संसद द्वारा पास किए गए भारतीय न्याय संहिता और नागरिक सुरक्षा संहिता कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई है. सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में सर्वोच्च न्यायालय के रिटायर्ड जज की अध्यक्षता में एक कमेटी गठित कर नए कानून के परीक्षण की मांग की गई है. आपको बता दें कि तीन नए कानून – भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य कानून औपनिवेशिक काल के तीन कानूनों- भारतीय दंड संहिता, दंड प्रक्रिया संहिता और 1872 के भारतीय साक्ष्य अधिनियम का स्थान लेंगे.
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल याचिका में इस नए कानून पर भी रोक लगाने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट के वकील विशाल तिवारी ने यह याचिका दाखिल की गई है. कोर्ट में दाखिल याचिका में कहा गया है कि जब यह कानून संसद में पेश किया गया तो उस समय संसद में व्यापक चर्चा नहीं हुई, क्योंकि उस समय अधिकतर सांसदों को निलंबित कर दिया गया था.
गौरतलब है कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने संसद द्वारा पारित किए गए तीन नए आपराधिक न्याय विधेयकों को सोमवार यानी 25 दिसंबर को स्वीकृति प्रदान कर दी थी. अधिसूचना के अनुसार, कानून उस तारीख से लागू होंगे जब केंद्र सरकार आधिकारिक राजपत्र में अधिसूचना जारी करेगी और इस संहिता के अलग-अलग प्रावधानों के लिए अलग-अलग तारीखें तय की जा सकती हैं. संसद में तीनों विधेयकों पर हुई चर्चा का जवाब देते हुए केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि इन विधेयकों का जोर पूर्ववर्ती कानूनों की तरह दंड देने पर नहीं, बल्कि न्याय मुहैया कराने पर है.
उन्होंने कहा कि इन कानूनों का उद्देश्य विभिन्न अपराधों और उनकी सजा को परिभाषित करके देश में आपराधिक न्याय प्रणाली में आमूल-चूल बदलाव लाना है. इनमें आतंकवाद की स्पष्ट परिभाषा दी गई है, राजद्रोह को अपराध के रूप में खत्म कर दिया गया है और ‘राज्य के खिलाफ अपराध’ शीर्षक से एक नया खंड जोड़ा गया है. ये विधेयक सबसे पहले अगस्त में संसद के मॉनसून सत्र में पेश किए गए थे. गृह मामलों पर स्थायी समिति द्वारा कई सिफारिशें किए जाने के बाद सरकार ने विधेयकों को वापस लेने का फैसला किया और पिछले सप्ताह उनका नया संस्करण पेश किया था.
शाह ने कहा था कि तीनों विधेयकों को व्यापक विचार-विमर्श के बाद तैयार किया गया है और उन्होंने इन्हें सदन में पेश किए जाने से पहले मसौदा विधेयक के प्रत्येक अल्पविराम और पूर्णविराम पर गौर किया है. भारतीय न्याय संहिता अलगाववाद के कृत्यों, सशस्त्र विद्रोह, विध्वंसक गतिविधियां, अलगाववादी गतिविधियां या संप्रभुता या एकता को खतरे में डालने जैसे अपराधों को देशद्रोह कानून के नए अवतार में सूचीबद्ध किया गया है. कानूनों के अनुसार, कोई भी व्यक्ति यदि शब्दों या संकेतों या दृश्य प्रतिनिधित्व या इलेक्ट्रॉनिक संचार या वित्तीय या अन्य माध्यम से जानबूझकर अलगाववाद या सशस्त्र विद्रोह या विध्वंसक गतिविधियां भड़काता या भड़काने की कोशिश करता है या अलगाववादी गतिविधियों की भावना या संप्रभुत्ता व एकता और भारत की अखंडता को खतरे में डालने के लिए उकसाता है, तो ऐसे कृत्य के लिए उम्रकैद की सजा हो सकती है या सात साल तक की सजा हो सकती है, साथ ही उस पर जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
देशद्रोह से जुड़ी भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए के अनुसार, अपराध में शामिल व्यक्ति को उम्रकैद की सजा या तीन साल की जेल की सजा का प्रावधान है. नए कानूनों के अनुसार, ‘राजद्रोह’ के स्थान पर ‘देशद्रोह’ शब्द लाया गया है. साथ ही पहली बार भारतीय न्याय संहिता में आतंकवाद शब्द की व्याख्या की गई है. भारतीय दंड संहिता में इसे परिभाषित नहीं किया गया था। नए कानूनों के तहत जुर्माना लगाने के साथ ही किसी को घोषित अपराधी ठहराने की मजिस्ट्रेट की शक्तियां बढ़ा दी गई हैं.
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FIRST PUBLISHED : January 1, 2024, 12:24 IST