होती है तो सामान्य वर्ग के अवसरों में भारी कमी आ सकती है। ऐसी धारणा के साथ ही बीजेपी ने शीर्ष राजनीतिक स्तरों पर  लंबे समय से हाशिए पर रहने वाले इन समूहों को अधिक प्रतिनिधित्व देने के लिए दरवाजे खोल दिए हैं। बीजेपी का यह कदम 2024 की लड़ाई के लिए एक मील का पत्थर साबित होता दिख रहा है।

चूंकि ऊंची जातियां अब बीजेपी को गले लगा चुकी हैं, इसलिए पार्टी ओबीसी, एससी और एसटी का सत्ता में अधिक से अधिक भागीदारी देकर विपक्षी गठजोड़ और उनकी जाति जनगणना और जातीय गठजोड़ के लिए की जा रही सियासी कोशिशों को पूरी तरह से खत्म कर सकती है। इसलिए माना जा रहा है कि ऊच्च जाति वर्ग को बीजेपी की यह रणनीति पसंद आएगी और उन्हें इससे कोई आपत्ति नहीं होगी। दूसरी तरफ, इस सौदे में कांग्रेस दोनों तरफ से शिकस्त खा सकेगी।

बीजेपी के तीन बड़े संकेत

ब्राह्मणों और बनियों की पार्टी कही जाने वाली बीजेपी ने तीन राज्यों में शीर्ष नेतृत्व के चयन में नए चेहरों को चुन कर ना सिर्फ अपनी पुरानी छवि से बाहर आने की कोशिश की है बल्कि ओबीसी-एससी-एसटी वर्ग को लुभाने और कांग्रेस समेत अन्य विपक्षी दलों के जातीय गठजोड़ के कुंद करने की भी कोशिश की है। इसके साथ ही बीजेपी ने नए और युवा चेहरों को शीर्ष पदों पर बैठाकर पार्टी के नए काडरों को भी साधने की मुकम्मल कोशिश की है। इसका सबसे ज्यादा असर यूपी और बिहार जैसे राज्यों में पड़ सकता है, जहां लोकसभा की 120 सीटें हैं और इंडिया गठबंधन भी मजबूत स्थिति में माना जा रहा है।



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