Wednesday, November 19, 2025
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Explainer: हिंदूकुश बार-बार क्‍यों रहता है भूकंप का केंद्र, दिल्‍ली-एनसीआर के लिए कितना घातक


Earthquake in Delhi-NCR: दिल्ली-एनसीआर में दो बार भूकंप के तेज झटके महसूस किए गए हैं. झटकों को काफी देर तक महसूस किया गया. अमेरिकी भूगर्भ सर्वेक्षण संस्थान यानी यूएसजीएस के मुताबिक, भूकंप का केंद्र अफगानिस्तान के हिंदूकुश के जोर्म में था. पहले भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्‍केल पर 4.1 मापी गई. वहीं, दूसरी बार ज्यादा तीव्रता 6.4 रही. अभी तक भूकंप से किसी तरह के जानमाल के नुकसान की कोई खबर नहीं है. भूकंप के कारण दहशत में आए लोग घरों और दफ्तरों से बाहर निकल आए. लेकिन, क्‍या आपने कभी सोचा है कि भूकंप का केंद्र अक्‍सर नेपाल, पाकिस्‍तान, अफगानिस्‍तान या हिंदूकुश ही क्‍यों रहता है?

विशेषज्ञों के मुताबिक, भारत की जमीन लगातार खिसक रही है. इसीलिए इन इलाकों में बार-बार भूकंप आते हैं. दरअसल, इंडियन टेक्‍टोनिक प्‍लेट्स खिसकते हुए यूरेशियन और तिब्‍बत प्‍लेट्स को लगातार दबा रही हैं. इंडियन प्‍लेट्स के खिसकने के दौरान तिब्‍बत और यूरेशियन प्‍लेटों से होने वाले टकराव के कारण अफगानिस्‍तान, पाकिस्‍तान, नेपाल और हिंदूकुश में भूकंप का केंद्र बनता है. इसी कारण पाकिस्तान से लेकर भारत के पूर्वोत्‍तर राज्यों तक पूरे हिमालयी क्षेत्र में भूकंप का आना आम बात है.

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एशियाई देशों के नीचे जमा हो रही बहुत ऊर्जा
एशियाई देशों के नीचे मौजूद अलग-अलग टेक्‍टोनिक प्‍लेट्स के आपसी टकराव के कारण काफी ऊर्जा भी बन रही है. इंडियन टेक्टोनिक प्लेट हर साल 20 मिमी की रफ्तार से तिब्बतन प्लेट की तरफ बढ़ रही हैं. वहीं, तिब्बत की प्लेट खिसक ही नहीं पा रही हैं. ऐसे में टकराव के कारण पैदा होने वाली ऊर्जा भूकंप के हल्‍के और कभी-कभी तेज झटके के तौर पर बाहर निकलती है. अगर तिब्बतन प्लेट्स के नजदीक जमा होने वाली ऊर्जा तेजी से निकली तो तो भूकंप के बहुत तेज झटके आ सकते हैं.

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इंडियन टेक्टोनिक प्लेट हर साल 20 मिमी की रफ्तार से तिब्बतन प्लेट की तरफ बढ़ रही हैं.

हिमालयी क्षेत्र में बड़े भूकंप का खतरा बरकरार
वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी हुई है कि हिमालय क्षेत्र में एक बड़ा भूकंप आने का खतरा मंडरा रहा है. अगर ऐसा हुआ तो बहुत बड़े इलाके में इसका असर दिखाई दे सकता है. आईआईटी कानपुर के अर्थ साइंस डिपार्टमेंट के प्रोफेसरों ने भी भविष्य में एक बड़े भूकंप की आशंका जताई है. उनका कहना है कि धरती के नीचे इंडियन प्लेट और यूरेशियन प्लेट के बीच टकराव लगातार बढ़ रहा है.

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दुनियाभर में हर दिन आते हैं 55 से ज्‍यादा भूकंप
भू-वैज्ञानिकों का कहना है कि हिमालयी क्षेत्र में बहुत ज्यादा ऊर्जा इकट्ठी हो गई है. अगर ये ऊर्जा एकसाथ बाहर निकली तो भयंकर असर दिखाएगी. इस ऊर्जा की निकासी को भारत, पाकिस्तान, चीन, नेपाल ही नहीं कई एशियाई देश बर्दाश्‍त नहीं कर पाएंगे. भूकंप पर नजर रखने वाली अमेरिकी साइट यूएसजीएस के मुताबिक, दुनियाभर में हर दिन करीब 55 भूकंप आते हैं. इनमें ज्यादातर हल्के होते हैं. फिर भी इनकी तीव्रता 5 के आसपास रहती है. वहीं, तीन से चार भूकंप की तीव्रता 6 से ज्यादा होती है.

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छोटे झटके हो सकते बड़े भूकंप की दस्‍तक
बर्कले की भूकंप विज्ञान प्रयोगशाला कह चुकी है कि अगर भूकंप के ये छोटे-छोटे झटके किसी फॉल्‍ट-लाइन प्रेशर के कारण आ रहे हैं तो ये बड़े झटके की दस्‍तक माने जा सकते हैं. दरअसल, पूरी धरती पर कई फॉल्ट जोन हैं. आसान शब्‍दों में कहें तो धरती पर कई जगह प्लेट्स एक-दूसरे से मिलती हैं. इन प्‍लेटों के आगे-पीछे या ऊपर-नीचे खिसकने के कारण होने वाले टकराव से भूकंप आता है. भारत को भूकंप के जोखिम के हिसाब से पांच जोन में बांटा गया है.

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भू-वैज्ञानिकों ने दिल्ली-एनसीआर को भूकंप के जोन-4 में रखा है.

भारत का सबसे जोखिम भरा क्षेत्र कौन है?
भू-वैज्ञानिकों ने दिल्ली-एनसीआर को भूकंप के जोन-4 में रखा है. इसका मतलब है कि यहां 7.9 तीव्रता तक का भूकंप आ सकता है. अगर इतनी तीव्रता का भूकंप आता है तो दिल्‍ली-एनसीआर में भयंकर तबाही का मंजर देखने को मिल सकता है. सबसे खतरनाक जोन-5 है. इस जोन में कश्मीर घाटी, हिमाचल प्रदेश का पश्चिमी हिस्सा, उत्तराखंड का पूर्वी हिस्सा, गुजरात में कच्छ का रण, उत्तरी बिहार का हिस्सा, भारत के सभी पूर्वोत्तर राज्य, अंडमान व निकोबार द्वीप समूह आते हैं.

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क्‍या भूकंप का पहले ही लगा सकते हैं पता?
कामकैट अर्थक्‍वेक कैटेलॉग के मुताबिक, हालिया वर्षों में भूकंपों की संख्या लगातार बढ़ रही है. लिहाजा, दुनियाभर में भूकंप को आंकने और पहले ही पता लगाने के संवेदनशील उपकरण बनाने का काम बढ़ रहा है. हालांकि, इसका कोई पता नहीं लगा सकता कि भूकंप कब आएगा. फिर भी अर्ली वॉर्निंग सिस्टम कुछ मदद कर सकते हैं. कुछ समय पहले नेपाल के भूकंपों की पहली लहर की जानकारी भूकंप आने के 30 सेकेंड बाद ही मिल गई थी. इन भूकंपों की वजह तिब्बती प्लेट का इंडियन प्‍लेट्स के टकराव को रोकना था.

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