नई दिल्ली. देश की सर्वोच्च अदालत यानी सुप्रीम कोर्ट में हजारों मामले पेंडिंग हैं. ऐसे में फरियाद लेकर आए हर एक शख्स को अदालतें बेहद शांति से सुनती हैं और उन्हें न्याय देने का प्रयास करती हैं. तब क्यों हो जब न्याय की आड़ में कोई शख्स चालाकी करने पर उतर आए. जी हां, न्यायमूर्ति विक्रम नाथ और राजेश बिंदल की खंडपीठ के समक्ष एक ऐसा ही मामला सामने आया, जब शख्स न्याय की आड़ में सिविल मामले को क्रिमिनल मैटर की तरह पेश कर चीजों को उलझाने लगा. जजों ने इस शख्स की चालाकी को तुरंत पकड़ लिया और उसपर 25 लाख का भारी-भरकम जुर्माना भी ठोका.
सुप्रीम कोर्ट ने कड़े शब्दों वाले फैसले में यह स्पष्ट कर दिया कि न्याय प्रणाली पर बोझ डालने वाले बेईमान वादियों को छूटने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. “बेईमान वादियों को छूटने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिए. उन्हें सख्त शर्तों पर रखा जाना चाहिए… अब समय आ गया है कि इस तरह के मुकदमों की सख्ती से जांच की जाए, जो झूठ और फोरम हंटिंग से शुरू किए गए हैं. यहां तक कि राज्य की कार्रवाई या आचरण भी ऐसे दुर्भावनापूर्ण मुकदमे में पक्षकार होने वाले सरकारी कर्मचारियों को गंभीरता से फटकार लगाई जानी चाहिए.”
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सिविल मामले को दिया क्रिमिनल रंग
सुप्रीम कोर्ट ने धोखाधड़ी और जालसाजी के एक मामले में आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने वाले फैसले में ये टिप्पणिया की. यह शेयर-गिरवी समझौते और ऋण संवितरण पर विवाद से उत्पन्न हुआ मामला था. इससे पहले इलाहाबाद हाई कोर्ट ने एफआईआर और अपीलकर्ताओं को समन रद्द करने से इनकार कर दिया था. शीर्ष अदालत ने इसकी आलोचना करते हुए कहा कि पक्षकार दिल्ली के थे लेकिन फिर भी नोएडा में पहली सूचना रिपोर्ट दायर की गई.
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प्रतिशोध की भावना से किया गया आपराधिक मुकदमा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, “मौजूदा मामले में, प्रतिवादी के कार्यों पर बारीकी से नजर डालने से अधिकार क्षेत्र के अनुचित उपयोग का पता चलता है. प्रतिवादी ने सच्चा न्याय पाने के बजाय व्यक्तिगत प्रतिशोध लेने के उद्देश्य से आपराधिक न्याय प्रणाली का दुरुपयोग करने के लिए आपराधिक आरोपों को आगे बढ़ाने का विकल्प चुना,”

न्याय प्रणाली पर डाला गया दबाव
न्यायालय ने बताया कि नागरिक मुद्दों को आपराधिक मामलों में बदलना अनावश्यक है और यह केवल आपराधिक न्याय प्रणाली पर बोझ डालता है और कानूनी मामलों में निष्पक्षता और सही आचरण के सिद्धांतों का भी उल्लंघन करता है. कोर्ट ने कहा, “इस मामले में आपराधिक कार्यवाही का स्पष्ट दुरुपयोग न केवल हमारी कानूनी प्रणाली में विश्वास को नुकसान पहुंचाता है, बल्कि अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो यह एक हानिकारक मिसाल भी कायम करता है.”
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FIRST PUBLISHED : January 11, 2024, 22:57 IST