Thursday, June 26, 2025
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विशेषज्ञों ने रेयर डिजीज डे से पहले कॉम्‍प्रीहेंसिव पॉलिसी पर कदम उठाने और मरीजों की बेहतर देखभाल करने की अपील की

विशेषज्ञों ने रेयर डिजीज डे से पहले कॉम्‍प्रीहेंसिव पॉलिसी पर कदम उठाने और मरीजों की बेहतर देखभाल करने की अपील की

लखनऊ, 13 फरवरी, 2024: फरवरी को रेयर डिजीज डे के रूप में मनाया जाता है, इसलिए स्वास्थ्य विशेषज्ञ ने व्‍यापक रेयर डिजीज नीति की पर संपूर्ण रूप से अमल करने की अपील की है। उन्होंने इसे वक्त की जरूरत बताया। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार रेयर डिजीज आमतौर पर 1000 लोगों में से 1 व्यक्ति को होता है। भारत में करीब 70 मिलियन लोग असाध्य रोगों से जूझ रहे हैं, जिसका कोई इलाज नहीं है।, जिसमें मांसपेशियों को कमजोर बनाने वाली स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (एसएमए) खासतौर पर शामिल है।

स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी बेहद कम लोगों में पाई जाने वाली रेयर जेनेटिक स्थिति है, जिसमें रीढ़ की हड्डी में मौजूद मोटर न्यूरॉन्स का लगातार नुकसान होता है। इसके नतीजे के तौर पर मांसपेशियों में बेहद गंभीर रूप से कमजोरी आ जाती है। इससे संभावित रूप से मरीजों की जान को खतरा होता है। स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी का कोई इलाज नहीं है या इलाज के बेहद कम विकल्प हैं। भारत में हजारों लोग इस रोग से पीड़ित है। रेयर डिजीज की जल्द पहचान और इसका तुरंत इलाज शुरू करने के लिए लोगो को जागरूक देना, उन्हें इसके लिए मदद देना इस संबंध में असरदार रणनीति लागू करना वक्त की जरूरत है।

वर्ष 2021 में रेयर डिजीज डे के संबंध में राष्ट्रीय नीति बनाई गई थी, लेकिन इसके बावजूद स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (एसएमए) की कुछ खास चुनौतियां बरकरार है। एनपीआरडी का उद्देश्य इन बीमारियों से पीड़ित मरीजों की संख्या में कमी लाना और इसका व्यापक रूप से प्रसार रोकना है। इसके लिए रेयर डिजीज के लिए बनाई गई राष्ट्रीय नीति के तहत जागरूकता अभियान चलाए जाते हैं। जांच शिविर लगाए जाते है और मरीजों की काउंसलिंग की जाती हैं। हालांकि एसएमए से प्रभावित मरीजों की अलग जरूरतों को पूरा करने के लिए लक्ष्य पर केंद्रित प्रयास करने की जरूरत है। केंद्र सरकार ने असाध्य रोगों के इलाज में मदद करने के लिए देश भर में 11 सेंटर ऑफ एक्सिलेंस स्थापित किए हैं। इसमें मरीजों को परामर्श दिया जाता है। उनकी जांच की जाती है। यहां असाध्य रोगों से जूझ रहे मरीजों के लिए गहन चिकित्सा सुविधा भी उपलब्ध है। हालांकि इसमें मरीजों का रजिस्ट्रेशन करने में कई चुनौतियां आड़े आ रही है। खासतौर से दूरदराज में रहने वाले ग्रामीण, जो अशिक्षा और गरीबी से जूझ रहे हैं, उनके लिए सेंटर ऑफ एक्सिलेंस में रजिस्ट्रेशन कराना खासा मुश्किल है।

