Friday, June 27, 2025
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दिमाग हिला देगी साल 1994 की ये मर्डर मिस्ट्री, पर्स की थ्योरी से पुलिस के उड़ गए थे होश, ऐसे सलाखों के पीछे पहुंचा हत्यारा


नई दिल्ली. राजधानी दिल्ली का ऐसा मर्डर मिस्ट्री, जिसको सुलझाने में दिल्ली पुलिस को कई साल लग गए, लेकिन वह मर्डर मिस्ट्री आज भी मिस्ट्री ही बना हुआ है. साल 1994 में अपराधियों ने दिल्ली के वसंत कुंज में एक पूरे परिवार को बड़ी बेरहमी से मार दिया था. हत्यारा इतना शातिर था कि वारदात करते समय कोई सबूत भी नहीं छोड़ा था, लेकिन मृतक के जेब से मिले एक पर्स ने हत्यारे की पोल खोल दी.

साल 1994 में दिल्ली का सरनपाल कोहली मर्डर केस आज भी लोगों के जुबान पर है. यह घटना देश के चर्चित मर्डर केसों में से एक केस है. दिल्ली के वसंत कुंज में रात के अंधेरे में अपराधियों ने एक पूरे परिवार का खात्मा कर दिया था. इस मर्डर मिस्ट्री की जांच में दिल्ली पुलिस की स्पेशल सेल से हाल ही में रिटायर हुए सुपर कॉप ललित मोहन नेगी ने अहम रोल अदा किया था. इस मर्डर मिस्ट्री को नेगी ने कैसे सुलझाया और बाद में उन साक्ष्यों को अदालत ने कितना सही माना. आइए नेगी से ही जानते हैं.

क्या थी पर्स की थ्योरी?
ललित मोहन नेगी कहते हैं, ’22 जनवरी 1994 को सुबह 5 बजे वसंत विहार पुलिस को एक सूचना मिली कि वसंत कुंज के डी-3/3122 मकान में एक परिवार का कत्ल कर दिया गया है. मैं पूरी टीम के साथ घटनास्थल पर पहुंच गया. घर के अंदर सरनपाल कोहली उनकी पत्नी और उनके दो बेटों की डेड बॉडी अलग-अलग कमरों में फर्श पर पड़ी मिली. एक बेटा 4 साल का था दूसरा 3 साल का था.’

हमने इस केस की तफ्तीश शुरू कर दी. हमारे सामने पहली चुनौती यह थी कि हत्यारा कौन है और उसे कैसे खोजा जाए? सरनपाल कोहली शेयर का काम करते थे. इसलिए सबसे पहले उनके साथ काम करने वाले लोगों से पूछताछ शुरू कर दी. हमलोगों को शक था कि सरनपाल कोहली और उनके परिवार की हत्या किसी ऐसे शख्स ने की होगी, जिसका घर में फ्रेंडली एंट्री थी. घर के अंदर कहीं कोई जोर-जबरदस्ती के साक्ष्य नहीं मिले. पूछताछ में पता चला कि उनके दो कर्मचारी राम पाल सिंह चौहान और परमिंदर सिंह का सरनपाल से अच्छा संबंध था. दूसरे लोग और अन्य कर्मचारियों से पूछताछ में भी दोनों के संबंध का पता चला. इसके बाद दोनों को हमलोगों ने डिटेन कर लिया.’

क्यों आरोपी बरी हो गया?
नेगी के मुताबिक, ‘दोनों शख्स पूछताछ में अपने बयान बार-बार बदल रहा था. जांच में पता चला कि दोनों को शेयर का काम करने वाले सरनपाल कोहली के पास बहुत पैसा होने का शक था. हालांकि, हमने सरनपाल के शेयर सर्च किए तो ऐसा कुछ नहीं मिला. लेकिन, घटनास्थल से मृतक के जेब से एक पर्स मिला, जो उसका नहीं था. फिर मैंने सोचा कि कौन ऐसा शख्स है, जो सरनपाल के जेब में पर्स डाला है? आखिर उसका क्या मकसद था? हमलोगों को पता चला कि वह पर्स गाजियाबाद में बनता है. किसी तरह पर्स की कंपनी का पता लगाया.’

डायरेक्ट एविडेंस क्यों नहीं मिला?
नेगी के मुताबिक, ‘जब हमलोग गाजियाबाद के उस पर्स के मालगोदाम में पहुंचे तो पता चला कि उस मालगोदाम में एक आरोपी रामपाल का पिता काम करता है. उसके पिता ने वह पर्स मालखाने में जमा कराने के बजाए खुद रख लिया था. वही पर्स उसका बेटा इस्तेमाल करने लगा. इससे एक और सबूत मिल गया. लेकिन, इस बीच घटनास्थल पर फिंगर प्रिंट भी दोनों आरोपी के फिंगर प्रिंट से टेली हो गया था. फिर हम लोगों ने उस चापर्ड हथियार को बरामद किया, जिसका इस्तेमाल मारने में हुआ था. हालांकि, इस केस में कनविक्शन नहीं हो पााया. क्योंकि अदालत ने कहा कि कोई डायरेक्ट एविडेंस नहीं है. इस वजह से आरोपी को कोर्ट ने बेनिफिट ऑफ डाउट देकर रिहा कर दिया.’

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नेगी के मुताबिक राम पाल सिंह चौहान और परमिंदर सिंह बेशक रिहा हुआ लेकिन, बाद में इस केस की सीबीआई जांच की बात हुई थी. दो साल से अधिक समय तक चले इस मुकदमे में 11 गवाहों के बयान दर्ज किए गए थे. लेकिन, बचाव पक्ष ने दलील दी कि चार्जशीट में कई विरोधाभास है. हालांकि, बाद में कई सालों तक सरनपाल सिंह कोहली के पिता हर चरण सिंह कोहली बनाम दिल्ली पुलिस केस चलता रहा. लेकिन यह मामला आज भी मिस्ट्री बना हुआ है.

Tags: Conspiracy to murder, Cruel murder, Delhi police



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