लखनऊ में संजय गांधी पोस्टग्रेजुएट स्कूल ऑफ मेडिकल साइंसेज में मेडिकल जेनेटिक्स विभाग के अतिरिक्त प्रोफेसर डॉ. कौशिक मंडल ने कहा, “विशाल आबादी और सामाजिक आर्थिक स्थितियों के कारण भारत में रेयर डिजीज से पीड़ित काफी मरीज हैं।  यह केवल सेहत की देखभाल का ही सवाल नहीं है। यह सहृदयता, समानता और दृढ़ता का भी मुद्दा है कि कोई भी व्यक्ति, चाहे जिस भी रेयर डिजीज से जूझ रहा हो, वह बेहतर और स्वस्थ भविष्य का अवसर मिलने की हकदार है। इन सिद्धांतों के मांर्गदर्शन में भारत में रेयर डिजीज से पीड़ित मरीजों के लिए बनाई गई राष्ट्रीय नीति का विकास होना चाहिए। भारत में रेयर डिजीज से मरीजों की होने वाली मौत  के मामलों पर अंकुश लगाने के लिए तुरंत कार्रवाई की जरूरत है। रेयर डिजीज के लिए बनाई गई राष्ट्रीय नीति इस दिशा में उठाया गया प्रभावशाली कदम है। हालांकि इस बारे में गहन विचार विमर्श की जरूरत है कि इस लक्ष्य को समझदारी से हमारे देश के सीमित संसाधनों में कैसे हासिल किया जा सकता है।  सेंटर ऑफ एक्सिलेंस (सीओई) में परामर्श, जेनेटिक टेस्टिंग और सटीक दवाओं जैसी महत्वपूर्ण सेवाएं प्रदान करने के लिए कुशल स्टाफ और बेहतर आधारभूत ढांचा होना बहुत जरूरी है। मरीजों की देखभाल करने वाले डॉक्टरों और चिकित्सा कर्मियों और रेफरल सोर्सेज का ज्यादा विशाल नेटवर्क बनाने के लिए कई सक्रिय कदम अवश्य उठाए जाने चाहिए। सीओई में आपसी सहयोग को बढ़ावा देना चाहिए। पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप (पीपीपी) में सीओई के शामिल होने का समर्थन किया जाना चाहिए और सीओई को राष्ट्रीय महत्व के दूसरे महत्वपूर्ण क्षेत्रीय संस्थानों से रणनीतिक गठबंधन करन में सक्षम बनाया जाना चाहिए।’’

डॉ. कौशिक ने रेयर डिजीज, खासतौर से एसएमए टाइप 1 के प्रबंधन के लिए समग्र नजरिया अपनाने के महत्व पर जोर देते हुए कहा, “इस बीमारी के इलाज के लिए बहुआयामी नजरिया अपनाना केवल विकल्प नही नहीं है, बल्कि स्पाइनल मस्कुलर एट्रॉफी (एमएसए) को मैनेज करने का क्लिनिकल तरीका है। एसएमए के हर पहलू के लिए विशेषज्ञ दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है, जिसमें पल्मोनोलॉजी से लेकर न्यूरोलॉजी, फिजिकल थेरेपी, डाइटीशियन और मनोवैज्ञानिक शामिल हैं। हम एसएमए की जटिलताओं और रोग के इलाज में आने वाली परेशानियों  से मरीज की व्यापक और गहन देखभाल से निपट सकते हैं। इसके तरह विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों में साझेदारी की जानी चाहिए, जिसमें मरीजों को स्वस्थ और ज्यादा संतुष्टि प्रदान करने वाला जीवन प्रदान कर उनकी सेहत संबंधी सभी जरूरतों को पूरा किया जा सके।’’

 रेयर डिजीज से मनुष्य का शरीर दिन पर दिन कमजोर होता जाता है, जिस पर तुरंत ध्यान देने की जरूरत है। इसके लिए मजबूत नीति के आधारभूत ढांचे के साथ मरीजों की बेहतर देखभाल की सुविधा रोगियों को उम्मीद की किरण दे सकती है।  इससे इन बीमारियों से जूझते लोगों की असहनीय कठिनाइयों का बोझ कम किया जा सकता है।

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